श्राद्ध का अधिकार

श्राद्ध का अधिकार

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रमिता की शादी हुए कुछ ही महीने हुए थे ।

आज उसे उदास देखकर उसकी सास विद्या उसके कमरे में आई और यूँ ही उससे हल्की फुल्की बातचीत करने लगी ।

रमिता के पिता की मृत्यु के बाद उसकी माँ ने बड़ी कठिनाइयों से उसे पढ़ाया लिखाया । इकलौती औलाद होने के कारण माँ ने उसे हर सुख सुविधा उपलब्ध करवाने की कोशिश की । रमिता पढ़ने में शुरु से ही होशियार थी तो माँ ने भी कोई कोर कसर न छोड़ी ।


आज रमिता सरकारी स्कूल में अध्यापिका है, चार महीने पहले ही उसकी अच्छे घर परिवार में शादी हो गई ।

जैसे जैसे श्राद्ध के दिन करीब आते जाते रमिता की बेचैनी बढ़ती जाती ।

कारण , पिता को मुखाग्नि रमिता ने ही दी थी व हर साल वह ही पिता का श्राद्ध किया करती थी ।

अब शादी के बाद ,उसे समझ नही आ रहा था कि घर में कैसे बात करे इस बारे में ।


बातों ही बातों में विद्या जी ने पूछा-

"क्या बात है रमिता ,देख रही हूं चार पांच दिन से तुम उदास सी हो । तुम चाहो तो मेरे साथ शेयर कर सकती हो। "

सासु माँ ने कहा तो रमिता कुछ आश्वस्त हुई ।


"माँ मायके में मैं ही पिताजी का श्राद्ध किया करती थी अब शादी के बाद .....!"


"शादी के बाद भी तुम ही करोगी बेटा !"

कहकर सासु माँ ने रमिता के सिर पर हाथ फेरा तो रमिता की आंखे बरबस ही भर आई और उसने माँ को गले से लगा लिया मानों मनो बोझ उसके मन से हट गया हो ।


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