टैंपो वाला इश्क़
टैंपो वाला इश्क़


इस जहान में तमाम लोग ये कहते हैं कि मोहब्बत आज भी सूरत देख कर कि जाती हैं। मगर मैं तो उसके लब से ज़रा पीछे उस काले तिल को देखकर फ़ना हुआ था। कभी कभी सोचता हूँ के उस तिल कि क्या क़िस्मत रही होगी जो एक चाँद से टुकड़े में चार चाँद लगा रहा हो। उसके झुमके जब उसकी घनी जुल्फों के साथ हवा के झोंको से हिलती थी यक़ीन मानो दिल वहीँ थम सा जाता था। और जब अपनी नज़रें झुका कर वापस से उठाकर देखती थी तो मेरे दिल के किसी कोने में बस "आँखों में तेरी अज़ब सी अज़ब सी अदाएं हैं" गीत की धुन बजने लगती थी। यूँ तो उसकी हर अदा पर मैंने अपने दिल में एक गीत फिट करके रखी थी। हालाँकि मेरी वफ़ा दहकानी ज़रूर थी मगर उसमें इक सुकून था।
मैं रोज़ अपने कॉलेज के लिए निकलता था वो भी कहीं न कहीं तो जाती थी। हम दोनों की टैंपो स्टैंड पर ही मुलाक़ात होती थी। उसको जहाँ जाना होता था वो मेरे कॉलेज के रास्ते से ही होकर शायद गुज़रता था। मुझे उससे पहले ही उतरना होता था वो और आगे को जाती थी।
मेरा उसपर कभी ध्यान भी ना जाता अगर टैंपो में बैठे हुए उसके करीब हवा के झोंको से उड़ते हुए गेसू मेरे चेहरे पर ना आये होते।
मुझे खुशबूओं की उतनी जानकारी नहीं मगर शायद चमेली के फूलों से जो भीनी भीनी खुश्बू आती है वैसी खुश्बू बालों से आती थी।
मैंने कभी उसके चेहरे को ठीक से नहीं देखा, क्यूंकि कभी आँखों में अटक जाता तो कभी लब पर और कभी उसके तिल पर। हाँ मगर इतना दावा कर सकता हूँ की भीड़ में उसके तिल और बस आँखे देख कर मैं उसे पहचान लूंगा। टैंपो मेरे कॉलेज के करीब आते ही मैं थोड़ा सहज हो जाता वो भी अपने बालों को ठीक कर लेती। आज भी बिलकुल वही हादसा हुआ मेरे कदम कॉलेज की गेट की ओर बढ़ गए और वो टैंपो इक चाँद की सवारी लेकर आगे को निकल गयी।