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Krishna Bansal

Inspirational

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Krishna Bansal

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मनभरी: एक संस्मरण

मनभरी: एक संस्मरण

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मनभरी हमारी न केवल घरेलू सहायक थी बल्कि यूं कह लीजिए हमारे घर की मैनेजर थी।


वह एक दिन हमारे घर के आगे से गुजर रही थी। गर्मियों के दिन थे। उसे प्यास लगी, वह हमारे घर की ओर आ गई। शहरों में कोई किसी अजनबी को अपने घर में घुसने नहीं देता पर पहाड़ों में अभी भी वहीं पुराना रिवाज़ 'अतिथि देवो भव'। उसने मुझे नमस्ते कहा इससे पहले मैं पूछती आप कौन? वह बोली मुझे बहुत प्यास लगी है कहते कहते वह बाहर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। फिर वह बोली 'मैं काफी देर से घर से चली हुई हूं बहुत थक गई हूं भूख भी लगी है।" मैं उसकी बेबाकी पर हैरान थी पर उसका थका मांदा चेहरा देख मुझे तरस भी आ रहा था। मैंने उसे कहा, "रोटी बनानी तो मुश्किल है कहो तो ब्रेड जैम दे दूं और चाय बना दूं।" उसकी आंखों में चमक आ गई।

नाश्ता करने के उपरान्त उसमें जैसे जान सी आ गई। अपने घर परिवार के बारे में बताने लगी।

बातचीत से पता लगा कि वह जरुरतमन्द है और उसे काम की तलाश है।भगवान् के भी अजीबोगरीब तरीके हैं।किस को किस से ऐन सही मौके पर मिलवाना है, केवल वही जानता है।


हमें बहुत दिनों से हमें किसी घरेलू सहायक जरूरत थी। पुरानी बाई छोड़ गई थी और नई मिल नहीं रही थी।हमारे घर में नया मेहमान आने वाला थाइस कारण हमें बाई की सख्त ज़रुरत थी।प्रत्यक्ष रुप से पूछते हुए झिझक आ रही थी।

मनभरी खूबसूरत भी बहुत थी। लम्बा कद,छरहरा बदन,दमकता रंग, अधेड़ उम्र, चेहरे पर रौनक,ऊपर से कपड़ा लत्ता काफी बढ़िया, साफ सुथरा पहन रखा था। अब तक मैं उसकीआर्थिक स्थिति के बारे में जान चुकी थी, नहीं तो मैं उसे कोई टीचर समझ बैठती।हिम्मत कर पूछ ही लिया कि वह किस किस्म की नौकरी करना चाहती है।

मैम, 'मुझ जैसी आठवीं पास को क्या नौकरी मिलेगी।यहीं कहीं घरेलू काम मिल जाए'।

मेरी तो जैसे बांछे खिल गईं।पूछा 'क्या लोगी?'

वह बोली 'काम और समय पर निर्भर करता है, पगार उसके मुताबिक हो जाएगी'फिर वह अपने गुणगान करने लगी। ऐसा लगा वह जैसे हर चीज़ में निपुण है।पहाड़ी खाना,पंजाबी खाना, कपड़े धोना, साफ सफाई, बच्चे की देखरेख, हर काम में अव्वल।बहुत जल्दी तनख्वाह व अन्य शर्तें तय हो गई और यह भी तय हो गया कि वह अगले दिन से काम पर आ जाएगी।

मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। उन दिनों फोन की सुविधा नहीं थी, सोच रही थी कब पति महोदय कॉलेज से लौटें और यह खुशी उनसे साझा करुं।

अगले दिन वह तयशुदा समय पर पहुंच गई और उसने काम ऐसे संभाला जैसे इस घर और घर की कार्यशीलता से वर्षों से वाकिफ हो।

'आप इस हालत में हैं आप काम मत करिए, बैठ जाईए, आराम कीजिए, मैं सब सम्भाल लूंगी'।

सच में उसने सब सम्भाल लिया।

मुझे घर के काम की कोई चिन्ता ही नहीं रही। नाश्ता बढ़िया बना देती। बड़े बेटे को स्कूल के लिए तैयार

करने में मदद करती और उसके लिए टिफिन पैक कर देती। प्रोफेसर साहब को कॉलेज व बेटे को स्कूल भेजने के उपरान्त वह सारे घर की सफाई करती, कपड़े धोती तथा लंच की तैयारीकर बारह बजे तक फ्री हो जाती।अब वह कुछ देर मेरे पास बैठती अपने गांव की, कुछ आप बीती, कुछ जग बीती सुनाती रहती। मैं सुनूं, न सुनूं उसने सुनाना ही होता था यह उसकी रोज़मर्रा की आदत थी। 


एक दिन मैंने उसे पूछा तुम्हारा नाम किसने रखा, 'मेरी मां ने' उसने जवाब दिया। मेरे से बड़ी चार बहनें हैं, मैं पांचवीं। मां का कहना था कि लड़कियों से उसका मन मन भर गया था उसने मेरा नाम मनभरी रख दिया। मेरे बाद मेरा भाई आया तो घर में मेरी कद्र बढ़ गई।


अब तक आप को पता लग गया होगा कि हमारी प्यारी मनभरी सर्वगुण सम्पन्न होने के साथ साथ कर्तव्य पारायण भी थी।ससुराल से हमें खबर आई कि हमें तत्काल कसौली पहुंचना है, इमरजैंसी में।दिसम्बर का महीना। ठेठ सर्दियों के दिन।

बड़ा बेटा चार वर्ष और छोटा केवल डेढ़ साल का। उन दिनों आना जाना बसों में होता था। हमारे शहर से कसौली का रास्ता बारह घण्टें का, वो भी तब जब बसें समय समय पर मिलती चली जाएं। मैंने मनभरी से पूछा क्या वह सुबह चार बजे हमारे यहां आकर बच्चों को तैयार करने में मदद कर सकती है और नाश्ते के लिए परांठे बना सकती है उसने कहा वह अवश्य पहुंच जाएगी। मैं निश्चिंत हो गई।

आधी रात अचानक आंधी, तूफान, बारिश ने कहर ढा दिया। कल शाम को बादल जरुर थे, पर रात दस बजे तक मौसम लगभग ठीक ही था। रात्रि बारह बजे खूब तेज़ हवा चली, बिजली चमकी, गड़गड़ाहट के साथ बादल खूब बरसे। ऐसा लग रहा था सुबह बस पकड़नी मुश्किल है।

चूंकि रात भर नींद ढंग से आई नहीं

सुबह नींद तब खुली जब किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खोला तो सामने मनभरी खड़ी थी। मनभरी तुम?अचानक मुंह से निकला। समय देखा पूरे चार बजे थे। 'आपने ही तो कहा था चार बजे आने को'।

मैं आश्चर्य चकित थी उसकी समय पाबन्दी, वायदा निभाई तथा निष्ठा पर।

उसने जल्दी से बच्चों को तैयार कियाहमारे लिए नाश्ता पैक किया। यह सब करते करते उसने बताया कि कल रात आंधी में उसके घर की छत उड़ गई थी।पूरे घर में बारिश हो रही थी, सब सामान भीग गया था, बच्चे रो रहे थे और पशु सर्दी के मारे ठिठुर गए थे। वह आगे बोली आप से वायदा जो कर गई थी इसी कारण यहां पहुंच गई। आप भी छोटे बच्चों के साथ कैसे यह सब

अकेले करते। अब मैं आपका सामान भी बस स्टैंड पहुंचा दूंगी।मैं उसके आगे मन ही मन नतमस्तक थीं।


मैंने उसकी मुट्ठी में कुछ रुपये दिए,वह ले नहीं रही थी, मैंनें जबरदस्ती पकड़ाए। उसने सामान उठाया और हमारे पीछे चल पड़ी।सारे रास्ते मैं सोचती रही मनभरी ने वफादारी की कितनी बड़ी मिसाल कायम की हैं।काश! हम इस घटना से कुछ सीख पाते।




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