जानवर
जानवर
कुछ आकृतियाँ अंधेरे में इधर-उधर विचरण कर रही थीं, जिनके रगों में आज रक्त के स्थान पर नशीला पदार्थ प्रवाहित हो रहा था, जो उन्हें भेड़िया रूप में तब्दील कर चुका था।
अंधेरे में ताक लगाए बैठे उन आकृतियों ने सामने से आती हुई एक सुकोमल काया को देखा और उस पर टूट पड़े और उसे ज़ार-ज़ार कर चबा गये।
जिन्हें देख कर आज मूर्तिकार भी दंग था कि मानवीय रूप में मैंने जानवरों को कब गढ़ दिया।