#CAB अतिथि देवो भव~

#CAB अतिथि देवो भव~

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भारत एक सेक्युलर, सम्पन्न( बाक़ी पड़ोसियों से )और शांतिप्रिय देश है।इसलिए कई देशों के नागरिक यहाँ बसना चाहते हैं।

भारत शरणार्थियों को शरण देने में भी काफ़ी आगे रहा है और इसलिए दूसरे देशो में धर्म के आधार पर सताए हुए लोगों को भी एक मौक़ा दे रहा है।

नागरिकता संशोधन बिल मतलब अफगनिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश के 6 समुदाय के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता प्रदान करना।


अब सवाल ये है की मुस्लिम संप्रदाय को शामिल क्यों नहीं किया गया।

इसका पहला कारण ये है की ये तीनो इस्लामिक देश हैं, जिसके दरवाज़े ज़ाहिर सी बात है मुस्लिमों के लिए खुले होने चाहिए।इनका फ़र्स्ट लव यही है।

दूसरा यहाँ मूल धर्म को छोड़कर बाक़ी धर्मों को मानने वालो की दुर्दशा हो रखी है, जिसमें सरकार भी शामिल है।शायद इन्होंने राहत इंदौरी को नहीं सुना है या बहुत ही गम्भीरता से सुना है, सभी का खून शामिल है इस मिट्टी में, इन्होंने प्रापर्ली अल्पसंख्यकों का खून निकालके मिट्टी में मिलाकर देखा है।बाक़ी उस मिट्टी पर अधिकार बहुसंख्यक का होगा।


अल्प समुदाय की महिलाओं को पैदल नहीं चलने दिया जाता, घर से ही सीधे उठा लिया जाता है।कँवारी न रह जाए इसलिए इनके साथ बलात्कार और जबरन विवाह होते हैं।ग्लोबल वार्मिंग, भूख, महंगाई से न मर जाए इसलिए ईशनिंदा के फ़र्ज़ी मामले बनाके मौत दे दी जाती है।

अभी पाकिस्तान में एक हिंदू महिला डॉक्टर की धर्म के आधार पर बलात्कार और हत्या का मामला ज़्यादा पुराना नहीं है।क्या ज़रूरत थी इसको इतना पढ़ने की आख़िर वहाँ के सम्भ्रांत बहुसंख्यक बैठे जो हैं अल्प के इलाज के लिए, लगा दिया ठिकाने, कर दिया इलाज।


असहिष्णुता और सहिष्णुता क्या होती है, एक बार उनकी दशा के बारे में थोड़ा खोजबीन करे समझ जाएँगे।ये तीन देश अल्प।के लिए जन्नत हैं।सांसारिक कष्ट नहीं होने देते, सीधे मुक्ति दे डालते हैं।


मुक्ति का तो ये आलम है कि पाकिस्तान में जहाँ विभाजन के समय 24% हिंदू थे आज 1% से भी कम बचे हैं।बांग्लादेश जब बना तब ये संख्या 12% थी जो कि आज 8।5% हो गयी है बाक़ी अफगनिस्तान का तो कहना ही क्या वहाँ कौन बचा है।

सबसे ज़्यादा लकी तो बचे हुए सिख पारसी ईसाई जैन और बौद्ध निकले क्योंकि इनकी संख्या हिंदुओं से भी नगण्य है।


इन देशों का अल्प के प्रति सेवाभाव इतना है कि कई क़ानून एसे बनाए है की अल्प समुदाय का व्यक्ति ऊँचे अहोदो पर नहीं जा सकता, क्योंकि बेटे आप बस चिल्ल करो, हमें बताओ हम करके देंगे।

बंदा कहीं बैरागी या सन्यासी न हो जाए इसलिए हज़ारों मंदिर तोड़े गए, बुद्ध की की प्रतिमा तोड़ी गई और अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ और कार्यक्रम पर भी रोक लगा दी, प्यार जो इतना है।


साफ़ ज़ाहिर है कौन देश सही मायने में सहिष्णुता का पालन कर रहा है।


हमारे देश की संस्कृति हमेशा से वसुधैव कूटुम्बकम और अतिथि देवो भव वाली रही है।मतलब की सारा संसार ही अपना घर है न की मेरा घर ही सबका संसार है।और अतिथि इतने आए की अब मेज़बान ही मेहमान बन गए।


अब वहाँ के अल्प आलसी और एहसान फ़रामोश हो गए है।अपनी एशो आराम वाली ज़िंदगी छोड़कर पलूशन वाले इन्वायरोन्मेंट में पचास साठ साल जीना चाह रहे है।हमारी सरकार भी अजीब है इनको बुलाकर इनसे काम करवाना चाह रही है, सुरक्षा देने को बोल रही है।बोलती है हम तुम्हारी प्रजाति बचाएँगे।अमा तुम बचाओगे बे वो भी जयचंदो के रहते।


ये जो तीन देशों के बहुसंख्यकों से अल्प की सेवा का जो अधिकार छीना जा रहा है मैं उसकी कढ़ी चावलों में निंदा करता हूँ।वहाँ के बहुसंख्यकों का कहना है “ठुकरा के मेरा प्यार मेरा इंतक़ाम देखेगा”


यहाँ पर भी CAB के विरोध में हमाए सम्भ्रांत भाईयो ने चलती ट्रेन पर फूल बरसाकर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया।मैं इनके साथ हूँ, सरकार ही कहती है।देश की संपत्ति आख़िर हमारी ही तो है।अब हम चाहें उसमें पानी डालें या पेट्रोल तुमाए अब्बा का का जातो हे, हैं?


सरकार से विनती है, तीनो देशों से ये निस्वार्थ सेवाभाव का ये अधिकार न छीने।बाक़ी देखो कितने जगहों पर अभी डीडीटी का छिड़काव होगा और कितनी ट्रेनो पर फूल बरसेंगे।



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