अन्तिम क्षण
अन्तिम क्षण
माँ ब्लड प्रेशर की मरीज़ थी नियमित दवाई खाने के बावजूद उनका सिस्टोलिक व डायस्टोलिक बी पी काफी बढ़ा रहता था।
एक दिन हाई ब्लड प्रेशर के कारण उनके दिमाग की नस फट गई।
शरीर पर नियंत्रण खत्म हो गया उन्होंने अपना होश खो दिया और उन्हें अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया।
बी पी के कारण ही उन्हें चक्कर आते रहते थे। दवाई की मात्रा बढ़ाने को डॉक्टर तैयार नहीं था क्योंकि दवाई की मात्रा पहले ही काफी अधिक दी जा रही थी। डॉक्टरों की टीम ने तीन बार आपरेशन किया, स्थिति वैसी ही बनी रही और अब वह पाइपस और मशीनों के सहारे थीं।
डॉक्टर अभी भी ढाढस बंधा रहे थे। बचपन से ही मां के मुंह से सुना था, कि वह सौ वर्ष तक जीएंगी। मुझे पूरी उम्मीद थी वह बिल्कुल ठीक हो जाएंगी। अभी तो वह पचासी वर्ष की थीं। डॉक्टर के कहने पर उन्हें बड़े हॉस्पिटल से छोटे हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया। वो तो घर ले जाने को ही कह रहे थे शायद उन्होंने भांप लिया था कि अब चन्द दिनों की मेहमान हैं।
नए हास्पिटल का प्राइवेट कमरा। मैं और मेरी एक दोस्त उनकी तीमारदारी में। तीसरे दिन, नर्स ने कहा हॉस्पिटल की ड्रेस में साफ-सफाई ढंग से नहीं हो पाती गाऊन ला दो। हमने उन्हें गाऊन ला दिया। चार नर्सों ने मिलकर उन्हें साफ सुथरा कर लिटा दिया। उनके चेहरे से लग रहा था जैसे वो सो रही हों।
नर्स ने उनकी फूड पाइप में कोई मेडिसि
न डाली पेशाब की पाइप ठीक से लगा कर वे सभी चली गईं। अब कमरे में हम दो सहेलियां तथा माँ।
विशेष किस्म का नूर आ गया था उनके चेहरे पर। उन्होंने दो बार आंखें खोल चारों ओर देखा फिर आंखें बन्द कर लीं। आंखों की कोरों में पानी की बूंदें थीं।
मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मन में पूरी उम्मीद थी, सब ठीक हो जाएगा। मैं और मेरी दोस्त कमरे के कोने में बैठे खुसर फुसर बातचीत करने लगे। तभी महसूस हुआ कमरे में कुछ गहरा सन्नाटा छा गया। कोई आवाज़ नहीं, कोई हलचल नहीं, ऐसा लगा जैसे कमरे की हवा थम गई हो।
हमें सांस लेने में तकलीफ हो रही हो। मैंने इधर उधर देखा मां शान्त सी लेटी थीं। न जाने मुझे क्या सूझा, मैंने उनका माथा छुआ। माथा
बर्फ जैसा ठण्डा पड़ा था। खुली आंखें छत की ओर देख रही थी।
मैं भाग कर नर्स को बुला कर लाई, नर्स डॉक्टर को और डॉक्टर ने माँ को मृत घोषित कर दिया। मैं अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं थी उनकी मृत्यु को स्वीकारने को। यह सच है माँ पिछले महीने से गम्भीर रुप से बीमार चल रहीं थीं यह भी सच्चाई है अगर माँ बच जाती पर पूर्णतया कभी ठीक न हो पाती। फिर भी जब तक सांस तब तक आस। पल भर में ही मां की सारी यात्रा पूर्ण हो चुकी थी। वह विराट में विलीन हो गईं।
यह मेरे लिए अलग सा ही अनुभव था जिससे उभरने में मुझे समय लगा।