अधिवेशन
अधिवेशन
रागिनी एक पढ़ीलिखी व सुलझे खयालातों वाली लड़की थी।पर उसका ससुराल बड़ी ही पुरातन सोच वाला था।
वहां बहुए अपनी सास ससुर के सामने कुछ बोलना तो दूर बराबरी पर बैठ भी नही सकती थी।
वहां से बाहर जाकर अपनी योग्यता से कुछ कर पाने का सोचना भी उनके लिए पाप था।
पम्परा के नाम पर उसे बांधी गई जंजीरो से अब उसे घुटन सी होने लगी थी।
वह अपने पति से जब भी इस विषय मे बात करती वो कहते ,देखना समय के साथ धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।
पर हर बात पर रोक टोक से उसका धेर्य अब जवाब दे चुका था।जिसकी वजह से वह बेहद उदास व बीमार सी रहने लगी।
फिर उस दिन इन्ही सब के चलते रागिनी चक्कर खाकर गिर पड़ी।अगले दिन सुबह जब वह उठकर चाय बनाने किचन की ओर गई।
तो देखा रोज उस पर रोब जमाने वाली उसकी सास आज उसके लिए चाय बनाने की जिद कर रही थी।
उनकी बातों में भी आज बड़ी मधुरता व एक अनजाना भय था।
उनके इस बदले व्यवहार से रागिनी बड़ी खुश व आश्चर्यचकित थी।
बाद में उसके पति ने उसे बताया कि कल रात बेहोशी की हालत में तुमने कुछ ऐसी असामान्य हरकत की।
जिससे अब पूरे परिवार को लगता है,कि तुम पर किसी बुरी आत्मा का साया है।
उनकी बात सुनकर रागिनी को अपने ससुराल के इस दौर में भी, अंधविश्वासी होने पर बड़ा अफसोस हुआ।
पर कही न कही इस बात की खुशी भी थी।कि चलो अंधविश्वास से ही सही पर इन सबका व्यवहार तो उसके प्रति बदला।
अब बाहर जाकर नोकरी से लेकर रागिनी वो सबकुछ बड़ी ही आसानी से कर सकती थी।
जो एक जिम्मेदार बहू अपने परिवार के विकास के लिए करती है।
और उसके सास ससुर को तलाश है एक ऐसे तांत्रिक की। जो रागिनी के अंदर की उस बुरी आत्मा को निकाल सके।
