अंगना में फिर आजा रे।
अंगना में फिर आजा रे।
गॉलब्लैडर के स्टोन का ऑपरेशन करने के लिए प्रिया की सास हॉस्पिटल में एडमिट थी। प्रिया की शादी हुए अभी 8 महीने भी नहीं हुए हैं और शादी के बाद प्रिया 8 दिन भी रहने के लिए नहीं आई। प्रिया की शादी के बाद घर में जो सूनापन पसरा, मालती जी चाह कर भी उसे दूर नहीं कर पा रही थीं। प्रिया मालती जी की इकलौती बेटी थी। प्रिया की शादी से पहले और आज भी सिर्फ प्रिया ही मालती जी का लक्ष्य, सुख दुख सब कुछ वही थी। प्रिया में तो मानो उनकी जान बसती थी। उसका स्कूल कॉलेज सब घर के पास ही था। 1 दिन के लिए भी मालती जी ने कभी प्रिया को अपने से दूर नहीं किया। आज भी खाली बैठे घर के हर कोने से मानो प्रिया की आवाज आती थी।
अगर शादी करना जरूरी ना होता तो प्रिया कोमल दीदी कभी भी अपनी आंखों से दूर ना करती। प्रिया के ससुराल में उसके पति के सिवा एक बड़ी शादीशुदा बहन और एक छोटी बहन भी थी। उनके मन में बसी उनकी नन्ही सी गुड़िया आज भी छोटी सी फ्रॉक पहने हर समय हर खिलौने के लिए मचलती, सारा दिन मम्मी मम्मी कहते हुए पीछे-पीछे घूमती रहती थी। शादी के लगभग एक महीने बाद जब प्रिया घर आई तो मालती जी अपना सारा प्यार उस पर बरसाना चाहती थी लेकिन प्रिया मोबाइल पर सिर्फ अपने ससुराल में ही उनके साथ बातों में व्यस्त थी । सुबह उठते ही मालती जी ने उसको प्यार करते हुए उसकी पसंद का सारा खाना बना रखा था डाइनिंग टेबल पर बैठे-बैठे ही प्रिया बोली मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हें स्टोन का दर्द हो जाता है, वर्षा की भी 12th क्लास है वह अकेली घर का काम नहीं संभाल पाएगी उसके प्री बोर्ड एग्जाम्स भी चल रहे हैं ऐसा है, मेरा खाना पैक कर देना। मैं अभी जा रही हूं। बिचारी मम्मी, बहुत दर्द होता है उन्हें। ---- हैरान थी मालती जी, मम्मी तो वह थी ना? तभी राकेश भी आ गए थे और दोनों जल्दी ही चले गए। क्या यह उसकी वही डांसिंग डॉल थी जिसकी यादें हर कमरे में फैली हुई थी।
फोन पर लगभग हर दिन ही प्रिया से बात हो जाती थी। उसकी नासमझ बेटी कैसे सुघड़ गृहणी में तब्दील हो गई, सोचकर मन को सकून तो मिलता था पर ऐसा लगता है कि घर के अंगना में सन्नाटा और भी ज्यादा पसर जाता था। हालांकि मालती जी ने प्रिया को घर का हर काम करना सिखाया तो था पर जब भी प्रिया घर का काम करके कुछ भी बनाती थी तो मालती जी की आंखों के सामने नन्हीं सी गुड़िया ही डोलती थीl अक्सर अचानक से एक डर चारों और समा जाता था यदि मेरी गुड़िया जब ससुराल चली जाएगी तो वह कैसे रहेगी? क्या करेगी?
अरे लाइट क्यों नहीं जलाई, अंधेरा करके क्यों बैठी हो? तैयार नहीं हुई? चलो प्रिया की सास को अस्पताल में देख आते हैं। प्रिया के पापा बोले। अस्पताल घर से ज्यादा दूर नहीं था यूं तो प्रिया का घर भी उसी शहर में था लेकिन--------अस्पताल में प्रिया अपनी सासू मां के पास बैठी हुई उन्हें फल खिला रही थी कि तभी उसके ननद ननदोई भी जो कि दूसरे शहर में रहते थे अस्पताल में प्रिया की सासू मां से मिलने के लिए आए थे। मालती जी देख रही थी कि प्रिया कितनी जिम्मेदारी से हॉस्पिटल में सब को अटेंड कर रही थी। बड़ी नंद और नंदोई जी को अस्पताल में आए देखकर उसने उन्हें नमस्कार किया और फिर बोली बोली दीदी आप इतनी दूर से आ रही है। आप इतने अपनी मम्मी के पास बैठो और मैं नजदीक ही अपनी मम्मी के घर जाकरआपके लिए खाना बनाती हूं। अरे नहीं प्रिया हम बाहर ही खा लेंगे। नहीं दीदी मुझे पता है जीजा जी को बाहर का खाना अच्छा नहीं लगता।
मालती जी हैरान होकर सिर्फ देख रही थी कि छोटी सी गुड़िया इतनी बड़ी कैसे हो गई है। वह अब अपने ससुराल के फैसले भी खुद ही कर पाती है। प्रिया ने मालती जी से घर की चाबी मांगी और कहा अभी राकेश मुझे घर छोड़ आएंगे मैं खाना बनाती हूं। उसके बाद में आप दीदी और जीजाजी को लेकर आ जाना। मालती जी चुप तो थी पर मन ही मन उन्हें अपनी गुड़िया का ख्याल आ रहा था, प्यारी बच्ची! जाने कितने बजे उठी है। कैसे घर संभाल रही है ?और अकेली खाना भी बना लेगी? प्रिया की सास सिर्फ प्रिया की तारीफ ही करे जा रही थी और मालती जी की बहुत शुक्रगुजार थी कि उन्होंने अपनी बेटी को कितने अच्छे संस्कार देकर भेजा है।
मालती जी को रह रह कर सिर्फ अपनी बच्ची का ही ख्याल आए जा रहा था। थोड़ी देर में मालती जी प्रिया की नंद और नंदोई को साथ लेकर घर गई तो देखा पूरी डाइनिंग टेबल सजी हुई थी। इतनी सी देर में प्रिया ने दो सब्जियां चावल और रोटी सब बना दी थी। तभी प्रिया बोली मम्मी जीजा जी को घर में ऐसे ही बिठा कर खिलाया जाता है मालती जी रह-रहकर प्रिया की आंखों में प्रिया के प्रत्येक भाव में उसकी थकान देखने की कोशिश कर रही थी ।
पापा, राकेश और सबको डाइनिंग टेबल पर खाना खिलाने के बाद प्रिया ने राकेश से कहा चलो अब अस्पताल में मम्मी भी अकेली होंगी।--मम्मी तो मालती जी थी ना! प्रिया के घर से जाते ही मालती जी की आंखों से निकले आंसू खुशी के थे या -----
पति की आवाज से मालती जी की तंद्रा टूटी, उन्होंने कहा अरे! हमारी प्रिया कितनी समझदार हो गई है । वहां ससुराल में भी सब इसका कितना सम्मान और प्यार करते हैं।देखो तो कितनी जल्दी उसने खाना भी कितना अच्छा बनाया था। चलो अच्छा है हमारी प्रिया ससुराल में कितनी अच्छी तरह से एडजस्ट हो पा रही है।
तभी मालती जी की भीगी हुई आंखें देखकर वह भी चुप हो गए।और दूर कहीं गाने की की आवाज आ रही थी। ओ री चिरैया नन्हीं चिरैया अंगना में फिर आजा रे। गाने के बोल थे या प्रिया के ससुराल जाने के बाद खालीपन का एहसास, या उसके प्रति उमड़ता हुआ बेइंतेहा प्यार, कुछ कह नहीं सकते, प्रिया के पापा और मालती जी ने सोफे पर धम्म से बैठे हुए एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया था और एक संतुष्टि की रेखा दोनों के चेहरे पर ही स्पष्ट थी और आंखें दोनों की ही पनियाली थी।
