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Namrata Saran

Classics

4  

Namrata Saran

Classics

अनमोल

अनमोल

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"वाओ, ब्यूटीफुल, लाजवाब पोट्रेट, और ये लाल लाल गालों पर ढुलकते टीयर्स, ऑसम, आपने तो कमाल ही कर दिया, शोला और शबनम, एक-साथ.. क्या बात है!कितनी कीमत रखी है आपने इस पेंटिंग की, मैं इसे खरीदना चाहूंगा" चित्र प्रदर्शनी में एक दर्शक ने एक तस्वीर को देखते हुए कहा।

"एक मिनट रुकिए आप, इसमें कुछ फाइनल टच रह गया है, बस अभी किए देता हूं, फिर दाम भी बता दूंगा" चित्रकार ने ब्रश उठाते हुए कहा, और तस्वीर के आंसुओं को मिटाने लगा।

"अरे चित्रकार साहब, यह क्या कर रहे हैं आप, तस्वीर की जान ही खत्म कर रहे हैं, इसके आंसू पोंछ दिए तो फिर रह ही क्या जाएगा इस तस्वीर में" दर्शक ने चित्रकार के हाथ को रोकते हुए बोला।

"जी जनाब, मैं

अपनी भूल को सुधार रहा हूं, क्योंकि यहां अधिकतर लोगों ने इस तस्वीर को इसके आंसुओं के कारण, बेहतरीन और लाजवाब कहा, लेकिन साहब, किसी लड़की के आंसू,उसका दर्द, कैसे खूबसूरत हो सकता है, क्या हम स्त्री को इस तरह दर्द याफ़्ता देखकर ही सुकून पाते हैं, क्या उसके आंसू ही बिकाऊ है, क्या उसका दर्द ही वजनदार है, नहीं साहब नहीं, न बिके तो कोई ग़म नहीं, लेकिन किसी अबला के दर्द की बोली,अब मैं तो नहीं लगाऊंगा, हां साहब,अब मैं आपको इसकी कीमत बतलाता हूं, 'अब यह तस्वीर अनमोल है, इसका कोई मोल नहीं, मैंने इसके आंसू पोंछ दिए हैं, अब देखिए कितनी सुंदर दिख रही है मेरी कृति' चित्रकार ने गर्व से कहा, और नीचे लिख दिया,

"यह कृति बिकाऊ नहीं है।"


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