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Namrata Saran

Others

3  

Namrata Saran

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अनुपम कृति

अनुपम कृति

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"आ गए आप, चलिए हाथ मुंह धो लीजिए, मैं चाय लेकर आती हूं" ऑफिस से लौटे चंद्रकांत जी से रोहिणी ने कहा।

"हां भई, जल्दी से चाय पिला दो, ज़रा थकान उतर जाए" चंद्रकांत जी ने बैग रखते हुए कहा।

"ये लीजिए चाय और साथ में कचौड़ियां" रोहिणी ने चाय नाश्ता टेबल पर रखते हुए कहा।

" वाह, मज़ा आ गया "चंद्रकांत जी ने कचौड़ी का निवाला गुटकते हुए कहा।

"आहह..." तभी रोहिणी सोफे से टिकते हुए कराह उठी।

"क्या हुआ?" चंद्रकांत जी ने घबराकर पूछा।

"कुछ नहीं जी, आज साबूदाना के पापड़ बनाए हैं, तो उन्हें सुखाने, पलटने में कमर अकड़ गई है और धूप के कारण सिर भी चढ़ गया है" रोहिणी ने हथेलियों से सिर दबाते हुए कहा।

"क्यों खटती रहती हो, सब मार्केट में मिलता है, बेकार ही थकती रहती हो" चंद्रकांत जी विचलित होते हुए बोले।

"हॉं, सब मार्केट में मिलता है, पर आपको तो पता है न कि अक्की को मेरे हाथ के ही पसंद है" रोहिणी ने कहा।

"चलो अब सिर पर बाम लगा लो और थोड़ी कमर की सिकाई कर लो, मैं बॉटल गर्म कर देता हूं" चंद्रकांत जी बोले।

"ठीक है जी" रोहिणी ने उठते हुए कहा। तभी डोरबेल बजी।

"अक्की होगा, ज़रा देखना तो आप" रोहिणी ने कहा। चंद्रकांत जी ने दरवाजा खोला, बेटा अखिलेश ऑफिस से लौटा था।

"आ गया बेटा ?" रोहिणी ने अखिलेश को देखते ही कहा ।

"हॉं मम्मी, जल्दी से कुछ खाने को दो, आज ऑफिस में लंच नहीं कर पाया, बहुत ज़ोर की भूख लगी है" अक्की ने घर में घुसते ही कहा।

"अरे लंच क्यों नहीं किया, ऐसा भी क्या काम , काम और काम...चल बेटा तू फ्रेश होकर आ तब तक मैं गर्मागर्म कचौड़ियां लाती हूं , कॉफी के साथ " रोहिणी उसके भूखा होने की बात सुनकर जैसे बोखलाकर बोली और किचन की ओर दौड़ी।

"अरे सुनो तो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, अभी कुछ सूखा नाश्ता और कॉफी दे दो अक्की को, तुम थोड़ा आराम कर लो, फिर बना देना गर्म कचौड़ी, अभी तो तुम क….." चंद्रकांत जी पीछे से किचन में आकर बोले।

"श्श्शश, चुप रहिए, अभी उसने सुन लिया तो खाने को मना कर देगा, दिन भर का भूखा है मेरा लाल, कुछ नहीं हो रहा मुझे , आप जाओ बाहर, और खबरदार जो एक शब्द भी बोले तो " रोहिणी ने जल्दी से चंद्रकांत जी को चुप कराते हुए कहा।

"ले बेटा एक और, अभी तूने खाया ही कितना है, ले यह हरी चटनी भी ले"

रोहिणी अपना सब दर्द भूलकर अखिलेश को दौड़ दौड़ कर कचौड़ियां खिला रही थी और चंद्रकांत जी सोच रहे थे कि-

"सच में, मॉं ईश्वर की अनुपम कृति है"



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