नफ़रत
नफ़रत
पनवाड़ी से सिगरेट ले रहा था की फ़ोन बजा देखा कि अननोन नंबर से कॉल आ रहा था, जैसे ही कॉल रिसीव की एक जानी पहचानी आवाज़ आयी - " सिगरेट नहीं छोड़ी ना तुमने"?
कुछ जवाब देता उससे पहले चारों ओर नजर दौड़ाया पर कोई दिखाई नहीं दिया।
फिर आवाज़ आयी - जवाब क्यूँ नहीं देते? तुमने वादा किया था की तुम सिगरेट नहीं पियोगे।
वो कुछ और कहती कि इतने में मैं बोल पड़ा - " वादा तो तुमने भी किया था, छोड़कर ना जाने का"
चंद सेकेंड के लिए खामोशी छा गयी, और फिर बीप साउंड के साथ स्क्रीन पर कॉल एंडेड दिखा।
मुझे पता था कि वो आस-पास ही कहीं थी। पर फ़र्क़ ना पड़ा दिमाग कह रहा था कि इतनी फ़िक्र थी तो छोड़ क्यूँ दिया और दिल कह रहा था कि मेरे लिए जरा सी फ़िक्र ही भले पर अब भी करती है।
दिमाग कि सुनने के मूड में मैं था नहीं और दिल कि सुनना कब कि बंद कर दी थी।
सो दिमाग ओर दिल को साइड में रखते हुए कॉल हिस्ट्री से नंबर निकाला, डिलीट किया फिर अपनी सिगरेट ली और उसको सुलगाते हुए कई सारी यादें भी सुलगा दिए।
सिगरेट कि हर कश के साथ मैं अपने सीने में सिर्फ धुआँ ही नहीं नफ़रत भी खींच रहा था, वो नफ़रत जो मैं उससे जितनी भी करूँ कम है।