शुभ रंग
शुभ रंग
"बिटिया आज जमींदार ने बुलाया है, होलिका दहन के बाद ढोल बजाना है, जशन का इंतज़ाम है" बाबा ने कहा।
"ठीक है बाबा" रंगीली बोली।
बाबा ने अकेले ही रंगीली को पाल पोस कर बड़ा किया था, माँ की तो छवि भी रंगीली को याद नहीं थी। ढोलक बजाने का काम था बाबा का। शादी विवाह या अन्य कोई उत्सव हो, बाबा को ही ढोल बजाने के लिए बुलाया जाता था। छोटी सी रंगीली भी बाबा संग घूमती रहती, शाम को कमाई के पैसों से राशन ले जाते और दोनों मज़े से भोजन करते और सो जाते, अगले दिन फिर निकल पड़ते ढोलक लेकर, अच्छी चल रही थी ज़िंदगी। समय के साथ रंगीली बड़ी हो रही थी, यौवना रंगीली बेहद ही आकर्षक और खूबसूरत दिखने लगी। बाबा ने उसे ढोल बजाना भी सिखा दिया था, अब तो दोनों बाप बेटी वो ढोलक बजाते थे कि रंग जमा देते थे। जमींदार की हवेली पर रात में जाना था, कुछ सोचकर बाबा ने कहा-
"बिटिया तू रहने दे, मैं अकेला ही चला जाऊंगा, रात काफ़ी हो जाएगी, तेरा घर ही में रहना ठीक है" बाबा ने कहा।
"नहीं बाबा, मैं भी चलूंगी, जसन में तुम ज़्यादा ही पी लेते हो, तुम्हारे साथ मेरा होना ज़रूरी है" रंगीली ने कहा।
"अरे नहीं बिटिया, नहीं पीऊंगा ज़्यादा" बाबा ने कहा।
"मैं चलूंगी, मतलब चलूंगी, बस" रंगीली ने ज़ोर देकर कहा, हारकर बाबा ने हॉं कर दी।
होलिका दहन के साथ ही ढोल बजना ,रंग उड़ना शुरू हो गया और पीने पिलाने का दौर भी।
"ये ले ढोली, खूब पी और ज़रा तबीयत से रंग जमा ढोल का" ज़मींदार के लड़के ने रंगीली को घूरते हुए कहा।
"बाबा, ज़्यादा मत उतारियो" रंगीली ने बाबा से कहा।
"हाँ, हाँ..तू चिंता मति कर" बाबा ने कहा, पर जहाँ मुफ़्त की मिल रही हो वहाँ बाबा कहीं रुकने वाला, छककर पीए जा रहा और ज़ोर ज़ोर से बजाए जा रहा ढोल।
आधी रात हो चली, बाबा पीकर बेसुध हो गया।
"अब जमेगा रंग होली का" जमींदार के लड़के ने कहा।
"ए लड़की, तेरा बाप तो औंधा हो गया, अब तू रंग जमा, दिखा अपना जलवा" कहकर जमींदार के एक लड़के ने नशे में झूमते हुए रंगीली का दुपट्टा उड़ा दिया। रंगीली काँप उठी।
"खबरदार, जो किसी ने भद्दी निगाह डाली इसपर, होली का मतलब हुडदंग नहीं है, गाँव की इज़्ज़त हमारी इज़्ज़त है, ये लो बेटी अपना दुपट्टा और हवेली के भीतर जाओ, वहाँ घर की महिलाएं है, खाना खाकर सो जाओ और सुबह जब तुम्हारे पिता होश में आ जाएं तब उनके साथ घर चली जाना" जमींदार ने रौबदार आवाज़ मे कहा, लड़के दुबक गए।
"शुभ होली बिटिया" कहकर, जमींदार ने रंगीली का दुपट्टा उठाकर उसके सिर पर रख दिया, रंगीली की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, कृतज्ञ भाव से उसने जमींदार के चरण स्पर्श किया और कहा-
"बाऊजी, आपने मेरा जीवन बेरंग होने से बचा लिया, ज़िंदगी भर न छूटेगा, यह स्नेह और आशीर्वाद का रंग "