अंखियों के झरोखों से..भाग 5
अंखियों के झरोखों से..भाग 5
अगले दिन सुबह मिनाक्षी जी तैयार होकर गेट पर आदित्य जी का इंतज़ार कर रहीं थीं। पांच मिनट ऊपर हो चुके थे। और उनका पारा अब सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। तभी उन्हें आदित्य जी आते दिखाई दिए। ट्रैक सूट में वो अलग ही नज़र आ रहे थे।
"गुड मॉर्निंग!" आदित्य जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"आप पांच मिनट लेट हैं आदित्य। समय की कद्र करना कब सीखेंगे। मैं यहां पागलों की तरह इंतज़ार कर रही हूं और साहब आ रहे हैं मस्ती में टहलते हुए।" मिनाक्षी जी न्यूक्लियर बॉम की तरह फट पड़ीं।
वो बोलती जा रहीं थीं और आदित्य जी मुस्कुराते हुए उन्हें देखते जा रहे थे। उन्हें यूं हंसता देख मिनाक्षी जी झेंप गईं और बोलीं,"हंस रहे हैं? क्यों? जोक नहीं सुना रही मैं आपको।"
"इतने सालों बाद फिर वही डांट खाने का बहुत मन था। इसलिए पांच मिनट लेट आया। पहले विचार आया कि शायद नहीं डांटोगी। पर…. खुशी हुई ये देखकर कि कम से कम इस मामले में कोई बदलाव नहीं आया। एक मिनट की देरी भी तुम्हें….अ...मतलब...आपको परेशान कर देती है। अब चलें।" ये कह आदित्य जी हंसते हुए झील की दिशा में चलते गये।
मिनाक्षी जी भी मुस्कुराते हुए उनके साथ चलती रहीं। रास्ते में आदित्य जी उनका आसपास के एरिया से परिचय करवा रहे थे। सब्जियों की दुकानें, राशन की दुकान, बेकरी की दुकान वगैरह वगैरह।
दोनों झील पहुंचे। वहां का वातावरण मन को आनंदित करने वाला था। चारों तरफ पक्षियों की चहचहाहट। शांत झील में खिले कमल के खूबसूरत फूल। झील के बीचों बीच बने टापू पर एक विशाल पेड़ पर बैठे अनगिनत पक्षी। शांत, सोम्य और फूलों की महक से सुगंधित वातावरण। कुछ पलों के लिए मिनाक्षी जी वहीं खड़े होकर प्रकृति के उस पवित्र उपहार को निहारती रहीं।
"है ना खूबसूरत वातावरण? दिन की ऐसी शुरुआत हो जाए तो पूरा दिन बढ़िया गुज़रता है।" आदित्य जी उनके पास आकर बोले।
"हम्मम...सच में।" मिनाक्षी जी ने सहमति जताते हुए कहा। फिर वो यकायक बोलीं,"आप किससे मिलवाने वाले थे?"
"अरे हां! लो मैं तो भूल ही गया।" ये कहकर वो इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगे। तभी किसी ने ज़ोर से उनके कन्धे पर हाथ मारा। आदित्य जी पलटे और बोले,"कहां था तू? कितनी बार कहा है हकीम, समय पर आया कर।"
"हर रोज़ एक ही लैक्चर सुन कर बोर हो गया हूं भाई। कुछ तो नया बोला कर।" राम आहूजा, आदित्य जी के जिगरी दोस्त ने कहा।
"वो सब छोड़, इनसे मिल, और पहचान इन्हें।" आदित्य जी ने मिनाक्षी जी की तरफ देखते हुए कहा। फिर मिनाक्षी जी से बोले,"आप भी पहचानिए, ये कौन है?"
राम आहूजा और मिनाक्षी जी एक दूसरे को देखते रहे। दोनों अपने दिमाग पर ज़ोर देने की कोशिश कर रहे थे। तभी राम आहूजा बोले,"ये तो…. मीना हैं... तेरी... सॉरी सॉरी….मतलब तुम दोनों कॉलेज में साथ में शो करते थे ना।"
"बिल्कुल सही जवाब, मिनाक्षी चोपड़ा। आप पहचान पाईं इसे?" आदित्य जी ने मिनाक्षी जी से पूछा।
"नहीं, नाम याद नहीं आ रहा पर इतना याद है कि ये जनाब सांइस फील्ड से थे और आपके अच्छे दोस्त थे। नाम याद …. नहीं आ रहा। सॉरी।" मिनाक्षी जी बोलीं।
"जी सही पहचाना। ये राम है। राम आहूजा। फार्मेसी का कोर्स कर रहा था। अब याद आया।" आदित्य जी ने कहा।
"हां….अब याद आया। माफ कीजिए, वो तब आप काफी पतले थे और अब…." मिनाक्षी जी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोलीं।
"अब जनाब डबल डेकर हो गये हैं। और अभी आपके लिए एक और सर्प्राइज है। पर पहले टहल लेते हैं फिर बताऊंगा।" आदित्य जी ने कहा।
तीनों ने झील का एक चक्कर काटा और साथ ही पुराने दिनों की यादें ताज़ा कीं। झील पार्क से बाहर निकल कर आदित्य ने मिनाक्षी जी से कहा,"दूसरे सर्प्राइज के लिए आपको हमारे साथ चलना पड़ेगा। चलेंगी?"
"जी बिल्कुल। बहुत उत्सुकता है सर्प्राइज जानने की।"
तीनों कुछ दूरी पर स्थित राम आहूजा के बंगले पर पहुंचे। घर का दरवाज़ा खुलते ही सामने खड़ी महिला को देख मिनाक्षी जी हैरान रह गयीं। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वो हैरान होकर बोलीं,"साक्षी, तू? कैसे? ये कब हुआ?"
"मिनाक्षी, ये हादसा आज से तेंतीस साल पहले हो चुका है। अब तो हादसे के शिकार ही बचे हैं।" राम आहूजा ज़ोर से हंसते हुए बोले।
साक्षी और मिनाक्षी जी ने एक दूसरे को गले लगाया। फिर दोनों चाय बनाने किचन में चली आईं।
"मुझे तो कभी तूने इस बारे में बताया ही नहीं! देख ली बहन तेरी दोस्ती।" मिनाक्षी जी ने नाराज़गी जताते हुए कहा।
"पागल, ये कॉलेज के समय की बात ही नहीं है। कॉलेज खत्म होने के बाद मैंने बी.एड़ की और फिर एक साल बाद नौकरी लग गई। उसी दौरान राम से फिर मुलाकात हुई। राम तब तक फार्मेसी का कोर्स पूरा कर चुके थे और एक फार्मेसूटिकल कंपनी के लिए काम करते थे। हमारे स्कूल में बच्चों के हैल्थ चैक-अप टीम के साथ आए थे। बस नज़दीकियां बढ़ीं और…. शादी हो गई।" साक्षी ने विस्तार से बताया।
"बहुत खुश हूं तेरे लिए बहन।" मिनाक्षी जी ने साक्षी को गले लगाते हुए कहा।
अब लगभग रोज़ चारों दोस्त झील पार्क में सुबह- शाम टहलते थे। मिनाक्षी जी ने साक्षी से अपनी सारी ज़िन्दगी साझा की।
"तू बहुत कष्टों से गुजरी है मीना। कभी आदि को बताया इस बारे में?" साक्षी ने पूछा।
"नहीं, नहीं साक्षी, आदि को इस बात की भनक तक नहीं लगनी चाहिए। वरना वो अपने आप को ही मेरे हालातों का ज़िम्मेदार समझने लगेगा। प्लीज़, राम से भी ज़िक्र मत करना।" मिनाक्षी जी ने कहा।
" तू फ़िक्र मत कर। मैं किसी को कुछ नहीं कहूंगी। पर क्या तेरे बेटे राजीव को पता है जो तेरे साथ हुआ?" साक्षी ने पूछा।
"राजू तब बहुत छोटा था। वो इतना समझदार नहीं था कि कुछ समझ सके। और फिर मैं उसके नन्हें से कोमल मन पर नफ़रत की लकीरें नहीं खींचना चाहती थी।" मिनाक्षी ये कह चुप हो गई।
एक दिन यूं ही टहलते हुए राम आहूजा ने आदित्य जी से पूछा,"आदि... मिनाक्षी जानती है कि…"
आदित्य ने उसे चुप कराते हुए कहा,"शशशशश...तेज़ मत बोल। और भाई मिनाक्षी को कुछ नहीं पता। और ना ही पता लगना चाहिए। जैसा चल रहा है चलने दे। इसी में सब की भलाई है।"
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वक़्त गुज़रने लगा। मिनाक्षी के परिवार को आए तीन महीने हो गए थे। आदित्य जी और मिनाक्षी जी दोनों शायद अपनी ज़िंदगी के स्वर्णिम पल गुज़ार रहे थे। दोनों के बेटा-बहू यह देख बहुत खुश थे कि उनके मात-पिता अब खुश रहने लगे हैं। पर कहीं ना कहीं कोई ग़म था जो दोनों एक दूसरे से बांटना तो चाहते थे पर बांट नहीं पा रहे थे।
एक शाम राम आहूजा के बंगले की बालकनी में बैठ आदित्य जी कुछ दूरी पर दिख रही झील को देख रहे थे। तभी साक्षी ने उनके सामने गिटार लाकर रख दिया।
"ये क्या? आपने इसको अभी तक संभाल कर रखा है भाभी?" आदित्य जी उसे उठाकर पहचानने की कोशिश करते हुए बोले।
"बिल्कुल आदि भाई, आपकी ज़िन्दगी को फैंक कैसे देती। हां, आपने मुझे इसे फैंकने के लिए ही दिया था। पर मैंने इसे संभाल कर रख लिया। इस उम्मीद पर कि कभी ना कभी आपका मन ज़रूर करेगा इसे बजाने का। चलिए बजाइए।" साक्षी बोलीं।
"भाभी, म्यूज़िक रियाज़ मांगता है। इतने साल हो गए गिटार उठाए। अब कहां धुन याद होगी।" आदित्य जी ने हंसते हुए कहा।
"तेरा संगीत तेरे सामने बैठा है भाई। और तू कह रहा है कि धुन याद नहीं। कोशिश तो कर। और मिनाक्षी, आपको गाना पड़ेगा। मैं कुछ और सुनने के मूड में नहीं हूं।" राम आहूजा ने नाराज़गी जताते हुए कहा।
जब वो दोनों नहीं माने तो आदित्य जी और मिनाक्षी जी के पास और कोई विकल्प नहीं बचा था।
आदित्य जी ने वही धुन छेड़ी जो उन दोनों के दिल के सबसे करीब थी। उस धुन को सुनते ही मिनाक्षी जी की आंखों में नमी आ गई। आदित्य जी के इशारे पर उन्होंने गाना आरंभ किया,
कुछ बोल के खामोशियाँ, तड़पाने लगी हैं
चुप रहने से मजबूरियाँ, याद आने लगी हैं
तू भी मेरी तरह हँस ले, आँसू पलकों पे थाम के
जितनी है ख़ुशी, ये भी, अश्कों में ना बह जाए
अँखियों के झरोखों से, मैंने देखा जो सांवरे
तुम दूर नज़र आए, बड़ी दूर नज़र आए
बंद करके झरोखों को, ज़रा बैठी जो सोचने
मन में तुम्हीं मुस्काए, मन में तुम्हीं मुस्काए
अँखियों के झरोखों से…
क्रमशः

