Pawan Gupta

Abstract

4.8  

Pawan Gupta

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अजीब मंजर

अजीब मंजर

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आज मैं बहुत खुश हूँ ! इसलिए नहीं की आज रविवार है, बल्कि इसलिए क्युकि आज सुबह सोकर जगा तो पापा ने बताया की आज हम ज़मीन देखने जा रहे है, हम सबने पिछले 7 सालो में जो भी बचत की थी, अपने एक छोटे से आसियाने के लिए उस आसियाने के सपने को पूरा होने का समय करीब ही नज़र आने लगा था, सुबह ही पापा ने मुझसे और रोहित( मेरा भाई ) से कहा था कि बेटा आज ज़मीन देखने जाना है आप दोनों तैयार रहना ! पापा ने बताया की आज ही किसी ज़मीन बेचने वाले आदमी से बात हुई है उसने दोपहर 12:00 बजे साइट दिखाने को बोला है, जब से ये बात मैंने और रोहित ने सुना है, तब से हम अपनी खुशी रोक नहीं पा रहे है, और अपनी बीती हुई जिंदगी को याद करके बाते कर रहे है, कि किस तरह हमने ये पैसे जमा किए, त्योहारों पर पुराने कपडे ही पहनते थे, कभी एक टाइम भूखे व् रह लेते थे कभी पतली दाल बनती कभी वो भी नहीं बारिश में वो टपकती हुई किराये के घर में सर्दी गर्मी बरसात सब निकल दी, अपना एक आसियाना हो उसके लिए 5-5 km पैदल चल के जॉब पर जाते थे जूते फैट जाते तब व् उसी को पहनते इस तरह एक एक पैसा जमा करके आज आसियाने का सपना पूरा कर रहे थे !

आज हम अपनी ज़मीन खरीदने जाने वाले है, अब हमारा भी घर होगा, यही सोचते सोचते पता नहीं कब 11:30 हो गए, जब पापा ने हम दोनों को आवाज दिया तो हमने घडी देखीं और फटाफट तैयार होने लगे ! उस ब्रोकर ने हमें लोकेशन भेज दी थी तो हमें बस उस लोकेशन पर जाना था और वो ब्रोकर वही हमसे मिलने वाला था,

हम भी फटाफट उस जगह पहुंच गए जहा हमें अपने सपनो का आसियाना बनाना था ! हमें उस आदमी ने बताया था कि जगह अच्छी है लोग रहते है वह वो अच्छी सोसाइटी है वह कोई भी प्रॉब्लम नहीं है पर जब हम वह पहुंचे तो हमें समझ ही नहीं आया कि ये कैसी जगह है, हमारे पहुंचने के थोड़े ही टाइम बिता था कि मौसम एकदम से ख़राब हो गया आसमान में बदल घिर आये हर जगह अँधेरा सा हो गया बारिशनुमा मौसम होगया, और हम जहा पहुंचे वो जगह तो रहने लायक थी ही नहीं, वहां तो ऐसा लग रहा था कि वहां मिटटी की खुदाई होती है वहां बड़े बड़े खड्डे बने हुए थे, समझ नहीं आ रहा था कि ये ज़मीन वो ब्रोकर बेचने की बात कर रहा था, उस ज़मीन के एक तरफ काली मिटटी थी तो दूसरी तरफ पिली मिटटी और पूरा एरिया वीरान पड़ा हुआ था, मौसम भी ख़राब हो गया ! समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है तभी पापा ने आवाज लगाकर उस ब्रोकर से पूछा कि ये कौन सी जगह है आपने तो हमसे कुछ और बताया था, तभी उस आदमी ने बोला sir बस उस ऊंचाई के ऊपर ही आपकी ज़मीन हैं उचाई ज्यादा नहीं थी बस ३ फ़ीट रही होगी पर जब हम उसपर जाने लगे तो ऐसा लगा जैसे वो बहुत ऊचा हो और हम उसपर चढ़ ही नहीं पा रहे हो, और वो चढ़ाई सीधी और तीखी हो गई हो जब हम परेशान होने लगे तो पापा ने उस ब्रोकर से बोला कि तुम ये कैसी जगह पर ले आये हो, ऐसी जगह हमें नहीं चाहिए।

पर ये बोलते हुए जैसे ही हम पीछे मुड़े तो वहां कोई भी आदमी नहीं था और अँधेरा हो चला था ऐसा लग रहा था मनो रात के 9 बज गए हो मौसम बहुत ख़राब हो बहुत ठण्ड महसूस होने लगी थी, अब हमें समझते देर न लगी कि ये सब हमारे साथ क्या हो रहा है अब तो दिमाग भी बंद होने लगा था, ना रोना आ रहा था ना ही हसना! माहौल बहुत डरावना हो गया था बस उसी समय हमने वहां से एक आदमी को जाते हुए देखा तो मन में थोड़ी शांति आई और हम उसके पीछे पीछे हो लिए वो आदमी कुछ पंडित की तरह लग रहा था,

उसके आने से पहले सारे रस्ते एक से नज़र आ रहे थे वापसी का रास्ता समझ नहीं आ रहा था पर जब हम उन पंडित जी के पीछे पीछे चलने लगे तो थोड़े ही समय में हम हाइवे पर पहुंच गए और जब हम हाइवे पर पहुंचे तो पंडित जी कही दिखाई ही नहीं दे रहे थे हम समझ नहीं पाए की इतनी जल्दी पंडित जी कहा गायब हो सकते है अब मन में और डर पनपने लगा कि गहरी काली रात और ये सब जो भी हो रहा था समझ के बहार था कि किसपर विश्वास करे और किस पर ना करे !

पर अब कर भी क्या सकते थे हाइवे पर बैठे बैठे भगवान् का नाम लेते रहे,

थोड़ी ही देर बीते थे कि एक ट्रक हमारी ओर आता दिखा पर हमने इतना सब अजीब देख लिया था कि अब इस मंजर पर भरोसा नहीं हो पा रहा था परन्तु पापा ने भगवान् का नाम लेते हुए ट्रक से लिफ्ट मांगी, ट्रक हमारे करीब आकर रुकी उस ट्रक को चलाने वाले ड्राइवर सरदार जी थे, ट्रक के रुकते ही पापा ने देख लिया था कि ट्रक में हनुमान जी और नानक देव जी की तस्वीर लगी हुई है जिससे हमें भरोसा हो गया की ये कोई छलावा नहीं है, तभी सरदार जी ने हमसे पूछा तुम सब कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो ये जगह ठीक नहीं है, तो हमने अपनी सारी आप बीती उनको सुना दी, उन्होंने बोला जल्दी बैठ जाओ गाडी में चलते है,

रास्ते में उन्होंने बताया की हाइवे पर कोई गाडी नहीं रोकता है तुम सबकी किस्मत अच्छी थी कि मैंने गाडी रोक दी और आपके बेटे ने जो हनुमान जी की लॉकेट पहनी है उसे देख़ मैं भी तुमपर भरोसा कर पाया बात करते करते हम अपने घर के करीब चौराहे पर पहुंच गए सरदार जी ने वही हमें उतार दिया !

उस रात हम २ बजे घर पहुंचे, अब हमें क्या नींद आनी थी सब जगे ही रहे, और अगले दिन सबने जॉब से छुटी ली और रिलेक्स किया।           


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