Jhilmil Sitara

Inspirational

4  

Jhilmil Sitara

Inspirational

वो दोस्त मेरा अनोखा है

वो दोस्त मेरा अनोखा है

11 mins
319


अपनी नानी के गाँव में उसे पहली बार देखा था मैंने ( छाया )कितनी खूबसूरत और कमसिन लग रही थी डांस करते हुए तेज धुन संगीत पर। उसका कमर मटका - मटका कर नाचना अच्छा लग भी रहा था और नहीं भी। एक लड़की का यूँ सबके बीच ठुमके लगाना, उनसे पैसे लेकर उनकी गोद में उछलकर बैठना जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था मुझे। मैं फिर भी उससे नाराज़ कैसे होती ये जानते हुए की, उसकी रोजी - रोटी शायद इसी से चलती होगी तो वो करेगी भी क्या। नाचने के बाद थक कर वो बिना कपड़े बदले खाना लेकर कोने में बैठकर खाने लगी। मैं ना जाने क्यों लगातार उसे ही देखती जा रही थी। संकोच होते हुए भी धीरे - धीरे खाना लेकर उसके सामने की कुर्सी पर बैठ गई। अबतक वो खुद को अकेला समझ बड़े - बड़े निवाले खा रही थी जो उसके भूखे होने का प्रमाण था। लेकिन, मुझे सामने देख वो संभल कर खाने लगी। मैंने उसको देखकर जरा - सा मुस्कुरा दिया जवाब में उसने भी मुस्कुराते हुए खाना जारी रखा। इस दौरान उसने कुछ नहीं कहा और ना मैंने कुछ पूछा। उसने जल्दी खाना खत्म किया और उठकर चली गई।


थोड़ी देर बाद मैं अपनी माँ को खोजते हुए बाहर आयी वो काफ़ी देर से नज़र नहीं आयी थीं और मुझे नींद आ रही थी। मैं माँ को बताकर सोने जाना चाहती थी ममेरी बहन के कमरे में। बिना बताये जाती तो माँ चिल्ला - चिल्लाकर आवाज़ देकर खोजती और जगा देती शादी के घर में अनगिनत काम होते हैं का हवाला देकर। माँ को खोजते हुए मैं उस कमरे में पहुँची जहाँ वो नाचने वाली लड़की अपनी आखिरी प्रस्तुति देकर कपड़े बदलने पहुँची थी। जब मैं दाखिल हुई वो एकदम से रुक गई अपने नकली बालों का जुड़ा निकलते हुए। फिर, उसने मुझसे पूछा आप किसी को ढूंढ़ रही हैं क्या? ओह! ये क्या था? उसकी आवाज़ लड़कियों जैसी नहीं थी, बिल्कुल भी नहीं थी और गौर से देखने पर साफ़ नज़र आ रहा था की, उसने सिर्फ लड़की का श्रृंगार और वस्त्र धारण किया है। दरअसल वो एक सुन्दर नैन - नक्स वाला युवक है। मेरे होंठों से जवाब क्या निकलते उसके इस रूप को देखकर। वो अपने चेहरे से श्रृंगार और लाली - लिपस्टिक साफ़ करते हुए फिर बोला, " आपने पहली बार लगता है किसी लड़के को लड़कियों के जैसा सजा -संवरा देखा है। यकीन मानिये मैं यहाँ काफ़ी प्रसिद्ध हूँ शादियों में रंग जमाने के लिए। लेकिन, ये भी सच है बहुत से लोग आजतक नहीं जानते की असल में मैं एक लड़का हूँ। बहुत लोग तो मुझे नगीना रानी के नाम से जानते हैं और सामान्य दिनों में नगीना रानी को बाहर कहीं पहचानते भी नहीं हैं।


यह कहकर उसने ठहका लगा दिया। मैं वहाँ से चुपचाप जाने लगी तो फिर उसने टोका, " आपकी शादी में भी मुझे बुलाया जायेगा आप देखना तबतक शायद आप आदत डाल लीजिये यहाँ के तौर - तरीकों की।मेरी शादी में ये नाचेगा लड़की बनकर! है भगवान ये मुझे मंजूर नहीं। मगर, मैं अभी इसकी बात क्यों सुन रही हूँ? अभी मुझे कॉलेज की पढ़ाई पूरी करनी है फिर आइएस बनना उसके बाद अपने गाँव के लिए, जिले के लिए बहुत से विकास कार्य करने हैं और ये कहाँ मुझे मेरी उम्र याद दिला रहा है बाकी गाँव की लड़कियों की तरह समझ कर। देखा जाये तो इसकी क्या गलती जो खुद ऐसे काम कर गुजर कर रहा है ग्रामीण परिवेश में रहकर। यही सब विचार करते हुए मैं बाहर निकल गई. इस बार मुझे अपनी माँ की आवाज़ सुनाई दी जो मुझे ही पुकार रही थीं छाया.... छाया...। शादी सम्पन्न हुई और मैं अपने परिवार के साथ शहर लौट आयी। और अपनी पढ़ाई के बीच उस नाचने वाले को भूल गई।


एक साल गुजरते ही फिर से गाँव से शादी का नेवता आया। इस बार चाचा की बेटी की शादी थी जो मुझसे भी एक साल छोटी थी। इंटर पास किया था उसने अभी - अभी और तुरंत शादी होने लगी उसकी। आगे पढ़ने का मन था उसका पिछली मुलाक़ात पर अपनी इच्छा जाहिर किया था उसने मगर, उसके पीछे भी तीन बहनों की शादी चाचा को करनी थी अपने बुढ़ापे से पहले इसलिए इसका नंबर जल्दी आ गया था। शादी का माहौल देखकर मुझे अचानक से उस नाचने वाले लड़के की याद आ गई। ऐसा लगा वो आस - पास ही कहीं है। शायद उसकी आवाज़ पड़ी थी मेरे कानों में। हाँ, ये वही था। पिछली बार उसने जो अपनी प्रसिद्धि के किस्से सुनाये थे ये उसका असर दिखाई दे रहा था। उसने मुझे देखा और नमस्ते करके अन्दर चला गया तैयार होने जिसमें उसे लड़कियों से ज्यादा ही वक़्त लगता होगा ये कहने की बात नहीं है।


  वरमाला के बाद खाना शुरू होते ही उसका स्टेज पर आगमन हो गया पहले की तरह। आज वो गाना भी गा रहा था नाचने के साथ। उसकी लड़कियों वाली आवाज़ में गाना सुनकर मेरी हँसी फूट पड़ी। जिसपर उसकी नज़र पड़ी तो वो संकोच कर गाने लगा ऐसे में मैंने वहाँ से हट जाना ही उचित समझा वरना बेचारे का ध्यान और गान दोनों इधर - उधर हो जाते। मैं फिर, अपनी बहन के पास चली गई जो मंडप के लिए तैयार हो रही थी। अपनी शादी से खुश थी वो क्यूँकि, लड़का उससे ज्यादा पढ़ा - लिखा और गाँव के सरपंच का बेटा था। होने वाले सरपंच ससुर जी ने उसे गाँव के स्कूल में पढ़ाने की अनुमति दे दी थी जो अच्छी खबर थी। मुझे भी उसकी ख़ुशी से बहुत ख़ुशी हुई। मैं भी उसे तैयार होने में मदद करने लगी। शादी के लिए मंडप में जाने में अभी वक़्त था। मैं लेटी तो मुझे नींद आ गई। फेरों के समय माँ उठाने आयी मगर, मैं हाँ - हूँ, आती हूँ बोलकर वापस सो गई। विदाई के समय वापस मुझे माँ ने तेज आवाज़ में जगाया बाकि रोने - धोने की आवाज़ सुनकर मेरी नींद खुल गई। मैं मुँह धोकर बाहर निकली। मेरा बिगड़ा श्रृंगार देखकर रोते हुए मेरी बहन को थोड़ी सी हँसी आ गई और मेरे गले से लिपट कर फिर से रोने लगी। मैंने कहा " पास के गाँव तो जा रही हो ससुराल तुम, ऊपर से इतना अच्छा ससुराल और पति मिला है फिर क्यों रो रही हो घंटे भर से तुम। जब मन करे चली आना अपने मायके रोने की क्या जरूरत है और वैसे भी ये सब खुद ही तुमको जल्दी भगाना चाहते थे फिर क्यों इनके लिए रोना.... क्यों चाची! चाची ने चाचा की तरफ देखा और चाचा ने मेरी तरफ और मैंने फिर ठहाका लगा दिया।


बहन की विदाई के दौरान मेरी नज़र फिर से उस नाचने के लिए आए हुए लड़के पर पड़ी जो एक तरफ खड़ा था। पहले मुझे लगा अपने पैसे के लिए इन्तजार कर रहा है। मैं चाय का दो कप लेकर उसकी तरफ बढ़ी तो वो मेरी ही तरफ आने लगा। मैंने एक कप चाय उसे थमाते हुए बोली " क्या पैसे मिले नहीं अभी तक? तुम यहीं हो। उसने बोला " पैसे मिल गए थे रात को ही पूरे । मगर, कल आपसे फिर कोई बात नहीं हो पाई इसलिए जा नहीं पाया। पिछली बार आपने मुझे लड़की समझ कर मेरे पास आकर बैठी थी खाना खाने और इस बार दुबारा नज़र ही नहीं आयीं आप तो मुझे लगा मुझसे कोई गलती हो गई क्या?? मैं जवाब के लिए रुक गया। वैसे मुझे अबतक फर्क नहीं पड़ता था की, कौन मेरे बारे में क्या सोचता है या बोलता है। लेकिन, पता नहीं क्यों मेरे मन में पहली बार ये जानने की इच्छा जगी है की आप मेरे बारे में क्या सोचती हैं। सच कहूँ तो, आपकी जितनी पढ़ी - लिखी और खूबसूरत लड़की से मेरी जान - पहचान हुई ही नहीं थी। आपने जिस तरह से विदाई के वक़्त अपनी रोती हुई बहन को हँसने पर विवश कर दिया वो बहुत भावुक भी था और सराहनीय भी। मैं आपकी तारीफ़ किये बिना यहाँ से जाना नहीं चाहता था कसम से।


  उसकी बातों और हाव - भाव में अपने लिए आकर्षण देख पर रही थी मैं। मगर, हमारा कोई आपस में मेल ही नहीं है ये भी स्पष्ट था। मैंने जरा सा मुस्कुराते हुए पूछा " आपका नाम क्या है असली वाला जो आपके माता - पिता ने रखा है। जो आप वाकई में हो जिससे जुड़े हुए बचपन से। ये दिखावे वाला नाम नहीं याद रखना मुझे। उसने बोला " गौरव। मैंने आँखें बड़ी करते हुए कहा " सच्ची। ओह, तो आपको किस बात का गौरव है इस काम का या जो आपके घरवालों ने दिया उस नाम पर?

उसने मेरी आँखों में देखा और बोला " गौरव नाम जिन्होंने दिया उनके लिए ही नगीना रानी बनकर जीता हूँ, कमाता हूँ। यही काम करके दो बहनों की शादी की है मैंने और घर की मरम्मत कराई है। आपको नहीं पता मगर, जब मैं बारह साल का था तबसे यही कर रहा हूँ। इस काम से मुझे ख़ुशी तो नहीं मिलती मगर, संतुष्ट हूँ अपने इस काम से जो किसी का हक़ नहीं ले रहा, ना किसी के बिन बुलाये जाता हूँ और सबसे सही बात ये है इस काम की कि, मेरी जगह कोई लड़की नहीं नाच रही। क्यूँकि, गाँव हो या शहर लड़कियों के लिए देर रात बाहर रहना सुरक्षित नहीं होता। और नाचना तो इतने लोगों के बीच गलत ही लगता कब कौन कैसी बदतमीजी कर दे कोई नहीं कह सकता ऐसे माहौल में। फिर, माहौल खराब होने का डर रहता है कुछ शादियों में देखा है मैंने बहुत नज़दीक से जब छोटा था।



  उसकी बातें काफ़ी प्रभावित कर रही थी मुझे। फिर भी उससे दोस्ती करना कुछ अजीब ही होता। मैंने उसका मनोबल बढ़ाते हुए कहा " अगर अब तुम अपनी जिम्मेदारियों से कुछ ऊपर उठ चुके हो तो कोई और काम क्यों नहीं करते। तुम्हारे विचार लड़कियों के नाचने को लेकर बिल्कुल सही हैं गौरव मगर, कबतक यही करते रहने का सोचा है बताओ? खुद की शादी होने तक यही करते रहोगे क्या? इस बारे में सोचना जरूर। हो सकता है पारिवारिक हालातों ने पढ़ने नहीं दिया हो और तुम कुछ और सीख नहीं पाए इस दौरान लेकिन, अब अपना हुनर किसी और को सीखा दो और खुद कुछ और सीखो आगे बढ़ो और कामयाब बनो नगीना रानी बनकर नहीं गौरव बनकर साबित करो खुद को। यही मेरा मशवरा और मेरे विचार है तुमको और तुम्हारे नाम को लेकर। यह कहकर मैं चली गई।


दो साल बाद! फिर से, मेरे चाचा कि दूसरी बेटी कि शादी थी जो मुझसे तीन साल छोटी थी। मैं अपनी आइएस कि तैयारी में जुटी थी। एक दिन के लिए आ पाई थी गाँव शादी के दिन ही सिर्फ। गाँव पहुंचते ही गौरव कि याद आ गई मुझे। लगा इस बार वो नहीं होगा यहाँ क्यूँकि, पिछली बार काफ़ी कुछ बोल गई थी उसके काम और नाम को लेकर मैं। मगर, ये क्या वो मुझे फिर मिला। लेकिन, इस बार वो गौरव ही था अपनी पुरानी पहचान से निकला हुआ सिर्फ गौरव था। इस बार नाचने गाने जैसा सीन ही नहीं था। जो बच्चे शादी में आए थे वही नाचना - कूदना कर रहे थे और कुछ तो ग्रुप बनाकर भी सबका मनोरंजन कर रहे थे। अपना किस्सा सुनाने वाले भी मौजूद थे और कुछ खुद को गज़ल गायक साबित करने में लगे थे। सब परिचित थे इसलिए कुछ गलत होने का सवाल ही नहीं था। गौरव मुझे मिला तो बहुत खुश था " बोला पता नहीं आप मुझे दोस्त मानती हो या नहीं मगर, मेरी आप इकलौती दोस्त हो जिसकी बातों और विचारों ने मेरा जीवन बादल दिया वरना मैं अब भी बालों में जुड़ा लगाए इनके बीच नाच रहा होता। मैंने आयुर्वेद का काम सीखा एक साल और छः महीने से वही करता हूँ और बहुत अच्छा चल रहा है मेरा काम। आपसे गुजारिश थी आप एक बार मेरी दुकान पर आकर मेरा मान बढ़ा दीजियेगा जाने से पहले। यही प्रार्थना करने मैं आज आया था। पहले लगा जाऊं या ना जाऊं पता नहीं आपसे मुलाक़ात होगी भी या नहीं या आपके सामने आकर अपनी याद दिलाना सही है या नहीं। फिर लगा, आपकी बातों का असर आपको पता होना चाहिए। कोई और इतना जानता नहीं मुझे जो खुद आकर मेरी बात करेगा यहाँ और जिस नगीना रानी को सब जानते थे उसे स्टेज पर गए दो साल हो चुके हैं। मैंने चौकते हुए उसकी तरफ देखा! उसने कहा " यकीन मानिये आपसे पिछली मुलाक़ात के बाद कभी ये काम नहीं किया और ना किसी लड़की को करने दिया। सबकी नज़र में मेरी बात आयी तो सबने कहा कि मैं सही हूँ।


मैंने कहा " तो मिठाई लाये हो या दुकान आने पर ही मिलेगा मुझे? मैंने आगे कहा " मुझे यक़ीन नहीं होता मेरी बातों का या मेरे मशवरे का आपके जीवन पर इतना असर हुआ है वह भी सकारात्मक सच कहूँ तो बहुत - बहुत खुश हूँ आपकी कामयाबी के लिए। आपने अपने गौरव नाम को ही नहीं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि, इंसान के इरादे अच्छे और नेक हो तो सभी उसका साथ देते हैं और तकदीर बदल कर रहती है। आपकी सफलता आपके मनोबल से संभव हुआ है जो हमेशा से आपमें था और आगे भी इसे जारी रखियेगा अपने और समाज कि भलाई के लिए। गौरव बहुत प्रसन्न होकर अपने घर लौटा और अगले दिन मैं पूरे परिवार के साथ उसकी दुकान गई जिससे वो गदगद हो उठा।


अब मैं आइस बन चुकी थी और मेरी शादी हो रही थी। शादी में स्टेज भी लगा था और तैयारी कर के आए हुए रिश्तेदार अपनी - अपनी बेहतर प्रस्तुति देने में लगे हुए थे। वाकई शादी का माहौल, रस्म - रिवाज कितने सुन्दर और मोहक लग रहे थे। ये रिवाज एक तरह से परिवारों को बार - बार मिलकर खुशियाँ बाँटने और यादगार लम्हों को सदा के लिए सहेज कर मन में रख सके इसलिए तो बनाये और निभाए जाते हैं । आज इस मधुर और मेरे जीवन के शुभ अवसर पर उस दोस्त की याद आ गई जिसे मैंने ऐसे ही शादी में नाचते हुए देखा था। आज उसके लिए मन में मेरे बहुत सम्मान है और हमेशा रहेगा। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational