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Krishna Bansal

Children Stories Inspirational Others

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Krishna Bansal

Children Stories Inspirational Others

पंजीरी

पंजीरी

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सर्दियों के मौसम में हमारी एन जी ओ

सरकारी स्कूली बच्चों तथा अन्य जरूरतमंद, बच्चे हों या बूढ़े, सब को स्वेटर बांटती है। झुग्गी झोपड़ी में कम्बल बांटने का काम बखूबी निभाती है। दरअसल यह काफी गरीब इलाका है। गर्मियां तो जैसे तैसे निकल जाती हैं, सर्दियां गरीब आदमी के लिए सिरदर्दी हो जाती हैं।

आज जब हम जिस स्कूल में स्वैटर देने गए उस स्कूल की बगल में आंगनबाड़ी भी था। एक सदस्य ने कहा छोटे माप के स्वेटर बच गए हैं उन्हें बांट देते हैं। यह बच्चे कौन सा अमीर घरों से हैं।

हम सब ने हामी भरी और आंगनबाड़ी की ओर चल पड़े। पड़ोस की दुकान से टॉफी व बिस्कुट खरीद लिए। 

वहां लगभग दस बच्चे बैठे थे। टीचर उन्हें सामने लटक रहे चार्ट से सभी फलों की पहचान करवा रही थी। हमें देख वो बच्चों को सम्बोधित करते हुए बोली 'गुड मोर्निग बोलो'। कुछ खड़े हुए, कुछ बैठे रहे और गुड़ मोर्निग गा कर बोले। लगभग तीन साल के छोटे छोटे प्यारे से बच्चे।

मैं यह नहीं कह सकती हर बच्चा साफ सुथरे कपड़े पहने था। ये बच्चे निम्न वर्ग से थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी

मोजे तो दूर की बात, तीन बच्चों के तो जूते भी पहने हुए नहीं थे और स्वेटर आधी क्लास ने नहीं पहन रखे थे।

मैंने कमरे में निगाह डाली। फर्नीचर, कार्पेट, चार्ट, खेल के सामान के इलावा, कई भरी हुई बोरियां दीवार के साथ सटी पड़ी थीं और उनके समीप जाते ही एक विशेष गंध नासिका में महसूस की जा सकती थी। 

हमने टीचर को अपने आने का उद्देश्य बताया। उसकी तो जैसे बांचें खिल गईं।

कहने लग

ी 'मैम, मैंने आपकी एन जी ओ के बारे में सुन रखा है सोचा था मैं ही कभी आप लोगों से निवेदन करुंगी कि इन बच्चों को स्वेटर या कोई अन्य सामान बांट दो।

सरकार की ओर से इन बच्चों को बहुत सुविधा दी जाती है, किताबें, कापियां, पेंसिल, रेज़र, कई बार इनकी सरकारी किट में साबुन,टूथ ब्रश और पेस्ट तक होती है पर स्वेटर, 

मौजे, जूते स्वयं खरीदने पड़ते हैं जो इनके मां बाप अपने सीमित साधनों के कारण नहीं खरीद पाते हैं।

हम में से ही एक सदस्य ने कहा जूते व मौजे वह ले देंगी।

मेरी जिज्ञासा अभी भी बनी हुई थी कि इन बोरियों में क्या हो सकता है। आखिर पूछ ही लिया। पता चला कि इनमें पंजीरी के पैकेट हैं और बहुत स्वादिष्ट है। चावल दाल मुंगफली घी चीनी से बनी पंजीरी खाने के लिए तैयार हैं और अगर इसमें गर्म पानी या दूध डाल दिया जाए तो यह हलवा भी बन जाता है। टीचर ने आगे बताया सर्दियों में सप्ताह में एक दिन बच्चों में बांटी जाती है। प्राय: बच्चे इसे कम पसन्द करते हैं। बहुत बार आंगनवाड़ी का स्टाफ एक एक बोरी उठा कर घर ले जाते हैं या फिर इन बच्चों की मां बाप को ही दे देते हैं। 

मैम, आप को भी दे दूं आपको पसन्द आएगी। आप सभी को दो दो पैकेट दे रही हूं आप इससे कई डिशज़ बना सकते हैं। 


मैंने उसे मना किया और कहा बच्चों के इसके फायदे बता कर उन्हें खिलाया करें। यह बच्चों के लिए है न कि दूसरों के लिए।

रास्ते भर सोचती रही सरकार कितनी सुविधा देती है आंगनवाड़ी के बच्चे हो या अन्य स्टूडेंट्स पर उसका कितना दुरुपयोग होता है।



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