अम्मा का फैसला
अम्मा का फैसला
“कमला, आज बड़े दिनों बाद मैने स्वाद से खाना खाया ...सच, माँ की याद आ गई !”
“वाह! तब तो तू हर सन्डे को मेरे घर आ जाया कर ।मेरे पति छः महीने के लिए कम्पनी के काम से विदेश गये हैं। फिर हम दोनों मिलकर ढेर सारी बाते करेंगे और साथ में खाने का मजा भी ।” कमला ने घर आई सहेली शांति से हँस कर कहा।
“हर रविवार को आना मेरे लिए नामुमकिन है ! खैर ! तू पहले एक बात बता, तुम्हारे यहाँ जो बूढ़ी खाना बनाती है..वो महीने में कितने पैसे लेती है ।सच, बहुत टेस्टी खाना बनाती है ।खाने के बाद मैं अंगुली चाटते रह गई । उसे मेरे घर भी भेज दिया कर। जितने पैसे कहेगी ,मैं उसे दूँगी ।क्योंकि मेरी सास बहुत बीमार है, खाना बनाने वाला कोई मिल जाय तो मुझे बहुत राहत होगी। बिना सहारे के वो बिस्तर से उठ नहीं पाती !हर वक्त उनके पास एक आदमी चाहिए ।
“ ओह! पर...ये... बूढ़ी... " रसोईघर से आ रही बूढ़ी पर नजर पड़ते ही कमला के मुँह की बात गले में अटक कर रह गई ।
“बेटी.. मुझसे अब अधिक काम नहीं होता। यहीं कर लेती हूँ.. बस इतना ही काफी है ।एक विधवा को जीने के लिए पेट भरने से अधिक और क्या चाहिए ?!” अपने जज़्बात को संभालते हुए, बूढी ने दोनो के करीब पानी भरा जग रखा और रसोईघर वापस जाने लगी। “कोई बात नहीं अम्मा , आप मेरी सहेली के घर को ही अच्छे से संभालते रहिए , मैं दूसरी कामवाली ढूंढ लूँगी ।”
शांति ने सरलता से जवाब दिया । "कमला, अब मुझे जाने दे। घर पहुँचते-पहुँचते शाम हो जायेगी ।” “ आज यहीं रुक जा.. ।”
कमला ने प्यार जताते हुए शांति से आग्रह किया । “ नहीं , लेट हो रहा है । मेरी सास सिर्फ मेरे ही हाथ से दवा खाना पसंद करती है। अपने बेटे से वो यही कहती है, “ तू बहुत हड़बड़ाकर दवा खिलता है । लेकिन बहू को देखो .. बच्चों की तरह बड़े प्यार से मुझे दवा खिलाती है ।अरे...ये क्या !? कमला सामने देखो, बूढ़ी रो रही है ! क्या हुआ आपको?! बताइए अम्मा ।” शांति ने बूढ़ी के पास जाकर मधुरता से पूछा ।
“ बेटी, इन आँसूओं का क्या भरोसा, कब टपक पड़े ! बस, कुछ याद आ गया ।”
“अरे.. खड़ी होकर, यहाँ नौटंकी क्यों करती हो ?जा.. जल्दी से काम निपट ।बहुत काम पड़े हैं अभी ।” कमला बूढी पर बरस पड़ी ।
“ जाती हूँ , ब..ह...उ... ।” बूढ़ी के मुँह से निकले अधूरे शब्द कान में पड़ते ही...शांति की आँखें चौड़ी हो गईं ! प्रश्नवाचक दृष्टि लिए उसने कमला से पूछा,
“ अम्मा, तुम्हारी सास है...? परन्तु तुमने तो मुझे ...?! अरे, पति की माँ को तुमने नौकरानी बना डाला!" कमला का सिर निचे झुक गया ।
"हे भगवान! तुम्हें सहेली कहने में शर्म आ रही है ! अब मैं यहाँ एक मिनट नहीं रूक सकती! पता चला तुम इसी शहर में आयी हो, सो अपनी बचपन की सहेली से मिलने आ गयी। परन्तु, धन- दौलत के भंडार ने तुम्हारे माँ -बाप के दिए संस्कार को धो डाला! ओह! "
” अम्मा , मेरे साथ चलिए । वहाँ आपको बेटी के अलावे एक बहन भी बात करने के लिए मिल जायेंगी ।
" कहते हुए शांति ने बूढ़ी अम्मा का हाथ पकड़ा और बाहर दरवाजे की ओर चल पड़ी। लेकिन सामने दीवाल पर टंगे अपने दिवंगत पति के तस्वीर पर नजर पड़ते ही बूढ़ी ठिठक गयी। तेज हवा के झोंके से तस्वीर फर्श पर धड़ाम से गिरा । उसका शीशा चकनाचूर हो गया, परंतु कागज के तस्वीर पर खरोंच तक नहीं लगी। तस्वीर, मानो विधवा से गुहार लगा रहा था, " प्रिय, मुझे भी अपने साथ ले चलो। अब इस घर में मेरी जरूरत नहीं रही।"
बूढ़ी ने पति की तस्वीर को उठाकर सीने से लगा लिया और शांति के साथ बेहिचक नये सफर के लिए निकल पड़ी ।