अमरबेल....
अमरबेल....
आज वह सो नही पा रही थी। रह रह कर उसे पति की ही बातें याद आ रही थी...
पति से उसका रिश्ता एकतरह से खत्म हो गया था। उन दोनों पति पत्नी का रिश्ता लोगों की नज़रों में कायम रह गया था या फिर कागज़ों में....
क्या करे वह ?
ऐसा नही की पति से उसे बिल्कुल भी प्यार नही था। शादी के शुरुआती दिनों में तो वह दिन दुनिया से बेखबर आसमाँ में उड़ा करती थी....
खाना बनाना या फिर घर के काम करना होता है यह उसके गुमान मे भी न था.... प्यार में पति भी बाहर से खाना मँगाते। दिन यूँही ही बीतने लगे थे....
लेकिन धीरे धीरे वह सब समझने लगी थी....
आसमाँ से वह जमीं पर आ गयी....
उसका मन कतई यह मानने को तैयार नही था कि पति कोई काम नही करते है। उल्टा बच्चों के सामने वह जी जान से उनकी बातों को ढँकने लगी... अपना एटीएम कार्ड उनके पास रखकर....
बच्चों की फरमाइशें पूरी करते हुए पापा को देख उसे अच्छा लगता था जैसे बच्चों के मन में उसने उनका रेसपेक्ट बढा दिया हो....
'सब ठीक हो जाएगा' वाली एक पगली सी आशा जो उसके मन मे थी... उस आशा का वह क्या करती?
हमेशा से ही हम सब ने अमरबेल को किसी पौधें पर ही बढ़ते हुए देखा है....
इसी तरह वह भी अमरबेल की भाँति जिंदगी भर यूँ कहे रिटायरमेंट तक उसके साथ रहते रहे....
एक दो बार उसने यह कहते हुए विद्रोह किया की 'अब आप यहां मेरे क्वार्टर में नही रहेंगे' और वह चले गए ....
ऐसा नही की वह पति से बिल्कुल भी मोहब्बत नही करती थी....
कई बार उनके वहाँ से जाने पर वह छिपकर पति की शर्ट सूंघ लिया करती थी... वह गंध जैसे उसमें कोई नशा भर देती थी...
'बहुत हो गया इस अमरवेल को ढोते हुए अब रिटायरमेंट के बाद बची हुई जिंदगी थोड़ा सुकून से गुजारुँगी' इस सोच के साथ उसने रिटायरमेंट के पैसों से एक छोटा सा घर लेकर किसी को बताए बग़ैर शिफ्ट भी हो गयी.....
घर की दीवारें और खिड़कियों-दरवाज़ों समेत सब तरफ बस उसके ही मनपसंद रंग थे....
पर्दों के रंग भी....
उस छोटे से आशियाने को सजाने में वह फिर जुट गयी...
एक एक चीज़ चुनकर कभी ऑनलाइन आर्डर देकर मँगवाना तो कभी बाज़ार से ले आना....
जिंदगी भर पति वाली 'अमरबेल' से छुटकारा पाकर वह खुश थी....
लेकिन...
एक फोन आया.... दूसरी ओर से विजयी स्वर में आवाज़ आयी, "आख़िर मैने तुम्हे ढूँढ ही लिया...तुम्हे क्या लगता था कि मैं तुम्हेँ यूँही छोड़ दूंगा? मत भूलों की आज भी हम पति पत्नी है। मेरा पूरा अधिकार है तुम पर और तुम्हारे पैसों पर। तुम मुझे छोड़कर कैसे जा सकती हो?"
उसके हाथ से रिसीवर जैसे गिर गया... आज फिर से सब तहस नहस हो गया...
वह इस सबके लिए बिल्कुल तैयार नही थी....
उसका मन उससे सवाल करने लगा.... ताउम्र इस आदमी ने मेरी खाल को नही छोड़ा...क्या अब बोटियाँ भी.....?