अंतिम यात्रा
अंतिम यात्रा
सावन यूपी के गढ़ गंगा बृजघाट का रहने वाला था, पर वह है दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में अपनी प्राइवेट एंबुलेंस चलाता था। अस्पताल भारी दिल्ली में था, इसलिए वहां पोस्टमार्टम की सुविधा नहीं थी। जब भी कोई दुर्घटना से मृत्यु का केस आता था। तो पुलिस का ड्यूटी कॉन्स्टेबल अस्पताल से फोन करके शव को पुलिस कार्रवाई करके पोस्टमार्टम के लिए सावन की एंबुलेंस से बड़े अस्पताल मेभेजता था। सावन दो-तीन महीने में पैसे इकट्ठा करके अपने गांव जरूर जाता था। गांव में सावन का बचपन का मित्र शिवम अपनी मां छोटी बहन के साथ रहता था। शिवम के पिता का स्वर्गवास हो चुका था। सावन जब भी गांव जाता था, तो शिवम की मां छोटी बहनऔर शिवम के लिए दिल्ली शहर से कुछ ना कुछ उपहार जरूर लेकर जाता था। इस बार सावन दशहरा और दिवाली मनाने के लिए अपने गांव पहुंचता है। शिवम के घर जाकर उसे पता चलता है, कि शिवम की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। शिवम एक ईंट के भट्टे पर काम करता था। इसके अलावा शिवम के पास एक छोटा सा खेती की जमीन का टुकड़ा भीथा। शिवम की मां छोटी बहन के कहने से सावन दिवाली मनाने के बाद शिवम को दिल्ली शहर काम धंधे के लिएलेकर आता है। सर्दियों का मौसम था। रात के 2:00 बज रहे थे। उसी समय सावन के पास अस्पताल से पुलिस कॉन्स्टेबल का फोन आता है। किसी लावारिस महिला की आदी जली हुई लाश का पोस्टमार्टम होना था। सावन शिवम के साथ अस्पताल पहुंचकर आदी जली हुई महिला की लाश को एंबुलेंस में लिटा कर बड़े अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए चल देते हैं। सर्दी का मौसम था कोहरे की वजह से दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सावन आधे रास्ते सर जाकर एंबुलेंस को रोक देता है। सावन शिवम से कहता है, "तुम्हेंकुछ ही दूरी पर छोटी सी दुकान दिखाई दे रही है, मैं वहां से तुम्हारे लिए और अपने लिए चाय बिस्किट कुछ खाने का सामान लाता हूं।" पर शिवम को पता था, की सावन को शराब पीने की लत है। वह शराब पीने जा रहा है। इसलिए शिवम एंबुलेंस में बैठना ही उचित समझता है। और सावन वहां से चला जाता है।
शिवम ड्राइवर की साथ वाली सीट पर बैठा हुआ था। और उसके पीछे आधी जली हुई, महिला की लाश रखी हुई थी। शिवम एंबुलेंस की खिड़की में से देखता है,रोड के किनारे झाड़ियां थी। और झाड़ियों में एक बड़ा सा उल्लू है, जिसकी लाल-लाल आंखें चमक रही थी। वह शिवम की तरफ देख रहा था। और अपने पंख बार-बर फड़फड़ा रहा था। अचानक शिवम को एंबुलेंस के शीशे में दो लाल-लाल आंखें दिखाई देती है। शिवम घबराकर एंबुलेंस से उतरने लगता है। इतने में पीछे से जहां महिला की आधी जली हुई लाश रखी थी। वहां से उसका कोई पीछे से कंधा पकड़ लेता है। शिवम बुरी तरह घबरा जाता है। और झटके से एंबुलेंस का दरवाजा खोलकर एंबुलेंस से नीचे गिर जाता है। और फिर खड़ा होकर भागने लगता है। अचानक सामने से शराब के नशे में सावन आ जाता है। शिवम अपने साथ बीती घटना सावन को बताता है, पर सावन नशे में शिवम की बात समझ नहीं पाता। फिर दोनों आदी जली लाश को लेकर बड़े अस्पताल पहुंच जाते हैं। उस दिन मुर्दाघर में एक ही कर्मचारी था। और वह भी बुखार से तड़प रहा था। इसलिए वह सावन से कहता है "कि तुम ही आज इस लाश को मुर्दाघर में जमा कर दो" शिवम सावन के साथ मिलकर महिला की लाश को स्ट्रेचर पर लिटा कर जैसी ही मुर्दा घर के अंदर जाता है, वहां पहले से ही 10 -15 शव रखे हुए थे। शिवम उन लाशों की तरफ देखता है, तो उसे ऐसा लगता है, जैसे सारे मुर्दे उसी की तरफ देख रहे हो। शिवम का दिल तेज तेज धड़कने लगता है। घर पहुंचते-पहुंचते उसे बुखार हो जाता है। पहेली एंबुलेंस की घटना दूसरा मुर्दाघर में लाशों को देखकर शिवम को उस रात उसके बाद रोज हर रात शिवम को डरावने और भयानक सपने आने लगते हैं। इस वजह से शिवम सावन से गांव जाने की जिद करने लगता है। शिवम की ऐसी हालत देखकर सावन उसे गांव भेजने के लिए तैयार हो जाता है। और कुछ पैसे शिवम को देता है। और कहता है, कि तुम कमा कर धीरे धीरे मुझे दे देना और मां और छोटी बहन के लिए कुछ सामान भी देता है। शिवम बस अड्डे पहुंचता है। और वहां शिवम का सामान और पैसे चोरी हो जाते हैं। शिवम सोचता है, सावन के पास वापस जाना उचित नहीं होगा, वह सोचेगा कि पैसे वापस ना लौटाने पड़े, इसलिए चोरी की झूठी कहानी सुना रहा है। इस वजह से शिवम रेल से बिना टिकट जाने का फैसला लेता है। रेल के डिब्बे में शिवम को एक टांग से अपाहिज आदमी मिलता है। उसके पास सामान का एक बैग था। और एक पिंजरा था। पिंजरे के अंदर बिल्कुल काले रंग की बिल्ली बंद थी। रेल के डिब्बे में टीटी आकर बिना टिकट शिवम को पकड़ लेता है। तो वह अपाहिज आदमी शिवम का हर्जाना देखकर शिवम को बचा लेता है। और बात ही बातों में शिवम को पता चलता है। की वह उसके पास के गांव का ही व्यक्ति है। रेल लेट होने की वजह से रात के 12:00 बजे दोनों को रेलवे स्टेशन पर उतार देती है। वह अपाहिज आदमी कहता है "अब बाहर कोई छोटा टेंपो तांगा रिक्शा बस नहीं मिलेगी। हम दोनों पैदल पैदल धीरे-धीरे अपने अपने गांव की तरफ चलते हैं।"शिवम और उस अपाहिज व्यक्ति का एक ही रास्ता था। और उसने शिवम पर एहसान किया था, इसलिए शिवम बिल्ली का पिंजरा और उसका बैग खुद उठा लेता है। और धीरे धीरे चलने लगते हैं।दोनों चलते चलते जंगल और खेतों के रास्ते में घुस जाते हैं। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। कोहरे की वजह से दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था।
थोड़ी दूर जाने के बाद शिवम पीछे मुड़कर देखता है, कि वह एक टांग से अपाहिज आदमी कितना पीछे रह गया है। पीछे मुड़कर देखते ही शिवम के होश उड़ जाते हैं। उस एक टांग से अपाहिज आदमी ने सफेद रंग का कुर्ता पजामा पहन रखा था।और वह पुराने बरगद के पेड़ पर झूल रहा था।उसके पैर कभी जमीन से लग रहे थे कभी आसमान की तरफ जा रहे थे। और अपनी पतली और डरावनी आवाज में शिवम को गालियां दे रहा था, और गाने गा रहा था।शिवम यह सब देखकर घबरा जाता है। उस अंधेरी रात में वहां से भागना शुरू कर देता है। अंधेरे में ठोकर लगने से शिवम गिर जाता है। और उसके हाथ में जो काली बिल्ली का पिंजरा था वह पिंजरा खुल जाता है। उस पिंजरे में से काली बिल्ली निकलकर शिवम की गर्दन से चिपक जाती है। और तेज तेज अलग-अलग आवाजों में रोने लगती है। शिवम घबराहट में एक सूखे कुएं में गिर जाता है। कुए के अंदर पहले से भूत चुड़ैल थे। वह शिवम को दोनों हाथों से पकड़ लेते हैं। फिर शिवम को सुबह होश आता है। वह देखता है कि उसके हाथ में महादेव का लॉकेट है। उसके कपड़े फटे हुए थे, चेहरे सर से खून बह रहा था। जल्दी से कुए से बाहर निकल कर अपने घर पहुंचता है। घर पहुंच कर अपनी मां बहन और गांव वालों को सारी घटना सुनाता है।उसकी मां गंगा घाट पर शिवम को एक सिद्ध साधु के पर ले कर जाती है। सिद्ध साधु शिवम को देखते ही बता देता है। यह एक पवित्र आत्मा है। इसलिए वह भटकती हुई आत्माएं शिवम सेअपनी आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाना चाहती हैं। साधु कहता है "अगर तुम उनका अंतिम संस्कार कर दो तो, तुम्हें बहुत ही पुण्य मिलेगा" शिवम अपने गांव के खेती के छोटे से टुकड़े को बेच कर, उन भटकतीआत्माओं की शांति के लिए एक बड़ी पूजा रखता है। शिवम के ऐसा करने से धीरे-धीरे उसके अच्छे दिन आने लगते हैं। अब शिवम ने अपने जीवन का यह नियम बना लिया था। उसे कोई भी लावारिस लाश या किसी गरीब व्यक्ति की लाश मिलती थी, तो वह उसका अंतिम संस्कार करवा देता था। और साल में भटकती आत्माओं की शांति के लिए एक बड़ी पूजा करवाता था। शिवम के ऐसा करने से देखते ही देखते शिवम के दो खाने के ढाबे खुल जाते हैं। और गाय भैंस के दूध बेचने की डेरी खुल जाती है। शिवम का व्यवसाय लगातार बढ़ता ही जाता है। शिवम के पास इस व्यवसाय से जो भी पैसा आता था, उसमें से कुछ पैसे वह लावारिस गरीब भटकती आत्माओं की शांति के लिए खर्च कर देता था।