बाबूजी के प्लेंटी शॉट्स

बाबूजी के प्लेंटी शॉट्स

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मई महीने की कड़ी धूप वाली दोपहर ऊपर से स्कूल की छुट्टियाँ लाड साहेब आराम फरमा रहे थे कि तभी किसी कि पुकारने कि आवाज़ आती है।

आरव, आरव।

बाहर आकर देखा तो मयंक हाथ में बल्ला लिए हांफ रहा था।

आरव - तू हांफ क्यूँ रहा है??

मयंक - चल, जल्दी चल।

आरव - पर कहाँ??

मयंक - तू भूल गया? पड़ोस गाँव के लोंडो को बुलाया था ना मैच खेलने।

आरव - पगला गए हो? बाबूजी है घर पे, घर से एक कदम भी बाहर रखा तो कूट देंगे। तू जा मैं नहीं आ रहा।

मयंक - भाई इज़्ज़त का सवाल है। और अपनी टीम का तू रोहित शर्मा, तू ना आया और हम मैच हार गए तो स्कूल में वो हमारी खूब लेंगे।

आरव - सालों, बाबूजी से कूटवा के ही मानोगे तुम लोग। अच्छा तू चल मैं कुछ जुगाड़ बैठा के आता हूँ।


आरव कि एक छोटी बहन थी वह उसे छुटकी कहकर बुलाता था।

आरव - ऐ छुटकी सुन। मैं मयंक के घर जा रहा हूँ पढ़ाई करने, बाबूजी पूछे तो बता देना। और हाँ बोल देना कि आज ट्युशन कि छुट्टी है, मास्टरजी ससुराल गए हैं।

छुटकी को चोपा देकर आरव निकल गया अपना दोहरा शतक लगाने।

शाम तक जब बाबूजी ने आरव को ग़ायब देखा तो छुटकी से पूछा।

बाबूजी - छुटकी। आरव कहाँ है?

छुटकी - बाबूजी वो तो मयंक के घर पर पढ़ाई करने गया और उसने बताया कि आज ट्युशन कि छुट्टी है, मास्टरजी ससुराल गए हैं।

बाबूजी - अच्छा ठीक है। लड़का पढ़ाई पे ध्यान दे रहा है।

बाबूजी गर्व से मुस्कुराये।

छुटकी आँखें बड़ी करके बाबूजी को देखने लगी।

बाबूजी - ला वो बड़ा वाला झोला दे। आज सरकारी किराने के दुकान में गेंहू मिल रही है ले आता हूँ।

छुटकी ने झोला बढ़ा दिया।


बाबूजी चल दिए किराने के दुकान कि ओर।

दुर्भाग्य से आरव का ट्युशन और किराने कि दुकान में 8 से 10 क़दमों का ही फासला था।

किराने के दुकान में गेंहू भरते हुए बाबूजी को मास्टरजी दिखे, पास जाकर पूछा।

बाबूजी - मास्टरजी, आप तो ससुराल गए थे ना ?

मास्टरजी - नहीं तो। आपसे ऐसा किसने कहा?

बाबूजी शांत रहे, उन्हें सारा माजरा समझ आ गया।

अच्छा मास्टरजी चलता हूँ कहकर बाबूजी निकल पड़े वहां से।

वैसे बाबूजी दिखने में भोले और शांत थे बस औरों के लिए, मगर आरव को कूटने में किसी खली से कम ना थे।


उधर आरव अपना दोहरा शतक लगा रहा था और इधर से 80 किमी प्रति घंटे कि रफ़्तार से बाबूजी रूपी गेंद आरव को क्लीन बोल्ड करने आ रही थी।

मैदान में आरव-आरव कि आवाजें आ रही थी।

बाबूजी ने साईकिल खड़ी कि और आरव कि तरफ बढ़े।

आरव ने देखा तो उसे लगा कि बाबूजी उसके प्रदर्शन कि प्रशंसा करने आ रहे हैं पर उसे क्या पता था कि बाबूजी अपना प्रदर्शन देने आये थे।

बाबूजी ने नॉन-स्ट्राइक कि ओर से मिडिल विकेट उठाया और दौड़े आरव कि ओर।

होगा आरव क्रिकेट में अपने ज़माने का रोहित शर्मा या विराट कोहली मगर बाबूजी भी अपने ज़माने के एक नामी फुटबॉलर थे।

फिर क्या मैदान में बाबूजी के प्लेंटी शॉट्स पर आरव कभी इधर कभी उधर लुढक रहा था।



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