Bairagi S

Tragedy

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Bairagi S

Tragedy

#अंतहीन कहानियां

#अंतहीन कहानियां

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जिंदगी में अक्सर कुछ या बहुत सी कहानियां बेमतलब , बेवक़्त ,बेमेल शुरू हो जाती हैं और कहानियां भी ऐसी जिनका कोई अंत नहीं होता।


बस एक दिन अचानक शुरू और किसी दिन अचानक खत्म । क्योंशुरू हुई कैसे खत्म हुई , न कहानीकार को पता न ही किरदार को।


बस रह जाता है तो इस शुरू और ख़त्म के बीच गुजर हुआ वक़्त और लम्हा , जो मुस्कुराहटों के धागों से पिरोया जाता है। कभी ये धागा रेशम सा मजबूत होता है पर वक़्त की सेंध धीरे धीरे इसे उधेड़ देती है और फिर रह जाता है फटा पुराना कपड़ा।


न जो हुआ होता है वो हाथ में होता है , न ही जो हो रहा होता है वो और न ही जो होने वाला होता है। आदमी कुदरत की बनाई हुई सबसे ताकतवर और सबसे मजबूर कौम है वो भी एक ही समय में।

वो मुट्ठी कितना ही बाँधे , लकीरों पर जोर नहीं चल सकता।


कुछ कहानियां लिख पाना भी नेमत है और कुछ का बस दिलों में दफन हो जाना भी नेमत ही है। मौसम भी धीरे धीरे ही बदलता है और हालात भी, इसीलिये जीवन में सबर रखना और निर्मोही होना बहुत जरूरी है। निर्मोही होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कुछ भी कितना भी मिल जाये आदमी अपने अंत तक यही कहता है कि दिल अभी भरा नहीं और कमाल की बात है कि कभी भरेगा भी नहीँ। 


भावनाएं कभी एक जैसी नहीं रहती, परिस्थिति पर बनी मनोस्थितयो पर निर्भर करती हैं। हाड मांस का आदमी मनोस्थिति प्रधान जीव है, व्यवहार, विचार सब इसी से निर्देशित है। दुःखद है पर सत्य है। 


कहानियों की भी अजब फितरत होती है, आगाज़ पर रोक टोक नहीं करती । वो आदमी पर छोड़ देती है लेकिन अंजाम अपने काबू में रखती है , बीच सड़क पर लाकर खड़ा कर देती हैं और कहती हैं यही अंत है। ये कैसा अंत है जँहा से सब शून्य है, एक वो जो आकाश है वो वाला शून्य और एक ये जो कहानी है जिसका अंत भी शून्य में विलीन है। एक बहुत मशहूर गाना है, "आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू... जो भी है बस यही पल है"। भूत और भविष्य की चिंता छोड़ आदमी बस वर्तमान के क्षणिक सुख को ही सत्य मानकर जीता है क्योंकि सुख ही है जो क्षणिक है बाकी दुःख तो शाश्वत सत्य है। तो उन लम्हों में डूबे रहने में दिक्कत कैसी, सच कहें तो दिक्कत डूबने में कभी नहीं होती , हमेशा निकलने में होती है। 

आदमी हमेशा कहता है उसे नहीं पता कि क्या होगा लेकिन नेपथ्य में कहीं न कहीं अंत अपना आभास जरूर देता है, फिर भी व्यक्ति का मन अप्रिय सत्य समय रहते कब स्वीकार कर पाया है। जब तक उस अंतहीन अंत के अनन्त आघातों से आहत न हो ले , इस मनुष्य का सुकून कँहा से आये।


पर क्या ये छोटी सी उम्र लिए अंतहीन कहानियां , किस्सों में शुमार हो जाएंगी या बस ये बिना किसी अंत के अकाल मृत्यु पाई कहानियों का हिस्सा बन जाएंगी। होगा क्या इनका, वही ही होगा जो इनके अंत का हुआ मतलब कुछ भी नहीं होगा। बस एक बिना आवाज की चीख होगी और सब शून्य में विलीन होगा।


जीवन अंतहीन तरीके से अंत होने वाली कहानियों की सतत प्रक्रिया है जो शुरू तो हमारे हिसाब से होंगी पर खत्म तो बस अपनी जिद से एक दिन अचानक बस यूं हीं आँखो से ओझल हो जाएंगी, औऱ अपने आगे छोड़ जाएंगी एक घना कोहरा जो कि एक अधूरा लेकिन शायद अपने आप में एक पूर्ण अंत है और वही अत्य भी है....


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