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Samar Pradeep

Classics

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Samar Pradeep

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सुकून की नींद

सुकून की नींद

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आसमान में चाँद मेरे कमरे की खिड़की से साफ़ दिखाई पड़ रहा था, उसकी किरणों से कमरे में हल्की-हल्की रौशनी थी, और दिन भर का थका हारा मैं आँखे बंद कर सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद कहाँ आ रही थी।

माँ के मेरे सिर पर हाँथ फेरने से जो सुकून की नींद आती थी, बस उसी की चाह थी मुझे।

मैं आँखे बंद किये यही सोच रहा था कि तभी मैंने हल्के से किसी का हाथ मेरे सिर पर महसूस किया, बहुत ही सुखद एहसास था, बिल्कुल मेरी माँ के हाथों के स्पर्श सा। 

धीरे-धीरे उसने मेरे सिर पर अपना हाथ फेरना शुरू किया, मैं चाहता तो था की आँखे खोल लूँ पर कहीं वो मेरी माँ हो और मेरे आँखे खोलते ही कहीं गायब न हो जाये इस डर ने मुझे विवश किया। अब नींद भी मुझे अपनी आगोश में लेने लगी और मैं सुकून की नींद में सो गया।

ये घटना मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा है जो हर रोज़ मेरे साथ घटती है, मुझे आँखें खोलकर देखने की भी अब कोई जरूरत नहीं। मैं भी निश्चिंत हो चुका हूँ कि वो कोई और नहीं बल्कि मेरी माँ ही"माँ"

सच ही कहा है किसी ने इस शब्द मात्र में पूरा संसार समाहित है।


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