आठवाँ दिन
आठवाँ दिन


आठवाँ दिन भी समाप्त
पहली अप्रैल
एक दूसरे को बेवकूफ बनाने वाला दिन
बचपन से ही 'अप्रैल फूल' बनाने के बहुत सारे खेल खेलते, सबको बेवकूफ बनाने की जुगत लगाते रहते थे, मजा लेते और खूब हँसते थे ।
आज भी सोशल मीडिया पर बहुत सारे अप्रैल फूल बनाने वाले मेसज इधर से उधर हो रहे हैं, पर उनमें न तो कोई रुचि आ रही है, न हँसी न गुस्सा
बस यही लग रहा है कि काश कोरोना को बेवकूफ बना कर चीन रवाना कर सकते काश
ये तो तय है कि ये लॉक डाउन का समय हम सभी को कुछ न कुछ या बहुत कुछ जरूर सीखा के जाएगा, शायद हम ज़िन्दगी को नए नज़रिए से देखना शुरू कर दें।
शायद हम रिश्तों-दोस्तों की ज्यादा अहमियत समझने लगे
शायद हम जिनको पहले नज़रअंदाज़ कर दिया करते थे उनको ज्यादा इज़्ज़त देने लगे, सफाईकर्मियों, सब्जी विक्रेता, घर में काम करने वाली बाई आदि आदि
कुछ भी हो पर यह तो निश्चित है कि ज़िन्दगी पहले जैसी नहीं रहेगी।
इस आपदा को झेल चुकी पीढ़ी निश्चित रूप से पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूत, ज्यादा आत्मविश्वास से भरी होगी
ख़ैरये तो बाद की बात हैअभी तो मन बहुत सी शंकाओ और आशंकाओ स्व भरा हुआ है जिसका उत्तर आने वाला समय ही दे सकता है।
जल्दी ही सभी शंकाओं समस्याओं का समाधान हो,
बस यही आशा भी है और विश्वास भी।