Shailaja Bhattad

Tragedy

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Shailaja Bhattad

Tragedy

अपार्टमेंट

अपार्टमेंट

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सुनीता पछतावा करते हुए एक ही बात बार-बार दोहरा रही थी, काश ! 10 साल पहले हमने अपना खुद का अपार्टमेंट की बजाय इंडिपेंडेंट हाउस ही खरीद लिया होता तो, आज इतनी तकलीफ में नहीं होते। दरअसल उनके घर के ऊपर 10 साल बाद कोई दूसरे नए मकान मालिक आ गए थे जो पूरे दिन व देर रात तक घर में कूदना,दौड़ना धातु की वस्तुएं फेंकना,बर्तन फेंकना इत्यादि गतिविधियां करते रहते थे।और रसोई घर में तो ऐसे खाना बनता जिसमें पत्थर से पीटना मुख्य होता था। न रात को नींद न दोपहर में नींद लेना संभव था ।

देर रात तक बेडरूम में बच्चे के साथ बड़े भी दौड़ते। सुनीता को ऑनलाइन जॉब में भी मुश्किलें आने लगी , कंसंट्रेशन नहीं हो पाने से व नींद पूरी न होने से

सुनीता के व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगा। सुनीता ने एक बार नहीं बल्कि छः बार जाकर उनसे विनती की लेकिन, हर बार हताशा ही हाथ लगी। उनका कहना था कि, "हमने पूरे घर को हमारे बच्चे के लिए खेल का मैदान बना रखा है। मैदान की खेल की वस्तुएं घर में ही रख ली है और हमारा बच्चा दौड़ेगा आप देख लीजिए ।" जब सुनीता ने कहा कि, "अगर आप कारपेट लगा ले तो आवाज काफी हद तक कम हो सकती है।" उनका जवाब था "आप हमें मत सिखाइए हमें क्या करना है।" उसी समय अपार्टमेंट कि कुछ महिलाएं अनाथालय जहां मेंटली रिटारडेड महिलाओं को रखा जाता है वहां जाकर उनके लिए कुछ खरीद कर देने की योजना बना रही थी। सुनीता कहने लगी "क्या उन सभी महिलाओं में से किसी एक ने भी उन महिलाओं के मेंटली रिटारडेड होने का कारण जानने की कोशिश की है ।

खुद के अपार्टमेंट में तो एक दूसरे की मदद करने से हिचकिचाती हैं। गलत का बेझिझक साथ देती हैं। लेकिन बाहर पैसों का दिखावा करती है। क्या यही चैरिटी है? वहीं अगर उन महिलाओं के पास बैठकर उनकी इस स्थिति का कारण समझ कर उन्हें उनकी इन परिस्थितियों से बाहर निकालकर सामान्य जीवन प्रदान करती तो क्या यह असली चैरिटी नहीं होती?


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