Namrata Saran

Classics

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Namrata Saran

Classics

लाईफ लाईन

लाईफ लाईन

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"सुनो, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है कि आप मेरी तिमारदारी करें, आदत नहीं है न" अनुराधा जी कातर निग़ाहों से देखती हुईं बोलीं।

"जानता हूँ, तुम तो हमेशा मेरी और परिवार की सेवा में लगीं रहीं, हमारा जीवन भी कैसा निकला, तुम अपने कर्मक्षेत्र मे मगन रहीं और मैं अपने कर्मक्षेत्र मे व्यस्त रहा, हमने कभी साथ बैठकर प्यार की दो बात भी नही की, अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते रहे हम दोनों, अब जीवन के इस आखिरी पड़ाव पर इस बात का एहसास होता है, शायद इसी वज़ह से तुम अंदर ही अंदर घुटती रहीं और ये बीमारी पाल ली" राजेंद्र जी ,पत्नी के हाथ को थामकर बोलें।

"मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं, आपने परिवार चलाने के लिए अपने आप को काम में व्यस्त रखा, निकल गया जीवन, अब तो ईश्वर का बुलावा आ गया है, मुझे खुशी खुशी विदा करना" अनुराधा जी की आँखों में आँसू चमकने लगे।

"तुम अभी कहीं नहीं जा रहीं, अब तो हम एक दूसरे के लिए जिएंगे, अब जितना भी वक्त बचा है हमारे पास, वह सिर्फ़ हम दोनों एक दूसरे को देंगे, और सुनो ज़रा अपना कान इधर लाओ-

"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, क्या अब तुम मेरे लिए जीना नहीं चाहती"।

मॉनिटर पर दिल की धड़कन अठखेलियाँ करने लगीं।



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