#रामलला की वापसी
#रामलला की वापसी
लाखों सिर कटी लाशें है, उन कटे हुए सर में अश्रुपूर्ण आँखे हैं, कुछ टूटी हुई मूर्तियां हैं, हजारों लहलहाती खून में सनी लाल तलवारें हैं , एक मंदिर है जिसे तोड़ा जा रहा है, एक शासक है जो उज्बेकिस्तान से आया है, जिसका ये आदेश है कि बुतों और बुतपरस्तों को ख़ाक में मिला दिया जाये, उसका नाम बाबर है और साल है 1528।
करोड़ों भक्ति भाव पूर्णित आँखें हैं जिनमें प्रेम के अश्रु हैं, एक भव्य मंदिर है, जिसमें प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, सरयू के किनारे एक नगरी है जिसका नाम अयोध्या है, जो सजी हुई है तरह तरह के चमकदार दीपों से, जो कि प्रकाशवान है श्रद्धालुओं की भावनायों से। इस बार दीपावली कार्तिक की जगह माघ में ही मनाई जा रही है।अवसर है श्रीराम के जन्मभूमि पर वापस पधारने का और साल है 2024।
इन दोनों ऐतिहासिक घटनाओं के बीच लगभग 500 साल , पांच पीढियां और हजारों तर्क वितर्कों का संघर्ष है। संघर्ष है , अपनी विश्वास , अपने आराध्य के अस्तित्व को पुनः प्रमाणित करने का। संघर्ष है बरसों से चली आ रही राम राम करने की परंपरा में श्रीराम के होने की वास्तविकता को न्यायालय में प्रमाणित करने का। संघर्ष है रामलला को पुनर्स्थापित करने का।
इसी बीच कितने ही वाद विवाद हुए, जाने कितने ही प्रश्न खड़े किए गए मंदिर के अस्तित्व से लेकर राम के अस्तित्व तक। अंग्रेज आये गए , देश आज़ाद हुआ पर अस्तित्व आजाद नहीं हो पाया। सरकारें आयी गयी , फ़ैसले आये गए, प्रमाण आये गए , कितने दशहरे आये गए पर विडम्बना तो देखो , "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" में विश्वास रखने वाले रामलला अपने ही समाज और अपने ही लोगों के बीच अपनी जन्मभूमि अयोध्या नहीं लौट पाए।
अपने ही मंदिर पर पुनः अधिकार मांगना ऐसा हो गया था जैसे अतीक अहमद से हथियाई हुई अपनी जमीन मांगना।
जिस हिसाब से मुगलों ने मंदिर तोड़े उसकी फेहरिस्त निकालने जाए तो अंत नहीं मिलेगा। फ़िर भी सब नहीं मांगा , बस पांडवो की तरह "दे दो केवल पांच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम " के आधार पर बस अपने आराध्यों की जन्म भूमि पर अधिकार ही वापस मांगा।
नैतिक रूप से जिम्मेदार समाज अपनी गलती और पाप स्वीकार करते हुए, पश्चाताप के साथ अधिकार वापिस कर देता। लेकिन ऐसा कैसे सम्भव था, बात श्रीराम की थी और श्रीराम के जीवन में संघर्ष न हो, ऐसा कैसे हो सकता है।
शतकों संघर्ष चला, पीढियां दर पीढियां गुजरती गयी श्रीराम की प्रतीक्षा में। लेकिन अन्ततोगत्वा बरसों चली लड़ाई अंत में रामलला के पुनर्स्थापन पर आकर समाप्त हुई।
आपकी हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है जो ये पुनर्स्थापन देख पा रही है। नहीं तो न जाने कितनी पीढ़िया लोक से परलोक श्रीराम की प्रतीक्षा ही करती रह गईं।
बनवास थोड़ा लम्बा था, पर न धैर्य छूटा ,न विश्वास टूटा कि श्रीराम वापिस आएंगे।
बाकी कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन भावनाओं की नदी को शब्दों के बाँध में बांधा नही जा सकता है।
क्योंकि भावनाएं असीम है और असीम है श्रीराम के प्रति श्रद्धा और विश्वास जिसने आज श्रीराम को वापस अयोध्या आते दिखाया है जँहा आज एक भव्य मंदिर है, जिसमें प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, अयोध्या सजी हुई है तरह तरह के चमकदार दीपों से, जो कि प्रकाशवान है श्रद्धालुओं की भावनायों से। दीपावली कार्तिक की जगह माघ में ही मनाई जा रही है। अवसर है श्रीराम के जन्मभूमि पर वापस पधारने का और साल है 2024।