अंतरद्वन्ध
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मुहर्रम के जश्न में कई दिनों से ताजिया बनाया जा रहा था ‘जुलूस 'नगारा के ताल पर अल्लाह के निस्बत में मदमस्त था, लोगों की भीड़ उमड़ पड़ा कौन हिन्दू, कौन मुसलमान में फर्क करना मुश्किल हो गया था दूसरी तरफ रामनवमी के उत्सव की तैयारी जोरों से चल रही थी। दोनों एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहा था, कई लोग धर्म का मतलब अपने –अपने हिसाब से नुक्कड़ पर कही -सुनाई ज्ञान में तड़का लगा रहें थे। इस बार हिंदुत्व के नाम पर सरकार बनी जहाँ देखो धर्म पर बहस छिड़ गई थी। हिन्दू –मुस्लिम के डिबेट में एक नया चश्मा लग गया था। टीवी और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने दोनों मज़हब के बीच में दरार बना दिया था। बेरोज़गारी, शिक्षा, बलात्कार इत्यादि पर बात होना बंद हो गया था। पहले हम सभी नुक्कड़ पर सामाजिक विकास और सरकार के बारे में बातें किया करते थे अब मानो देश बदल गया हो।
इस बार रामनवमी और मुहर्रम एक साथ होना है, लोगों में डर है की कोई दंगा ना हो जाए। माहौल ठीक नहीं था, गाय के मांस के नाम पर बहुतों का कत्ल हुआ था, जय श्री राम, अल्ला हू अकबर के नाड़े फिज़ा में गूंज रहे थे।
मैं, फारुख और अजीतेश में इस मुद्दे को ले कर बहस छिड़ गया था।
अचानक हमारे देश का मुद्दा कैसे बदल गया। ...
जो किसान दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज़ हैं। उसकी खेत की सिंचाई नहीं हो पा रही है। हर साल बाढ़ से लोग मर रहें हैं, स्वास्थ्य के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है आखिर लोग इस बात पर आक्रामक क्यों नहीं होते, आखिर पेट से ज्यादा धर्म की आड़ में इतनी नफ़रत क्यों ?
फारुख इस हालात में कुछ नहीं बोलना चाहता था, चाय की चुस्की ले कर जैसे कहीं खो गया हो।
"लोगों को भटकाने की कोशिश की जा रही है भाई, हमें आपस में किस तरह धर्म, जाति के नाम से टकराव पैदा किया जा रहा है, सियासत अपनी खेल खेलती रही है। पता नहीं ये मज़हबी कट्टरता हम ग़रीब को डुबोकर छोड़ेगी। फिर अपनी बातों पर ज़ोर डाल कर बोल उठा, जितना देश तुम लोगों का है उतना ही मेरा है... " जैसे लगा फारुख के अन्दर झुंझलाहट हो उसे मुल्क से अलग किया जा रहा हो।
अजीतेश बातों के बीच में कूद पड़े " जो लोग इस तरह के प्रोपोगेन्डा कर रहें हैं, उसे इस मुल्क से कोई मतलब नहीं है। हम जहाँ थे वहीं हैं। हमारी विशाल तंत्र हमेशा असफल रही हैं ज्यों ही हमें पद मिल जाता है, हम अलोकतांत्रिक हो जाते हैं। .. " मैं एक दलित हूँ, उसका दर्द मैं जान सकता हूँ, आज भी हमें उपेक्षित समझा जाता है, अगर आप किसी बड़े पद पर चले भी जाओं तो भी आप का जात पीछा नहीं छोड़ता कई कमेंट्स सुनने को मिलता है, जैसे मेरा समाज कचड़ा ढोने को पैदा हुआ हो। ..बेशर्म होतें हैं ऐसे प्रजाति, अमानवीय व्यवहार उनका होता रहा। ..दोषी हम लोग कैसे हो गए। ..? "
और कई बातें हम लोगों में होती रही। ...
मुझे कल होने वाली मुहर्रम और रामनवमी जुलूस के बारे में चिंता सता रही थी, किसी लफंगे के उन्माद से दोनों समुदाय के बीच झगड़ा फसाद ना हो जाए। ..
क्यों नहीं हम लोग दोनों कमिटी को एक साथ मिलकर किसी प्रकार की अनहोनी पर नज़र रखा जाए। नुक्कड़ पर इस बात पर कई लोगों का समर्थन प्राप्त हो जाता है।
रात में दोनों कमिटी के साथ मीटिंग करवाई गई, दोनों एक दूसरे को दुआ- सलाम हुई। जब पहले जुलूस निकालने की बारी आती है तो दोनों समय –सीमा को ले कर ज़िद पर अड़ जाते है, दोनों पक्ष की युवाओं में सहमती नहीं होती हैं।
यही ज़िद के वजह से एक साथ जुलूस निकल पड़ा शोर –शराबा और उन्माद में लोग झूमते निकल पड़े सड़क पर "जय श्री राम। ...और अल्ला हू अकबर। .. "
शब्द फ़िजा में गूंज उठा। ..कुछ उन्मादी लफंगे के चक्कर में फसाद हो जाता है।
अगर पुलिस को इस अंदेशा का सूचना नहीं दिया जाता तो फसाद बड़ी घटना का रूप ले लेती.
हम लोग किसी भी हाल में फसाद नहीं चाहते थे। ..कई आमिल तो फारुख को काफ़िर तक कह दिया
" जो आदमी पांच वक्त का नमाज़ी ना हो वह इस्लाम के बारे में क्या जनता है, वो हमें क्या नसीहत देगा। ... "
फारुख अपने तर्क से सभी का मुंह बंद कर देता है। मुझे और अजीतेश को लोग मुस्लिम हिमायती समझने लगे थे।
मेरी ख़बर हमेशा अख़बार के जिला एडिशन में छपा करता है, इस बार यह घटना प्रमुखता से छापी गई, इस घटना को नए एंगल से लिखा था। जिस कारण से कई लोग हमसे नाराज हो गये थे। सभी का केंद्र बिंदु हम तीनों हो गये थे। सभी के आँखों का किरकिरा बन गया था। अजीतेश और फारुख सिविल सर्विसेस की तैयारी में जुटे थे लेकिन अब मन बदल गया है, ’सरकारी बाबू’ बनकर क्या करेंगे फिर नेताओं की नीजी पॉलिसी पर दूम हिलाओ। तीनों सामाजिक सरोकार के लिए राजनीतिक लीक अख्तियार कर लेता है.
तीनों एक भव्य पुस्तकालय खोलने की परिकल्पना करता है, जिसमें समय –समय पर सेमिनार करवाया जायेगा बच्चें, नौजवान के साथ समाज, देश –विदेश पर परिचर्चा होगी।
फारुख के बारे में लोग भ्रांतियाँ फैलाने लगा है. फारुख समाज में कट्टरता को हवा दे रहा है। एक रात गाँव में अफवाह फैल जाता है की " फारुख के घर रोज़ गाय का मीट आता है। आज भी उसके घर मीट का दावत रखी गई है। .." होना क्या था, उग्र लोगों ने फारुख का घर घेर लिया उसपर जानलेवा हमला हो जाता है। यह बात मुझे और अजीतेश तक पहुँचती है, वहाँ पहुँचने के बाद भयानक मंज़र था ज्योंही बीच-बचाव को आया भीड़ हम दोनों को टार्गेट बना चुकी थी।
हम लोगों ने भी अपने दम पर लोगों का दिल जीता था कुछ लोगों ने उनके गलत इरादे को रोक दिया किसी तरह से हम लोगों की जान बची।
जब पुलिस में एफ.आई.आर। दर्ज़ करवाई तो विरोधियों ने हम तीनों को असामाजिक तत्व घोषित करने की अपनी ताक़त लगा दिए। उन लोगों की गिरफ़्तारी तो नहीं हुई लेकिन हम तीनों संदेह के घेरे में ज़रूर आ गये। यह घटना हमारी संवेदना को मानो ध्वस्त कर दिया हो। फिर भी हम सभी इस महीन खेल को भलीभांति समझ रहें थे। इस खेल को बहुत करीब से देख रहे थे। यह घटना हमें कमज़ोर नहीं करती हमें जागरूक होने का मौका देती हैं, यही हमारा तंत्र हैं, इस से जुड़ कर लोकतांत्रिक व्यवस्था में आगे बढ़ाना हैं। जिसमें हम सभी की परिकल्पना सकार होगी। ...
समाप्त
