#शादीशुदा दोस्त
#शादीशुदा दोस्त
अमूमन तो समाज में बहुत सारे रिश्ते पाए जाते हैं जिनमें से कुछ तो पैदा होते ही बन जाते हैं तो कुछ सामाजिक भीड़ में घुसने के बाद बनते हैं जैसे कि दोस्ती और शादी।
कहते हैं दो लोगों के अगर गुण मिल रहे हों तब उनकी शादी होती है लेकिन अगर अवगुण मिल रहे हों तब दोस्ती ।
ये दोस्ती का पहिया तब तक बिना पंचर हुए एकदम टंच तरीके से सरपट दौड़ता रहता है जब तक दोस्तों की शादी नहीं होती। सयाने कहते हैं कि अगर महिला मित्र यानी कि गर्लसखि का ब्याह हो तो बुरा लगता है लेकिन अगर परममित्र का ब्याह हो तो और भी बुरा लगता है। इस सदमें में आदमी तेरे नाम का सलमान ख़ान बन जाता है वो भी सेकेंड हॉफ वाला।
"ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" से शुरू हुआ सफर "दोस्त दोस्त न रहा" के हाइवे की ओर बढ़ने लगता है।
असलियत में शादीशुदा दोस्त की स्थिति यूक्रेन की तरह हो जाती है जो अमरीका टाईप रिश्तेदारों के कहने पर नाटो मतलब ब्याहित समुदाय का सदस्य तो बन जाता है पर बाद में वही रिश्तेदार जब धप्पा कर देते हैं तो खुद को ठगा सा महसूस करता है और कोढ़ में खाज का काम रशिया टाइप के दोस्त कर डालते हैं, "अरे भाई शादी के बाद तो भूल ही गया", "अब मिलता नहीं है", "बहुत बिजी हो गया है" जैसे ताने दे देकर लौंडे की खाल में भूसा भर देते हैं।
अगर दोनों दोस्तों की शादी हो जाये तब भी ठीक है लेकिन स्थिति तब और भयावह होती है जब किसी एक का ही ब्याह हुआ हो। ऐसे में दूसरा दोस्त ख़ुद को बिना दाल का पानी महसूस करने लगता है जिसमें बस अकेलेपन की हल्दी का पीलापन बचा हो।
ख़लीहर दोस्त तो अभी भी ख़लीहर ही है लेकिन ब्याहता दोस्त की मालकिन आ चुकी होती है अब उसे अपने हर स्टेप मूवमेंट का हिसाब किताब देना होता है। हर शाम रंगीन बनाने वाला लौंडा अब बाज़ार में हरी मटर और लाल टमाटर के रंगों में घुलकर रतौन्धी का शिकार होने लग जाता है।
शादीशुदा दोस्त कभी घर में पेस्ट कंट्रोल करवाने, कभी कामवाली नहीं आई तो दूसरी कामवाली ढूंढने तो कभी मोर्चा लिए बैठी घरवाली के सामने मौन व्रत धारण कर शांति समझौता करने में बिजी रहता है।
लेकिन ख़लीहर दोस्त को लगता है कि उसका दोस्त अब बदल गया है, लेकिन कायदे से देखा जाए तो वो बदला नहीं है बस वो पहले कटी पतंग सा लहराता था अब उसकी डोर किसी और के हाथ में है।
आदमी बदलता नहीं बस जिम्मेदारियां रोक देती हैं क्योंकि बाबू जिम्मेदारियां छुट्टा साँड़ को भी कोल्हू का बैल बना देती हैं।
शादी की बाद व्यक्ति केवल दूसरे व्यक्ति से नहीं जुड़ता बल्कि उसके सुख दुख से भी जुड़ता है ,उसको नए रिश्ते का भी ख्याल करना है। ऐसे में दूसरे दोस्त का काम है कि परिस्थितियों को समझे और समय दे। नहीं तो ऐसा कौन है जो अपने दोस्तों के साथ बैठकर अपने बीते पल याद नहीं करना चाहता। वो लड़कपन वो बेवकूफियां जो वापस यादों के समुंदर में गोते लगवाती हैं, कौन उनमें डूबकर कहकहों के किनारे नहीं लगना चाहता।
बस एक वक़्त के दायरे में सिमटकर रह जाती है जिंदगी, जिंदगी जो कभी पूरा 2 दिन दोस्त के साथ गुजरती थी आज साल में एक दो बार भी साथ नहीं गुजर पाती।
शादीशुदा दोस्त को भी ख़लीहर दोस्त का दर्द समझना चाहिये । कैसे भी ये शिकायत को किनारे करे कि भाई वक़्त ही नहीं मिलता मिलूं कैसे? अरे भाई वक़्त तो किसी को नहीं मिलता बस निकालना पड़ता है।
यही कहना है कैसे भी हो महीने दो महीने में वक़्त निकालिये और अपने पुराने और सच्चे प्यार यानी कि अपने दोस्तों से मिलते रहिये, दिल में खुशी भी रहेगी और साथ में जीने की इच्छा भी बनी रहेगी। आज के क्या हर दौर की दौड़ती भागती जिंदगी में ये दोस्त ही रिवाइटल हैं जो आपको तनाव से बाहर निकालेंगे लेकिन ज़रा संभलकर तनाव में डालेंगे भी साले यही लोग।
बाकी जो भी हो मोदी जी के शब्दों में अगर कहें तो "ये दोस्ती बनी रहे" और अपने शब्दों में "मस्ती चलते रहे"।
