अबॉर्शन
अबॉर्शन
सुबह रिदिमा सासुजी के रूम में आई और चाय की ट्रे टेबल पर रख उनके चरण स्पर्श कर धीरे से बोली-
"माँ ! खुशखबरी है!"
"सच्च ! दूधो नहाओ पूतो फलो!"
हाथ जोड़ उन्होंने सैकड़ो बार अपने ईश का धन्यवाद किया।
"सुनिये आप भागकर बाजार जाईये और ढेर सारी मिठाई ले आईये!"
"भागकर ! अब मैं जवान नहीं रहा भाग्यवान जो भाग कर बाजार जाऊँ ।"
खिलखिलाते हुए प्रताप सिंह जी बोले ।
"अरे अब तो मैं दादा बनने वाला हूँ तो मूँछो पर ताव देता हुआ जाऊँगा और पूरे मोहल्ले को और यारों दोस्तों को मिठाई खिलाऊँगा!"
"मोहल्ले में मैं खुद बाँटूगी! आप बस अपने यारों दोस्तों में ही मगन रहना!"
"अब जाईये भी जल्दी से !"
"अरे बाबा ! जाता हूँ जाता हूँ! चप्पलें तो पहनने दो जरा !"
उन दोनों की बातें सुन रिदिमा के उदास चेहरे पर भी मुस्कान थिरक उठी । ससुर जी के कमरे से बाहर जाने पर रिदिमा सासुमाँ के पलंग पर आ बैठी और सिर झुकाए धीमी आवाज में फुसफुसाई -
"माँ!"
"हाँ हाँ बोलो बेटा!"
उसके उदास चेहरे को देखते ही हाथ थामकर बोली-
"अरे तुमने इतनी बड़ी खुशखबरी सुनाई और तुम्हारा खुद का चेहरा उतरा हुआ है "
"माँ! ऋषि ..... चाहते है कि थोड़ा समय रुक जाते... बिजनेस सैटल होने तक... इसलिए वो.... अबॉर्शन....!"
"छी छी बहू ! ऐसे अपशब्द दुबारा मुँह से मत निकालना! शुकर है बरसों बाद घर में खुशियाँ आई हैं ।"
"पर ऋषि...!"
"उसे तो मैं देख लूँगी! पगला गया लगता है! यहाँ हम आस लगाये बैठे हैं और वो....!"
रिदिमा के सिर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराई-
"बेटा! तुम निश्चिंत रहो ! अरे अब मुस्कुरा भी दो!
और हाँ अब से अपना खूब ख्याल रखना, खुश रहना और मुस्कुराती रहना। तभी होने वाला बच्चा भी खुशदिल और हँसमुख होगा ।"
"माँ! आपने पल भर मे मेरी सारी परेशानी हर ली ।"
"बेटा! तुमसे ज्यादा तो हमें इन्तजार है कि कब ये घर किलकारियों से गूँज उठे और घर आँगन महक उठे।"
