"अब मैं शराब नहीं पियूँगा"
"अब मैं शराब नहीं पियूँगा"
इक दर्द को भुलाने के खातिर इक ज़हर को पिया करता था। आज वही ज़हर मेरे सीने में दर्द दे रहा और जीने की उम्मीद को खत्म कर रहा है। इतने सालों से जिन नशे की गलियों में बदहवास सा घुमा करता था, आज उन राहों से पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो खुद से भी नफरत हो रही है।
एक बुरी आदत को अपनाने में जरा भी वक़्त न लगा पर उसकी गिरफ्त से छूटने में बरसों लग रहे हैं।
जिंदगी के सफर में इतना तन्हा इतना अकेला हो गया था कि कब शराब को हमसफ़र चुन लिया पता ही नहीं, मगर शराब तो आखिर शराब ही है, कुछ पल के लिए दर्द भुलाने में आपका साथ देगी फिर जहर ही घोलेगी।
अब सोचता हूँ कि काश कोई तो होता जो उन गलियों में जाने से रोकता, मुझे शराब में डूबने से बचाता, खुद को खोने से बचाता।
खैर अब जो भी हो मैं बहुत कोशिश करूँगा, स्वयं के अन्तर्द्वंदों से लड़ूंगा, बहुत जल्द इस कीचड़ भरे दलदल से निकलूँगा,और एक नयी शुरुआत करूँगा पर अब शराब नहीं पियूँगा...
हाँ अब मैं शराब नहीं पियूँगा...