Sanchit Srivastava

Drama

4.5  

Sanchit Srivastava

Drama

बचपन वाला हैपी न्यू ईयर

बचपन वाला हैपी न्यू ईयर

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ज़िंदगी के हर पड़ाव पर नया साल मनाने का तरीक़ा और उत्साह हर बार बदलता जा रहा है। स्कूल के ग्रीटिंग कार्ड्स से शुरू हुयी नए साल की बधाईयों की जगह अब ऑफ़िस के मेल और वाट्सप के स्टेट्स ने ले ली है। चलो लाईफ़ को रीवाइंड करके देखते हैं की तब गए सालों से ये नए साल मनाने के तरीक़े कितने बदले हैं।

घर और स्कूल वाला न्यू ईयर-

स्कूल टाईम तक तक तो नया साल हमेशा रज़ाई में मूँगफली छीलते और दूरदर्शन पर रंगारंग कार्यक्रम देखते ही बीतता था। 

इस दिन सबकी अपनी २ पसंद की मिठाई आती थी। हमें रसगुल्ला बोले तो छेना ( छेनु नहीं बे छेंना) पसंद था तो भाई को कालाजाम। 

कोशिश रहती थी की आज सोना नही है, बारह बजे तक जागेंगे। पर न कभी नौ मन तेल हुआ और न कभी राधा नाची।

हमेशा घड़ी पर ग्यारह बजते २ हमारे बारह बज जाते थे और ये नींद का सिपाही उधर ही धराशायी हो जाता था।

मिठाई का आनंद लेने के लिए बारह बजे का अलार्म लगाया जाता था। बारह बजते ही अलग माहौल होता था, सोते से उठाकर खिलाया जाता था। 

साल बदलते ही वक़्त के साथ २ माहौल और जज़्बात दोनो बदल जाते थे। शुरुआत के दो हफ़्ते तो बस ग्रीटिंग कार्ड देने में निकल जाते थे। ग्रीटिंग कार्ड पर कुछ बाल कवि शायरी लिखके अपनी कला की स्याही भी बिखेर देते थे। शायरी कुछ यूँ थी

“सूरज निकलता है पूरब की ओर से

नया साल मुबारक हो मेरी ओर से”

लड़कपन की एक अलग होड़ थी। हर किसी की लोकप्रियता का आधार कार्ड्स की संख्या पर निर्भर करता था। 

तारीख़ बदलते ही बार २ वही पुराना साल डालने की गलती भी २-३ हफ़्ते तक चलती थी। उसका अपना अलग ही मज़ा था। 

हुआ क्या था बस एक तारीख़ है तो बदली थी पर हम ख़ुश थे पर क्यों ख़ुश थे क्योंकि तब शायद हम बेफ़िकर थे।


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