Sandeep Kumar Keshari

Abstract

5.0  

Sandeep Kumar Keshari

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अभागा बाप

अभागा बाप

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दीवाली की रात – हर तरफ़ दीए की रोशनी से पूरा शहर जगमगा रहा था। आतिशबाजियों से शहर गूंज रहा था, और आसमान चमक रहा था, परन्तु शर्मा जी के लिए तो यह एक अमावस ही थी! उनका 23 साल का बेटा जो हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था! अभी परसो धनतेरस को ही तो जिद कर के 1 लाख की बाइक खरीदवाई थी।

दोस्तों के साथ घूमने निकला था वो नई बाइक लेकर। 1 घंटे के भीतर ये मनहूस खबर शर्मा जी को पुलिस के माध्यम से मिली कि उनके बेटे का एक्सिडेंट हो गया है हाइवे में। उसके साथ बाइक में 2 और भी लड़के थे। तीनों की हालत गंभीर थी। भागते - भागते शर्मा जी हॉस्पिटल पहुंचे।

पत्नी मायके गई हुई है। घर में कोई नहीं है। आज उनको ऑफिस में छुट्टी भी नहीं मिली थी, तो वे घर शाम 6 के बाद ही पहुंचे थे। तब तक लड्डू (उनके बेटे का पुकारू नाम) निकल चुका था। हॉस्पिटल में अन्य लोग फुसफुसा रहे थे – आज के लड़कों को देखो, कितना बेतरतीब गाड़ी चलाते हैं, वो भी बिना हेलमेट के। कोई दूसरा बोल रहा था – 'अरे सारी गलती उनके मां -बाप की है। क्यों देते हैं बच्चों को इतनी महंगी गाड़ी और वो भी बिना हेलमेट के? सरकर को सख्त कदम उठाने चाहिए ऐसे लोगों के ख़िलाफ़।'

शर्मा जी चुपचाप सुनते हुए बाहर निकाल गए। उनको हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपनी पत्नी और परिवारवालों को फोन कर सकें और सारा वाकया सुना सके। रात भर हॉस्पिटल के आईसीयू के बाहर खड़े रहे। इसी दौरान उनकी पत्नी और घरवालों का न जाने कितना कॉल आया, पर जवाब नहीं दिया उन्होंने। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था – क्या करें, क्या न करें?

सुबह हुई, लगभग 10 बज गए।

अचानक उनकी पत्नी दौड़ते हुए आईसीयू के पास पहुंची, तो देखा – शर्माजी बेसुध पड़े हैं। उन्होंने शर्मा जो को झकझोर के उठाया, और लगातार उनकी आंखों को देखती रही, जैसे पूछना चाह रही हो कि कैसे हो गया ऐसा? तबतक सारे घरवाले भी आ गए थे। शायद उनको पड़ोसियों से खबर मिल चुकी थी।

लगभग 1 बजे डॉक्टर बाहर आए और उन्होंने बोला –“हमने बहुत कोशिश की, परन्तु सिर में गंभीर चोट और अत्यधिक रक्तस्राव की वजह से हम उसे नहीं बचा सके। आपका बेटा अत्यधिक नशे में था – शायद इसी वजह से वह हाइपोग्लाइसिमिया और अत्यधिक उल्टी की वजह से हाइपोकेलेमिया में चला गया, जिससे वो रिकवर नहीं कर पाया! ….सॉरी !”

शर्माजी को तो काटो तो खून नहीं।

उनकी पत्नी तो ना जाने कितनी बार बेहोश हुई। एक जवान बेटे को खोने का गम और दर्द उसका बाप ही जानता है।

वे मन ही मन सोच रहे थे – कितनी बड़ी भूल कर दी मैंने? काश लड्डू की बड़ी बहन को कोख में न मारा होता! आज कम से कम मेरी एक तो संतान जिंदा होती !                           

4 साल हो गये , आज फिर दीवाली है। शर्माजी फिर से बिना हेलमेट वालों को हेलमेट बांट रहे हैं, ताकि उनके जैसा कोई भी बाप अभागा ना बनें।

उनकी पत्नी पिछले 2 सालों से लड़कियों को मुफ़्त पढ़ा रही है, ताकि कोई मां अपनी बच्ची को कोख में ना मारे !


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