Namrata Saran

Classics

4.5  

Namrata Saran

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विश्वास की जीत

विश्वास की जीत

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"छोटी सी कहानी से, बारिशों के पानी से, सारी वादी भर गई,,ना जाने क्यों दिल भर गया, ना जाने क्यों आंख भर गई" बारिश का लुत्फ उठाते हुए पनवाड़ी अपनी गुमटी में ट्रांज़िस्टर पर गीत सुन रहा था, सामने के कच्चे मकान में सुक्को उसी गीत को सुनते हुए भरी हुई आंखों से बारिश की ताक रही थी।

अभी खेलने कूदने की ही तो उम्र है उसकी, लेकिन क़िस्मत ने तो उससे बचपन ही नहीं,यौवन भी छीन लिया, मां-बाप ने अपनी छोटी सी बेटी को, बाप की उम्र के अधेड़ और नशेड़ी नाथा के साथ बियाह दिया, जो सुक्कों को एक बच्चे की मां बनाकर, विवाह के दो बरस बाद ही , जहरीली शराब पीकर चल बसा।

बेचारी सुक्को जब तक जीवन को समझ पाती, उसकी दुनिया ही वीरान हो चुकी थी, हंसने खेलने की आयु में सदा के लिए चुप हो गई, बच्चे की परवरिश के लिए घरों में बर्तन , झाड़ू करते हुए मानो अपने जीवन को घसीट रही थी, न कोई उमंग ,न ही जीने की चाह।

"अम्मा, अम्मा,,मम पानी, आओ हम भीगें" तभी अचानक नन्हे से बेटे झिंझोड़कर कहा।

"नहीं बेटा नहीं, बीमार पड़ जाओगे" सुक्को ने बहाना बनाया।

"बीमार तो तुम उसे कर दोगी, जो हो चुका उसे भुला दो, तुम्हारे सामने, तुम्हारा आज खड़ा है, तुम्हारा विश्वास, अभी बहुत ज़िंदगी पड़ी है, कैसे निकालोगी, एक बार विश्वास के साथ कदमताल मिलाकर तो देखो, देखना थिरक उठेगी ज़िंदगी" सामने से पनवाड़ी ने ऊंची आवाज़ में कहा। (जो सुक्को से काफी बड़ी उम्र का था)

"विसु, चल बेटा भींगे" बिजली की गति से सुक्को ने अपने बेटे विश्वास का हाथ थामते हुए कहा।

"डफली वालेsss, डफली बजाssss "पनवाड़ी ने गीत की आवाज़ बढ़ा दी, और भरी आंखों से निहारता रहा, विश्वास की जीत को।


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