Aaradhya Ark

Classics Fantasy Inspirational

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Classics Fantasy Inspirational

अपेक्षा सुपर वुमन से

अपेक्षा सुपर वुमन से

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"बेटा, ज़रा मुझे ठीक से समझाना ये अपलोड और डाउनलोड में क्या फर्क है ?"

नए फोन में आरती अपनी बेटी अक्षुणा के ज़रिये खोले गए फेसबुक अकाउंट को लेकर बैठी थी और फोटो कैसे अपलोड करना है यह समझ नहीं पा रही थी। उसे सुपर मॉम बनाने की अपेक्षा में बेटी अक्षुणा और बेटा अभिष्ठ लगे हुए थे पर उनमें धैर्य की बहुत कमी थी इसलिए अपनी माँ को आधा अधूरा सिखाकर ही अपने अपने फोन में लग गए थे।

आरती ने दो एक बार पूछने की कोशिश की तो बेटे ने लैपटॉप पर काम करते हुए डिस्टर्ब ना हो इस वजह से फटाक से उसके मुँह पर ही दरवाज़ा बंद कर लिया था और बेटी ने उसे हाथ से चुप रहने का इशारा करके खुद के अति व्यस्त रहने का संकेत दे दिया था।

अब करे तो क्या करे आरती ?

कुछ देर फोन को लेकर बैठी मगज़मारी करती रही फिर जब कुछ समझ नहीं आया तो फोन एक तरफ रखकर किचन में लंच बनाने चली गई। आज छुट्टी का दिन था, सोचा बच्चों और उनके पापा अविनाश के लिए कुछ खास बना ले।

पर... बच्चे तो वो सब नहीं खाएंगे जो अविनाश को पसंद है। बहुत सोचकर आरती ने बच्चों के लिए ब्रोकली, बेबी कॉर्न और मशरूम बनाने का सोचा और अविनाशजी के लिए दाल और बैगन का भरता। वैसे आरती को खाने में तो दोनों तरह की चीज़ेँ पसंद थीं अलबत्ता पति महोदय अविनाशजी अब तक ऑर्गेनिक फूड के लिए अपना टेस्ट डेवेलप नहीं कर पाए थे। उन्हें सुपर डैड बनने की कोई जल्दी जो नहीं थी।अभी दाल में तड़का लगाया ही था कि बेटी दौड़कर आई और लगभग डाँटने के अंदाज़ में बोली,

"मम्मा! ये क्या... ? आपने किसीके कमेंट्स का जवाब क्यों नहीं दिया ? मेरी फ्रेंड लिज़ा की मम्मी ने आपकी पिक पर कितना अच्छा कम्प्लीमेंट दिया है, जवाब तो देना था ना। फिर आपने मेरी डांस टीचर का रिक्वेस्ट क्यों एक्सेप्ट किया ? अब वह आपकी प्रोफाइल डिटेल देखकर मेरे पीछे पड़ जाएंगी कि जब मेरी माँ ने कत्थक जानती हैँ तो मैंने उनसे क्यों नहीं सीखा ?"

बेटी की बात का आरती कोई जवाब देती उसके पहले ही बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला,

"मम्मा!आपने ये योगा मैट ऑनलाइन क्यों ऑर्डर किया ? यह तो आपको जिम में वैसे ही मिल जायेगा!"

"उफ्फ्फ्फ़.... रुको बच्चों! पहले खाना तो बना लूँ!"

आरती के इतना बोलते ही अक्षुणा नॉनस्टिक कड़ाही में झाँकते हुए देखकर बोली

"ओह...! मम्मा, आपने बेबी कॉर्न और मशरूम को सरसों तेल में क्यों भून दिया। इसे तो ऑलिव ऑयल से पकाना था ना ? आप ऐसी गलतियाँ करोगी तो फिर सुपर मॉम कैसे बनोगी!"

बोलकर अक्षुणा अफ़सोस कर ही रही थी कि इतने में अविनाशजी रसमलाई और रबड़ी लेकर आ गए कि आज छुट्टी के दिन कुछ मीठा हो जाए।

उन्हें देखकर आरती खुश होने के बज़ाए दुखी होकर बोल पड़ी,

"आप ये मिठाई क्यों ले आए ? कितनी तो कैलोरी होती है इनमें और मैं ऑर्गेनिक फूड खाऊँगी अबसे। इसलिए इसे या तो वापस कर आइये या महरी को दे देंगे। मैं आपको भी नहीं खाने दूँगी!"

अविनाशजी भौंचक्के से आरती को देखते रह गए कि यह उनकी भोली भाली, सीधी सादी पत्नी क्या कह रही है ?

तभी आरती ने फिर कहा,

"अब यह पुरानी आदतें छोड़ दीजिए और बच्चों की अपक्षाओं पर खरा उतरना है और सुपर मॉम डैड बनना है!"अविनाशजी कुछ समझकर और कुछ नासमझकर कभी अपने हाथ में पकड़ी मिठाईयों के पैकेट्स को देख रहे थे तो कभी डाइनिंग टेबल पर सर्व किए हुए ऑर्गेनिक फूड को।

थोड़ी देर में उनके मन में फैसला हो चुका था।

उन्होंने रसमलाई और रबड़ी को फ्रिज में रख दिया कि शाम को महरी को दे देंगे और थोड़ी देर में फ्रेश होकर आयल फ्री, लो कैलोरी ऑर्गेनिक फूड का लंच करने बैठ चुके थे।

अभी पहला निवाला उठाकर मुँह में डालने ही वाले थे कि आरती ने रोक दिया,

"ज़रा रुकिए! मैं फोटो खींच लूँ... इंस्टा के स्टोरी पर पोस्ट करना है ना!"

अविनाशजी अपनी सुघड़ वाइफ को सुपर मॉम के रूप में देखकर खुद को भी उसी खाम (फ्रेम) में फिट करने की कोशिश में लग गए।

आखिर एक पेरेंट्स होने के नाते बच्चों की अपेक्षाओं का जो सवाल था सो... सुपर डैड बनना भी तो लाज़िमी ठहरा जैसा कि आरती के लिए अब सुपर मॉम बनना अति आवश्यक हो गया था।

धीरे धीरे आरती और अविनाश भी बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगे थे। आरती ने गौर किया अब उसके अपने टीनएजर बच्चों के साथ काफ़ी बातें होने लगीं थीं। पहले की तरह संवादहीनता की स्थिति अब नहीं रही थी। जिम जाकर जॉगिंग करके आरती अब पहले से कहीं ज़्यादा फिट और आकर्षक दिखने लगी थी। कई बार अविनाशजी आरती के व्यक्तित्व में आए इस बदलाव को एकटक निहारते रह जाते तो आरती शरमा जाती थी।

सबसे अहम बात अब दोनों पति पत्नी भी एक साथ कई विषयों पर चर्चा करते, नए टेक्निकल गजेट्स को अपनाकर अपने रोज़मर्रा के कामों को और आसानी से करने लगे थे।

आरती अब अपने बच्चों की अपेक्षाओं के साथ खुद की अपेक्षाओं पर भी खरी उतरने लगी थी।

एक सुपर मॉम बनते बनते वह अब सुपर इंसान भी बनने लगी थी।

इस तरह बच्चों के आग्रह और कुछ समय की माँग को देखते हुए आरती ने जो सुपर मॉम बनने का निश्चय किया था। आज वह अपनी अपेक्षाओं को बहुत हद तक पूरी कर पाई थी।

सच ही कहा गया है कि,

परिवर्तन संसार का नियमित चक्र है जो इसे अपनाकर चलता है वह जीवन के साथ नियमित चल पाता है और अपने प्रति न्याय कर पाता है।


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