वो दोस्त बहुत याद आते हैं...
वो दोस्त बहुत याद आते हैं...
इस मौसम की बारिश में दफ्तर की खिड़की से बाहर ताकते हुए झमाझम गिरते पानी की बूंदो को देखा तो वही पुरानी स्कुल की बातें याद आयी। वो बारिश के मौसम में रेनकोट पहने साइकिल से स्कूल आना,क्लास में सीट के लिए झगड़ा करना, प्रार्थना में आगे बैठे दोस्त को गुदगुदी करना, और भी बहुत सारे नौटंकी। वैसे हम तो कोई टोपर थे नहीं की सिर्फ पढ़ने ही आते, कोई और भी वजह थी जिसमे कुछ लंगोटिया यार थे जिन्हे मिले बिना दिन नहीं गुजरता था। फिर जिस चेहरे को देखने के लिए सबसे पहले स्कूल पहुंचते थे उसे ना देखते तो चैन कहा आने वाला था।मेरी क्लास न होने की वजह से उसके क्लास के दो चक्कर मारने को मिल जाते थे। फिर टिफ़िन के समय लंच बॉक्स निकालता था जिसमे माँ की दी हुई रोटी और आलू की भुजिया होती थी, माँ की बनाई भुजिया का तो अलग ही टेस्ट था, दो-दो हाथ भी हो जाते थे दोस्तों के बीच इसी भुजिया के लिए।
इतना ही नहीं अपनी लंच बॉक्स खत्म करने के बाद वो बाउंड्री कूद कर लवली रेस्टॉरेंट जाना और वहाँ के गरमागरम समोसे आह..., नेहरा भाई के समोसे खाते हुए स्कूल बीता है हमारा।कइयों के तो उधारी भी चलती थी, भगवान जाने उन्होंने उधारी चुकाई भी की नहीं।
आज इक पल के लिए लगा की फिर से मैं वो स्कूल वाली लाइफ जी गया।
सच है ये की बहुत याद आते हैं वो दिन, वो दोस्त बहुत याद आते हैं।
भले ही उनसे मिलना ना हो लेकिन दुआ यही रहेगी जहां भी हो खुश हों, आबाद हों।
