अभाव
अभाव
अभाव में जीसने जीवन बीताया हो वो ही रूपए की अहमियत समझाते हैं।
एक ऐसी ही सच्ची कहानी हैं।
एक बडा परिवार था भानु भाई और कंचन बहन के चार संतान थे।
बडा राजीव, दूसरा करण, तीसरा पंकज और चौथा सुनिल।
खुद का कारोबार था ईस लिए बच्चों ने ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं किया।
और सभी की शादी कर दी
पर समय का पहिया पलटा और सब कारोबार चोपट हो गया और फिर बच्चों को अलग रहने भेजा।
राजीव की पत्नी लता किराये के मकान में रहने लगे।
दूसरा करण, और चौथा सुनिल अपने ससुराल जाकर घर जमाई बनकर रहने लगे। और तीसरा पंकज को भानु भाई ने अपने साथ रखा।
सभी के यहां एक लड़का और एक लड़की हुई।
राजीव की बड़ी बेटी मानसी और बेटा जय।
पंकज का बेटा दीप पढ़ाई-लिखाई करता नहीं और आवारागर्दी करता और दादा भानु भाई उसे बिना मांगे ही रुपए दे देते।
और उधर जय पढ़ाई-लिखाई करता पर खाना भी वो सब एक टाइम खाते।
जय को सगे संबंधियों के बच्चो के दिये हुए कपड़े पहनता।
और पढ़ाई-लिखाई के लिए वो छोटी सी उम्र में फालतू समय में नोकरी करता और लता बहेन भी घर घर जाकर चीजें बेचती एक तरफ यह परिवार अभाव में जीते और दूसरी और पंकज और उसका बेटा दीप दादा से रुपए लेकर मोज शोख करते।
जय भावनात्मक था इसलिए वो छोटी सी उम्र से कोई भी चीज वस्तुओं के लिए जीद नहीं करता था।
बिना मांगे मोती मिले दीप को और मांगे मिले न भीख जय को* एसी यह जीदगी हैं।