sunanda aswal

Romance Fantasy Inspirational

3.4  

sunanda aswal

Romance Fantasy Inspirational

अगर तुम ना होते

अगर तुम ना होते

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मेधज .. कुछ दूर पर समुद्रों की बलखाती लहरों के आगोश में खो जाना चाहता था ..आज उसे एकांत अच्छा नहीं लग रहा था ... कुछ ऐसा हुआ कि उसकी जिंदगी बदल गई ..। 


तभी,

कॉलेज की अतीत यादों में मन जा बसा..।

पिकनिक जाते हुए वो पल स्मृति पटल पर छाने लगे जब,

छात्रों से भरी बस, उसमें जो चेहरा सबसे अलग था वो प्रथक का लगा .. आकर्षित करने वाले बाल, आंखें और ... स्वयं प्रथक ही कुछ ऐसा था ..जो देख ले मोहित हो जाए ..।

अगल -बगल बहुत लड़कियों का चहेता प्रथक.. अलग ही व्यक्तित्व का स्वामी था ..उधर रिंग रोड से जाती बस और सब गाने गाते हुए झूमते हुए जा रहे थे ...।


लड़कियां तो प्रथक को घेरे हुए बैठी थीं...वह भी खूब खुश नजर आ रहा था ...‌। लड़कियों में रोजी और पारुल कभी उसके बालों में सुंदर क्लिप लगाती तो कभी, हाथों में कंगन पहनाती और फिर अपनी शरारत पर खूब हंसती ..।

प्रथक को कहती,"-- ओ ... मिस .प्रथिका ..सुंदरी.. कहां जा रही हो ? अब आओगी..? शक्ल तो बिल्कुल लड़कियों सी है आपकी ..।"कहकर उसे छेड़तीं..।

प्रथक को बुरा नहीं लगता वह भी खूब प्यार से जवाब देता,--हां जी जा रही हूं घूमने, आप भी चलो ना सब सहेलियों ..।"

बस में सभी खूब मस्ती करते हुए ठहाके लगाते ..।


उधर मेधज यह सब देख रहा था वह क्रोधित होकर उनके पास गया बोला,"--ऐ लड़कियों हद में रहो ..ऐसा क्यों कह रही हो ? क्या तुमको यह सब शोभा देता है ..?"


तभी पारुल बोली,"--रहने दे ..मेधज तू नहीं समझेगा ..।" और जोर से ठहाके के संग हंस पड़ी ..।

तभी प्रथक बोला उसे डपटकर बोला,"---सुन मेधज हमारे बीच में मत पड़ो समझे आप ..।"

मेधज को अच्छा नहीं लग रहा था कि कोई प्रथक को यों ही कुछ कह कर चला जाए ..। जबकि, प्रथक की बातें उसे बिल्कुल भी खराब नहीं लगीं ..।


जब सभी छात्र बस से उतरकर अपने प्रोजेक्ट की खोज के लिए इधर -उधर हो ग‌ए ..।


तब मेधज उसके पास किसी बहाने से पहुंचा मुस्कराते हुए बोला,"--तुम हो तो बहुत अच्छे लड़के .. क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे ? मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो..। जब तुम्हारे आस -पास ये तितलियां मंडराती हैं तो मुझे ईर्ष्या वश अच्छा नहीं लगता ..। तुम मेरी ही तरह के हो ऐसा मुझे लगता है .. शायद ..! ईश्वर ने हमें गलत गढ़ दिया है, भले ही शरीर से हम पुरुष हों लेकिन, आत्मा से एक स्त्री का ही स्वरूप हैं ..।"


प्रथक जरा संकोची था बोला,"--ज्जी .. मुझे लड़कियों के संग खेलना भाता रहा है, पहले कभी मेरी बड़ी बहन मुझे अपने कपड़े पहनाती थी, जो मुझपर बहुत फबते थे और आज भी मैं चोरी से चुपचाप मां की साड़ियां पहनता हूं ..एक दिन मां ने मुझे देख लिया था और पिता से शिकायत भी की, मैंने उस वक्त तो माफी मांग ली, किंतु मेरे अंदर का तूफान शांत नहीं था ..ऐसे ही जैसे कुछ गलत है ..सब गलत हो सकते हैं किन्तु अंदर पल रही आत्मा नहीं ..।"


यही संक्षिप्त परिचय व वार्तालाप ने दोनों को एक संग रहने की प्रेरणा दी ..।


एक पुरुष से पुरुष का सम्बन्ध कैसे स्वीकारा जा सकता है ..? समाज और सामाजिक परंपरा और विचार आधुनिकता के संग कैसे चल सकते थे इसलिए, दोनों के ही परिवार वालों ने लोक लाज और शर्म के कारण दोनों को घर से बेघर कर दिया था ..।


आज कानून ने ऐसे जोड़ों को मान्यता देना का फैसला कर लिया है जो स्वेच्छा के साथ रह रहे हों ...। 


आज जहां समाज में तलाक आए दिन हो रहे हैं, वैवाहिक सम्बन्ध चुनौतियों से घिरे हैं .. वहां ऐसे सम्बन्ध जायज माने जा रहे हैं ..।


मेधज और प्रथक को किसी की कोई परवाह नहीं थी, उन्हें अपने जीवन के फैसले उचित लग रहे थे क्योंकि, उन्हें पता था कि किसी को जबरदस्ती खुश नहीं कर सकेंगे ..।


 जिन रिश्तों के लिए वो बने ही नहीं उनको ढोना उचित नहीं था..।


प्रथक और मेधज ऐसे प्रेम के प्रतीक बन ग‌ए जिसे अर्धनारीश्वर के रुप में पूजा जाता है .. साक्षात शिव और पार्वती का स्वरूप ...।


तभी पीछे से किसी ने उसे पुकारा वह प्रथक ही था ..उसका हमराही ..‌।


मेधज भावना में बह रहा था इधर प्रथक भी दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और समुद्र की लहरों में उतर ग‌ए प्रथक बोला,"-- मैं नहीं होता मैं... अगर तुम ना होते ...।"


धीरे से मेधज भी बोला,"--- शायद मैं भी नहीं होता फिर दुनियां में ...।"

फिर दोनों एक दूसरे में खो ग‌ए ...। 


(इति )



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