अल्फाज अधूरे ईश्क के भाग 5
अल्फाज अधूरे ईश्क के भाग 5


गर जो मोह्हबत में मिले मुकदर का उन्हें प्यार कहते है
जो बिखरे ईश्क़ में नशीब, उन्हें अधूरा-सा प्यार कहते है
हम ना मिले है अब तक और ना बिखरे है आज तक तो
ना पास है, ना दूर है, हमें भाग्य का कौनसा प्यार कहते है
अगर मिल जाते तुम हमें, अक्सर इश्क़ के जो महल बनाता हूँ
मिले जो नहीं तुम हमें, बस खामोशियों की कुटिया बनाता हूँ
आज भी याद है, मेरे भूखे रहने तक तेरे ,भूखे रहने की आदत
इसीलिए जब भी रोटी खाता हूँ, पहले तेरी दो रोटियाँ बनाता हूँ
क्या वो जूठा पानी पीना, एक कप में चाय पीना याद तो नहीं
आज याद आता होगा, मैं कहता था तेरे लिए चाय बनाता हूँ
आज भी याद मुझे मेरे बगैर प्यासी रहने की तेरी वो आदत
जब भी सो कर उठता हूँ , मुँह धोने से पहले पानी पीता हूँ
अब क्या बताएं दिल की बात , तुम तो फुलों पर फिदां हो गयें
कम्बख्त काटों का दर्द किसी ने नहीं समझा ,जो जुदा हो गये
पूरी बगिया हमारी है ये तो सभी फुलों ने मिलकर समझा
फूलों को तराश कर खुशबू का तोहफा
देने वाले काँटों का दर्द किसी ने नहीं समझा।