रोज डे
रोज डे
आज भोर में ही पिता ने उनींदी आँखें लिए बच्चों के सिर पर फूलों की टोकरी रख,कालेज के पास छोड़ गया।
फूलों से भरी टोकरी आज तो एक घंटे में ही खाली हो गयी।
भाई-बहन आज दोनों ही बहुत खुश थे,कि आज तो बापू मेला घूमने जरूर ले चलेगा।
खुशी-खुशी घर पहुँच कर,पिता के हाथ में नोटों की थैली पकड़ा दी और माँ से रोटी माँगने लगे।
कमली की तबीयत आज ढीली हो रही थी, रात भर सोई जो नही थी।उसने झुंझलाते हुए कहा,आज इतनी जल्दी कैसे आ गये तुम लोग?,
माई, आज "रोज डे" है न,
इ का होत है छोरा ?
माई,आज लड़का- लड़की लोग एक-दूसरे को गुलाब का फूल देत हैं।
ऊ काहे ?
अपना पियार (प्यार) बतावे वास्ते।
खाली लड़का-लड़की लोग ही देते हैं,बड़े-बूढ़े लोग पियार नाही बतावत हैं ?,
माँ-बेटे की इतनी देर से बात सुनते हुए घर का मालिक उठा और कमली के गाल पर अपनी पाँचों उंगलियों का छाप छोड दिया।
रोज डे पर कमर के दर्द से तड़पती कमली,सिसकती हुई अब अपने जबड़े के दर्द को सहला रही थी और कनखियों से टोकरी में अटकी गुलाब की टूटी पंखुड़ियों की तरफ देखती जा रही थी।