-:- नकाबपोश-:- (मी टू)
-:- नकाबपोश-:- (मी टू)
दरबान के आवाज लगाते ही,फरियादी इस तरह विद्युत गति से अदालत में हाजिर हुई,जैसे आज वह अपने नेत्रों की फूटती ज्वाला से ही अपराधी को भस्म कर देना चाहती हो।
केस की अंतिम तारिख होने से भीड़ कोर्ट के फैसले को सुनने के लिए बेताब हो रही थी।अदालत खचाखच भरा हुआ था जिसकी वजह से कुछ लोग बाहर ही जोंक की तरह चिपके हुए थे।
वह अपनी-अपनी श्रवण शक्ति के साथ ही अपने कर्ण को भी और बड़ा कर लेना चाहते थे ताकि अंदर की हर बात को वो सुन सकें।
अपराधी पक्ष का अधिवक्ता इस तरह से जिरह पर जिरह कर रहा था,जैसे प्रश्नों की बौछार से ही वह उसके शरीर के वस्त्रों को भी तार-तार कर देगा।
तभी फरियादी ने जज साहब से निवेदन कर विनम्रता के साथ अपनी बात रखी-
"जज साहब मैं स्वीकारती हूँ कि-अपने फायदे के लिए मैं गलत रास्ते को चुनी थी,लेकिन अब मेरी मंशा कुछ और है।"
'तभी बीच में विपक्षी वकील ने फिर से टर्र...टर्र... करते हुए कानून का अपना बेसुरा घंटा बजाया।,
फरियादी फिर हाथ जोड़ती है- "जज साहब मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है,मुझे पता था कि- मुझे न्याय नहीं सिर्फ बदनामी ही मिलेगी,फिर भी मैं यह कदम इसलिए उठाई,ताकि विगत कई वर्षों से नकाब के अंदर जो खेल चल रहा है,उस पर से अब तो पर्दा उठे।
महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाते हुए, जो यौन शोषण कर्ता हैं, उन सभी सफेद नकाबपोशों को बस मुझे बेनकाब करना था।