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Sarita Kumar

Abstract

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Sarita Kumar

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आत्मकथा

आत्मकथा

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लोकल ट्रेन में हुई एक मुलाकात, चार घंटे के सफ़र में हुई बहुत सारी बात और मैं उन बातों से इतना अधिक प्रभावित हो गई कि अपने जीवन की दिशा बदलने का फैसला कर लिया। पापा से भी सुना था कि मुझे एक फकीर ने शादी करने के लिए मना किया था। मेरे पैदा होने से पहले ही एक फकीर मेरे घर आया और पापा को बताया की "एक वर्ष बाद तुम्हारे घर एक शक्ति रूप कन्या जन्म लेने वाली है। वह दिन सावन का शुक्रवार का होगा और मध्य रात्रि की बेला होगी। वह कन्या जन्म जरूर तुम्हारे घर में लेगी किन्तु वो तुम्हारी नहीं रहेगी। उसका जन्म संसार के कल्याण के लिए होगा। उस कन्या को मांसाहार भोजन नहीं खिलाना और उसका विवाह नहीं करना। सांसारिक मोहमाया में नहीं उलझाना। उसे संसार के कल्याण हेतु धर्म के प्रति समर्पित होने देना। " लेकिन तब किसी ने उस फकीर की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उस वक्त मां के गोद में एक बच्चा था और उससे बड़े दो भाई और एक बहन थी इसलिए किसी ने सोचा ही नहीं की चार संतानों के बाद भी कोई संतान आनी चाहिए। मगर विधि का विधान जो था वो तो होना ही था। उस नवजात शिशु की मृत्यु हो गई। पूरा परिवार शोकाकुल था उस मातम के समय में फिर वह फकीर आया और उसने कहा कि रोना धोना छोड़ो एक दिव्य कन्या आ रही है उसके स्वागत की तैयारी करो। उसने ड्राइंग रूम में लगी एक शिव पार्वती की तस्वीर की तरफ अंगुली उठाकर बोला कि "उस बच्ची की शक्ल बिल्कुल पार्वती जी की तरह होगी। "

और सचमुच सावन के शुक्रवार को मध्य रात्रि की बेला में मेरा आगमन हुआ। उसी वक्त मेरे पापा ने शक्ल मिलाई बिल्कुल उस तस्वीर जैसी ही थी। फिर तो उस फकीर की हर एक बात को याद किया और अपनी डायरी में लिख लिया। बड़े होते हुए मुझे भी मालूम हुई सारी बातें और जब नन मिली तब तो मैंने निश्चय ही कर लिया कि अपना जीवन दान कर दूंगी और नन बन जाऊंगी। इशा मसीह की पुस्तकें पढ़ने लगी। दिल्ली गुड न्यूज ब्राड कास्टिंग सोसायटी से डाक से पुस्तकें मंगवाने लगी और मन ही मन संकल्प ले लिया। कुछ दिनों बाद ट्रेन में ही एक दूसरी नन से मुलाकात हुई। मैं बहुत उत्साहित होकर उनसे बातचीत शुरू की किन्तु उनकी उदासीनता और मायूसी देखकर थोड़ी चिंतित हुई। उन्होंने अपनी जिंदगी की हकीकत सुनाई। सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए खामोश हो गई मगर इरादा नहीं डगमगाया। यह तो तय ही था कि मुझे विवाह नहीं करना है और संसार के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करना है। वो नन उम्र दराज थी जीवन का अनुभव था इसलिए मुझे समझाने की खूब कोशिश की ‌। आज भी मेरे कानों में उनकी आवाज गूंज रही है। "जोश-ए-जवानी में तुम संकल्प ले लोगी कि आजीवन कुंवारी रहोगी, कोई साज श्रृंगार नहीं करोगी, रंगीन कपड़े नहीं पहनोगी, कोई जेवर नहीं पहनोगी और ना ही माथे पर यह बिंदिया सजा सकोगी। तुम्हारा खुबसूरत सा चेहरा मनहूस और ज़िंदगी बेरंग हो जाएगी। जब कभी किसी को देखोगी रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए साज श्रृंगार किए हुए तब बहुत पछताओगी, मन कचोटने लगेगा, बहुत तड़पोगी मगर तब कुछ नहीं कर पाओगी। दुःखी हो जाओगी, निराशा और हताशा के कारण अवसाद में घिर जाओगी। इसलिए यह ख्याल दिल से निकाल दो। परिवार और समाज में रहते हुए भी लोगों की सेवा की जा सकती है।" कुछ देर तक एक खामोशी छा गई मां ने कहा थैंक्यू आपने समझा दिया मेरी बात इसे समझ में नहीं आती। अगले स्टेशन पर हमें उतरना था सो बाय करके उतर गई। घर पहुंच कर मन बेहद उदास हो गया। उनकी याद आने लगी।

थोड़ी देर और उनके साथ रहती तो कुछ और बातें हो पाती हमारी। वैसे उनका नाम पता तो ले ही लिया था प्रभात तारा स्कूल, मुजफ्फरपुर। इतना ही काफी था उन्हें ढूंढने के लिए। दूसरे दिन कॉलेज गई सहेलियों से मुलाकात हुई फिर व्यस्त हो गई इम्तिहान की तैयारी में और भूल गई उस नन को। उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर पहुंच कर यह ख्याल आया कि अगर मैं नन बन गई होती तो क्या मैं इतनी खुशहाल होती ? क्या मैं तरह-तरह के रेशमी सुनहरे परिधान पहनती ? सोने-चांदी और हीरो के ज़ेवरों से सुसज्जित होती ? क्या मेरा अपना कोई घर परिवार और कोई सुनहरा संसार होता ? बेटा बेटी नाती पोतों से घिरी रहती ? जिस तरह आज भी खिलखिलाती हूं ठहाके लगाती हूं, प्रेम गीत और ग़ज़ल गुनगुनाती हूं ऐसा कर पाती ? नहीं नहीं नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि नन का जीवन उनका अपना व्यक्तिगत नहीं होता है।

कोई खुशी, कोई सुख, कोई उत्साह और कोई उमंग नहीं होता उनके अपने जीवन में। ना उनका कोई घर होता है ना ही कोई परिवार मगर एक बात तो सच है कि भले ही उनका खुद का जीवन बेरंग रहा हो लेकिन दूसरों के जीवन में रंग भरने में सफल हो गई। मैं शुक्रगुजार हूं उस नन का जिन्होंने मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर दिया। नहीं मालूम वो नन कहां हैं ? 44 वर्ष हो गए हैं उस मुलाकात की और उस वक्त उनकी उम्र 40 वर्ष थी। मेरी आंखों में उनकी छवि बिल्कुल स्पष्ट है। ट्रेन का वह सफ़र यादगार रहा। मैं अब कभी उन्हें ढूंढ नहीं पाऊंगी ‌। नहीं बता सकूंगी की उनकी वजह से ही मेरी जिंदगी खुशहाल है और कामयाब भी क्योंकि परिवार के साथ रहते हुए समाज कल्याण का कार्य करने की सलाह उन्होंने दी थी और मुझे प्रसन्नता है कि मैं कामयाब हो गई। शिक्षिका, समाज सेविका, गृहिणी और मां भी हूं और इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ उसी नन को देना चाहती हूं जिनके चेहरे पर कभी मुस्कान नहीं आई, बेहद उदासीन, मायूस और गमगीन चेहरा, बादामी रंग की साड़ी, सांवली सूरत ....धीमी-धीमी सी आवाज़ .... कुछ भी आकर्षक नहीं था। बेहद साधारण सी दिखने वाली मगर उनकी आंखों में जो गहरापन था, शायद एक पश्चाताप अपने किसी गलत निर्णय का वह इतना प्रबल और प्रभावी था कि पल भर में मेरा फैसला बदलने में कामयाब हो गया। मुझे वो बेहद साधारण सी किन्तु मेरे जीवन की दशा और दिशा बदलने वाली असाधारण हस्ती बहुत याद आती हैं।


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