::: - अकेली औरत - ::::
::: - अकेली औरत - ::::
वर्षों से शगुन अपना हर काम अकेली ही करती आ रही थी, बीच-बीच में कुछ लोगों को अपने उपर ज्यादा ही मेहरबान होते हुए भी देखा था, लेकिन मजबूत शगुन नितान्त अकेली होने के बाद भी खुद को सम्भाले हुए थी।
आफिस में शर्मा, वर्मा, गुप्ता, मिश्रा जी के स्वभाव के वजह से कुछ परेशान जरूर रहने लगी थी, आज उससे भी निपटने का उसने रास्ता निकाल ही लिया।
जन्म दिन के बहाने उसने सभी सह- कर्मियों को अलग-अलग तरीके से वही सामग्री लेकर आने के लिए घर पर निमंत्रित किया, जिसे देने के बहाने से उसके नजदीक आने की कोशिश करते, सभी बहुत खुश हुए, लेकिन किसी को यह पता नही लगने दिया कि उनसे पहले भी वहाँ कोई और पहुँचेगा। वहाँ सब एक-दूसरे को देखकर हतप्रभ थे, ओले पड़ते देख कोई सिर खुजला रहा था, तो कोई गले में अटकी आवाज़ को बाहर निकालने के लिए टाई ढीली कर रहा था।
शगुन ने कुछ गरीब बच्चों को भी बुलाया था।
केक कटने के बाद, सह कर्मियों द्वारा लाए हुए सामानों को उनके ही हाथों से गरीब बच्चों में बँटवा दिया।
और घर में रखे खाद्य सामग्री से सभी का आवभगत कर, रिटर्न गिफ्ट के साथ विदा कर दिया। रिटर्न गिफ्ट को खोलने की आतुरता से सभी बेहाल हो रहे थे।
बंद लिफाफा, लिफाफे में चिठ्ठी देख कर तो सबकी आँखों में बिना पीए ही मदिरा उमड़ने लगी, लेकिन जैसे ही शब्दों को मापा, तो होश उड़ गये।
"आप लोगों को क्या लगता है, कि समाज में अकेली रहने वाली औरत, सार्वजनिक सम्पति है ?
जिस पर हर कोई अतिक्रमण करने की जुगाड़ में लगा रहता है ?,
यह लावारिस पड़ी हुई जमीन नही है, जीती-जागती जिन्दगी है, और जिसकी रजिस्ट्री माँ-बाप द्वारा दिए संस्कारों से होती है। आप लोग अकेली औरत की सहायता करने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातों के वजाए, कभी यह बोलते हैं, कि लाओ नगरपालिका, न्यायपालिका या बिजली विभाग का कोई काम हो तो बताओ, मैं कर देता हूँ, भला वहाँ कौन जाए।
'लेकिन सबको बाबू मोशाए जरूर बनना हैं। यह खाने-पीने की चीजें मुझे नही, इन गरीब बच्चों को दिया करें।
"और हाँ, अकेली औरत जब अपनी घर-गृहस्थी सम्भाल सकती है, तो क्या अपनी काया को नही सम्भाल सकती है ?, मुझे उन औरतों की तरह मत समझना, जो पति के रहते दूसरे मर्दो को पसंद करती हैं। मैं आदर्शों पर चलने वाली भारतीय नारी हूँ।
"मुझ जैसी औरतों को कभी कमजोर मत समझना, औरत अकेली होकर और मजबूत हो जाती है, पुरूषों की तरह कमजोर नही होती है। इसलिए मुझे नही खुद को सम्भालने की जरूरत है। मेरी बात समझ में आ जाए तो ठीक है, नही तो अब अगली मीटिंग आपके घरवाली के साथ होगी। "
बर्थडे के दूसरे दिन शगुन जब आफिस पहुँचती है, तो उसे वहाँ सभ्यता और सौहार्द सा वातावरण महसूस होता है, इतने दिनों से जो आँखें उसके सिंदूर और मंगलसूत्र पर अटकी थीं, वो आज फाइल के पन्नों में उलझी हुई थीं।