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Krishna Bansal

Drama Tragedy Inspirational

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Krishna Bansal

Drama Tragedy Inspirational

हमारी बाई और उसकी बेटी

हमारी बाई और उसकी बेटी

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आज जब हमारी बाई काम करने आई, वह बहुत उदास थी। उसकी आंखें लाल थीं। बाल बिखरे हुए। बर्तन मांजते हुए बीच बीच में वह अपने सिर को दबा रही थी जैसे उसके सिर में तेज़ दर्द हो रहा हो। उसे टटोलने की कोशिश की तो वह फफक कर रो पड़ी। मैंने उसे सांत्वना देने के लिए उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा 'क्या उसका अपने पति से झगड़ा हुआ है ?'

उसने सिर हिलाकर न में उत्तर दिया।

'बताएगी, तभी मैं कुछ कर पाऊंगी'। 

मैं बोली

'मैम, मेरी बेटी कहती हैं, मैं नौकरी छोड़ दूं। उसकी सहेलियां उसे कहती हैं तेरी मां स्कूल में चपड़ासी है। वह उसी स्कूल में पढ़ती है जहां मैं नौकरी करती हूं। उसे शर्म आती है। उसका दावा है कि उसकी सभी सहेलियां अमीर घरों से है। उनके घरों में बहुत सामान है, खाना पीना, पहनना, ओढ़ना बहुत बढ़िया है। मैंने उसे समझाने की लाख कोशिश की। वह बुरी तरह प्रतिक्रिया देती है। घर छोड़ कर भागने की धमकी देती है। वह रोती है, चिल्लाती है, अपने भाग्य को कोसती है। 

मुझे समझ नहीं आता, मैं क्या करूं आपको पता है मेरा घरवाला कुछ 

विशेष करता नहीं। मन हुआ तो एक दो दिहाड़ी कर ली, मन नहीं हुआ तो गुटखा खाकर लेटे रहता है। पांच जनों का परिवार, कैसे गुज़ारा होगा अगर मैं नौकरी छोड़ दूं या आपके घर आना बंद कर दूं। छोटी बच्ची तो है नहीं कि बात को समझ नहीं सकती। आप से तो क्या छुपाना, हर चौथे दिन में हंगामा शुरु कर देती है।'

'कौन सी क्लास में पढ़ती है तुम्हारी बेटी?'

'आठवीं में पढ़ती है, पढ़ने में भी बहुत होशियार नहीं है। जब भी पी टी एम होती है उसकी टीचर शिकायत ही करती रहती है। ट्यूशन लगाने के लिए भी कहती है। मैं ट्यूशन की पैसे कहां से लाऊं। प्राईवेट स्कूल में उसे इसलिए पढ़ा पा रही हूं क्योंकि मेरी जॉब के कारण एक बच्चे की फीस माफ है। अन्यथा मेरे बस का कहां। बाकी दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। अपने घर परिवार की बात है किससे साझा करूं। किस के आगे रोऊं।'

'कल तुम समय निकाल कर मेरे पास आओ। क्या नाम है तुम्हारी बेटी का? याद आया सुमन। सुमन को भी अपने साथ ले आना, मैं उससे बात करूंगी'।

वह अगले दिन मेरे पास नहीं आई। शाम को बर्तन साफ करने आई तो मैंने पूछा कि वह सुमन को क्यों नहीं लाई। उदास तो वह पहले से ही थी ,उदासी ने उसके चेहरे पर एक और परत चढ़ा दी।

मैम, सुमन ने आने से मना कर दिया, चिल्ला कर बोली ढिंढोरा पीट दो, मेरी बुराइयों का। मुझे नहीं पढ़ना उस स्कूल में जहां तुम चपड़ासी की नौकरी करती हो। मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ।

मन किया उसको एक चांटा लगा दूं परंतु यह सोचकर बेटी जवान हो रही है। मेरे से तो पहले से ही चिढ़ी रहती है और कोई समस्या खड़ी न कर दे, चुप रह गई। बात बढ़ जाती तो उसके पापा भी उसे पीट देते'।

मैंने उसे दो चार दिन रुकने को कहा। मामला थोड़ा ठण्डा पड़ जाए, मैं ही एक दिन तुम्हारे घर चलूंगी। 

मुझे कहीं जाना पड़ गया। पूरा एक महीना मैं शहर से बाहर रही। मुझे युनिवर्सिटी की तरफ से प्रेज़ेंटेशन देने जाना था फिर स्टूडेंट्स का ट्रिप था। वापिस आकर एक दिन बाद मैंने उसके घर जाने की बात कही तो मैंने देखा उसके चेहरा शांत था। बोली 'सब ठीक हो गया है, मैम, फिर कभी जरूरत पड़ेगी तो मैं आपसे कहूंगी'

मेरी जिज्ञासा बढ़ी 'बता तो सही हुआ क्या? 

आप तो कहीं चली गई थीं। सुमन अब चुप रहने लगी थी और मेरी किसी बात पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं देती थी। 

एक

दिन मुझे ऐसा लगा कि वह मुझे कुछ कहना चाहती है।

मैंने उसे कहा 'ला तेरे सिर की मालिश कर दूं। बहुत दिन हो गए, मां से तेल नहीं लगवाया। हर बात पर न करने वाली लड़की नारियल का तेल लेकर मेरे पास चुपचाप बैठ गई। मैंने उसकी चोटी खोली। खूब घने लंबे चमकीले बाल बिल्कुल मेरे बालों की तरह। मेरी सुमन सुन्दर भी बहुत है मैम, आपने तो देखा है उसे। मैंने तेल लगाना शुरू किया, मन ही मन सोच रही थी कि इसको समझाने के लिए कुछ कहूं। इससे पहले मैं कहती, सुमन बोली 'सॉरी मम्मी, मैंने पिछले दिनों आपको बहुत परेशान किया। मुझे पता चल गया है आप कितना परिश्रम करके पढ़ा लिखा रहे हो, पापा तो कुछ करते नहीं, आप ही हमारे खाने पीने का प्रबंध करते हो। मेरी ज़िद करने पर मुझे नए कपड़े दिला देती हो। पिछले दिनों स्कूल जाने के लिए साइकिल भी ले दी। आज के बाद मैं आपको कभी तंग नहीं करूंगी। वह मेरी तरफ मुड़ी और मुझे गले लगा लिया। अश्रु धारा उसकी आंखों से गंगा जमुना की तरह बह रही थी। मेरी भी आंखें भर आई। अपने आंसू पोंछ उसे पानी पिलाया, पीठ थपथपाई।

जब वह शान्त हो गई, मैंने डरते हुए इस बदलाव का कारण पूछा।

उसने बताया कि वह कई दिन पूर्व वह स्कूल वापसी पर अपनी सहेली के घर मुझ से पूछे बिना चली गई थी। हम दोनों बातें कर रही थीं कि उसकी मम्मी हमारे लिए कुछ खाने को लाई और हमारे पास बैठ गई। वह मेरे बारे में तथा आप सब के बारे में पूछने लगी।

मैं अपने और आपके बारे में बताते हुए झिझक रही थी कि आंटी बोली 'मैं तुम्हारे बारे में श्रुति से सब सुन चुकी हूं। मुझे यह भी पता है कि तुम अपनी मम्मी को तंग करती हो और उन्हें नौकरी छोड़ने को मजबूर कर रही हो। मैं स्वयं तुम से मिलना चाहती थी। 

कभी सोचा है अगर मम्मी जॉब छोड़ दे घर कैसे चलेगा। पापा कुछ करते नहीं। पांच लोगों का परिवार है। सब दिन एक जैसे नहीं होते, बेटा। तुम्हें जान कर हैरानी होगी मेरे मायके में कभी हमारा ऐसा ही हाल था। मेरी मम्मी लोगों के कपड़े सिलती थी। उसने मेहनत की कमाई से हम भाई बहनों को पढ़ाया लिखाया और हमें हमारे पांवों पर खड़ा किया। कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता। मैं पढ़ लिख कर जॉब करने लगी तो घर का हुलिया ही बदल गया। वो आगे बोलीं हर कोई अमीर पैदा नहीं होता। कल को तुम पढ़ लिख कर कमाने लगो, तुम सब के दिन बदल जाएंगे। मुझे पता लगा है तुम पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं लेती हो। मेरे पास आया करो मैं तुम्हें पढ़ाऊंगी'। मैम, सुमन ने आगे बताया कि वह श्रुति के घर

कई दिनों से जा रही है। मैं तो स्कूल से देर से लौटती हूं। श्रुति की मम्मी ने उसे विश्वास दिला दिया है कि वह पढ़ लिख कर एक दिन बड़ी ऑफिसर बनेगी तथा घर की ग़रीबी धो डालेगी। 

श्रुति की मम्मी स्कूल टीचर हैं और सुमन को समझाती भी है और उसे पढ़ाती भी हैं। सुमन श्रुति की मम्मी से बहुत प्रेरित लग रही है।

एक और बात, मैं आपसे साझा करना चाहती हूं। 

मेरे से सुमन की हालत देखी नहीं जा रही थी। मैंने एक अन्य स्कूल में एप्लाई किया था मुझे वहां नौकरी मिल गई। जब मैंने यह बात घर में बताई तो सुमन ने मेरे गले लिपट कर कहा, 'मेरी तरफ से कोई समस्या नहीं है आप यहीं ठीक हो। जहां आपको नौकरी मिली है, वह स्कूल इतनी दूर है, आपको आने जाने की दिक्कत आएगी और आप बता रहीं हैं तनख्वाह भी कम मिलेगी।' 

'ठीक है जैसा तुम कहो, मैं बोली।'

मैम, अब मैं इसी स्कूल में ही काम करुंगी।'

मैं देख रही थी सुमन अचानक कितनी बड़ी और परिपक्व हो गई है।


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