वटवृक्ष
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"इन्होंने अन्न जल त्याग दिया है, जीने की इच्छा ही खत्म हो गई है शायद, दो बेटे हैं, लेकिन कोई खबर तक लेने नहीं आया, अभी तीन महीने पहले ही हमारे वृद्धाश्रम में आईं हैं, डॉक्टर साहब कुछ कीजिए, ताकि इनके शरीर में जान आ जाए" कोपल वृद्धाश्रम के संचालक मनोहर बाबू ने चिंतित स्वर में कहा।
"हम अपनी तरफ से हर कोशिश करेंगे, लेकिन ऐसे केस में जहां, इंसान की जीने की चाह ही खत्म हो जाती है तो थोड़ा मुश्किल ही होता है " डॉक्टर ने नब्ज़ देखते हुए कहा।
"क्या नाम है इनका" डॉक्टर ने पूछा।
"सांत्वना मिश्रा "मनोहर बाबू ने कहा।
"सांत्वना मिश्रा ssआं..ह...हांsss, ये तो सांत्वना मैडम ही हैं, हमारी स्कूल प्रिंसिपल, ओ माय गॉड, यह तो बहुत ही बोल्ड और स्ट्रांग थी, इस हालत में कैसे पहुंचीं" डॉक्टर सुयश विचलित होते हुए बोले।
"डॉक्टर साहब, अकेलापन, नासूर बन जाता है, जिन अपनों के लिए, हम ज़िंदगी होम कर देते हैं वही अगर जड़ें काट दें तो फिर क्षरण होने लगता है "मनोहर बाबू लंबी सांस लेते हुए बोले।
"सिस्टर, इनका ट्रीटमेंट शुरू कीजिए, तब तक मैं इनकी संजीवनी का प्रबंध करता हूं "सुयश ने कहा और मोबाइल पर नंबर मिलाने लगा।
"मैडम"
"अरे, सांत्वना मैडम"
"डियर मैडम"
कुछ ही देर में सांत्वना मैडम के बेड के चारों ओर उनके भूतपूर्व छात्र खड़े थे, सभी की आंखें नम थीं, सांत्वना के चेहरे पर पहली बार मुस्कान दिखी।
"गुड, यह हुई न बात, चलिए अब मैडम, अपने शैतान स्टूडेंट्स के हाथों से ज्यूस पिएंगी, मैम मुंह खोलिए, ओपन योर माउथ" एक स्टूडेंट ने अपनी बाहों के सहारे से उन्हें थोड़ा बिठाया, दूसरे स्टूडेंट ने जूस का गिलास मुंह से लगाया, मैडम कुछ बोल नहीं पाईं, जूस का एक सिप लिया।
"एक सिप मेरे हाथ से " तभी एक अन्य स्टूडेंट ने गिलास पकड़ते हुए कहा और मैडम को इसी तरह सबने एक एक सिप पिलाकर पूरा गिलास जूस पिला दिया।
"ओ माय डियर स्टूडेंट्स " कहते हुए मैडम की आंखें छलछला उठी।
"मैम अब से आप हमारी स्टूडेंट हैं और आपको वही करना होगा जो हम कहेंगे, ये देखिए कितने मजबूत बाजू खड़े हैं आपको सींचने के लिए, आपके आशीर्वाद की छाया हमें अब भी चाहिए , आपको ऐसे मुरझाने थोड़े ही देंगे, "आप तो हमारी वटवृक्ष हैं।"