Akanksha Gupta

Abstract

4.5  

Akanksha Gupta

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अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता

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आरज़ू बैंच पर बैठ कर ढलते हुए सूरज को निहार रही थी। मयंक उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था लेकिन शाम हो चुकी थीं और ठंडी हवा की वजह से आरज़ू के बीमार पड़ने का खतरा था। यही सोचकर मयंक ने उससे कहा- “अब हमें चलना चाहिए, रात होने वाली हैं और तुम्हारी बॉडी को भी रेस्ट चाहिए।”


आरज़ू ने लंबी सांस लेते हुए कहा- “जब से दुनिया में आई हूँ, आराम ही तो किया है मैंने। अब औऱ आराम नहीं होता मुझसे। मैं भी ढल जाना चाहती हूँ इस सूरज की तरह। मन, मैने सुना है कि जो लोग दूसरों के लिए मुसीबत बन जाते हैं उनके लिए गवर्नमेंट ने इच्छा मृत्यु का प्रावधान किया है।” आरज़ू ने मयंक की ओर आशा भरी नज़रों से देखा।


मयंक उसकी यह बात सुन सकतें में आ गया था। उसने आरज़ू को लगभग झिंझोड़ते हुए तेज़ आवाज में कहा- "हेव यू लॉस्ट योर माइंड अरु, मैंने तुमसे कहा था ना कि ट्रीटमेंट के बाद तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी, फिर तुम इस तरह की बात कैसे कर सकती हो? क्या तुम्हें मुझपर बिल्कुल यक़ीन नहीं है?”


आरज़ू उसकी बात सुनकर धीरे से बोली- “मुझे तुमपर पूरा यकीन हैं लेकिन मेरी वजह से सबको परेशानी....”


आरज़ू आगे कुछ कहती, उससे पहले ही मयंक ने उसे गोद में उठाया और कार में ले जाकर बिठा दिया। उसे आरज़ू की बातों पर गुस्सा आ रहा था। जब दोनों कार से घर की ओर लौटने लगे तो आरज़ू ने माहौल हल्का करने के लिए कहा- “और वैसे भी मोहल्ले में हम दोनों को लेकर ना जाने कैसी-कैसी बातें होती रहती हैं। मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।”


"हाँ तो इसके लिए तुम मरना चाहती हो। फिर लोग कहेंगे कि ना जाने मैंने तुम्हारे साथ ऐसा क्या कर दिया जो.....” मयंक आगे कुछ बोल नहीं पाया लेकिन उसे अभी भी गुस्सा आ रहा था।


मयंक ने थोड़ी देर बाद शांत होकर कहा- “ऐसा करते है कि इस नये साल सामुहिक रक्षा बंधन का कार्यक्रम रखते है, वहाँ पर तुम मुझे राखी बांध देना मोहल्ले की गॉसिप बंद।”इतना कहकर वो हँसा और फिर बोला- अच्छा इस बार क्या चाहिए क्रिसमस पर?” इस पर आरज़ू चुप हो गई।


तीन दिन बाद क्रिसमस था। आरज़ू घर में मयंक का इंतज़ार कर रही थी। व्हीलचेयर से दरवाज़े तक पहुंच कर उसने देखा तो मयंक किसी लड़की के साथ खड़ा था। उन दोनों ने आरज़ू के पैर छुए।


मंयक ने अंदर आते हुए पूछा- “अपनी बहू को आशीर्वाद नहीं दोगी दीदी?”


आरज़ू की आँखे नम थीं, बोली- मैं इसके अलावा कुछ दे भी नहीं सकती।”


मंयक घुटनों पर बैठ गया और बोला-"आपने तो इस अनाथ को परिवार दिया, अम्मी ने परवरिश दी, डॉक्टर बनाया और क्या देना चाहती हैं आप? आपने मुझे भाई-बहन का अनोखा रिश्ता दिया और आज लड़को की तरह सज कर मुझे चौंका दिया।" इस बात पर आरज़ू को हँसी आ गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही बच्चा हैं जो उसने मन्दिर की सीढ़ियों पर देखा था।


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