आत्मग्लानि
आत्मग्लानि
हवाई जहाज अपनी उड़ान भर चुका था। हवाई जहाज की उड़ान के साथ ही यह देश इस देश की यादें सब कुछ मानो छूट रहा था या उन यादों को मन और भी जोर से पकड़ रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। खिड़की के साथ वाली सीट पर मिस्टर वर्मा अपने बेटे के साथ बैठे थे। दिल्ली में अपना लगभग सारा सामान बेचकर वह अमेरिका रहने के लिए जा रहे थे। उनका बेटा पवन अमेरिका में काफी सालों से रह रहा था और वह अपनी पत्नी मानसी के साथ कई बार अमेरिका हो भी आए थे। अभी लगभग पिछले सात सालों से उनका अमेरिका जाना नहीं हुआ था और पवन भी दिल्ली नहीं आया था। पवन को अमेरिका में ग्रीन कार्ड तो बहुत पहले ही मिल गया था अब वह वहां की सिटीजनशिप लेना चाहता था। अपने अम्मा बाबूजी को भी वह अमेरिका में ही सेटल होने के लिए कहता था लेकिन मानसी जी अपने देश को छोड़ना ही नहीं चाहती थी। कुछ सालों से उनकी तबीयत काफी खराब रहने लगी थी। जब तब अस्थमा भी बढ़ जाता था। शुगर और हाई बीपी तो उन्हें था ही अब कई बार उनकी शुगर लो भी होने लगी थी और अक्सर बेहोश होकर गिर जाती थी। पिछले 6 सालों से उन्होंने जाने कितनी बीमारियां पकड़ ली थी। वर्मा जी को तो अमेरिका की आबोहवा रास आ गई थी उन्हें तो अमरीका रहने में कोई समस्या नहीं थी लेकिन मानसी जी के कारण वह जा नहीं सकते थे। इस कारण घर में वह कई बार खटपट भी कर देते थे। एक तो अकेलेपन की चुप्पी, दूसरा वर्मा जी का व्यवहार, मानसी जी लगभग टूट चुकी थी। जैसे-जैसे उनको बीमारियां घेर रही थी उनका बाहर निकलना भी दूभर हो गया था।
लगभग 4 महीने पहले दिसंबर की कड़कती ठंड में भी जब उनके चेहरे पर बेइंतेहा पसीना देखा तो एक बार वर्मा जी भी डर गए और डॉक्टर को बुलाया गया, हालांकि वर्मा जी डॉक्टर को बुलाते बुलाते भी मानसी जी पर बेहद गुस्सा हो रहे थे कि उन्होंने रात में जाने ऐसा क्या खाया है जो कि उनको हजम नहीं हो रहा है और छाती में भी दर्द हो रहा है, आखिर उनकी भी तो उम्र हो रही है घुटने में तो उनको भी दर्द होता है। अब रात में इमरजेंसी में डॉक्टर के लिए जाना पड़ेगा। अस्पताल जाने पर ईसीजी करने से पता पड़ा कि मानसी जी को माइनर हार्ट अटैक आया था और डिस्चार्ज करते हुए डॉक्टर ने उनके खाने पीने की, उनके आराम करने के बारे में बहुत सी हिदायतें भी दी थी।
मानसी जी के घर आने के बाद वर्मा जी ने हर काम के लिए एक कामवाली तो रख ली थी और एक अटेंडेंट भी उनके लिए रखती थी लेकिन इन सब के कारण उनका खुद का जीना दूभर हो रहा था। अस्पताल में आने जाने से और लोगों के अभी मानसी जी का हाल पूछने आने के कारण वह बेहद थक चुके थे। मानसी जी तो उठ भी नहीं सकती थी और घर के बहुत से काम जो कि उन्होंने कभी भी नहीं करे थे अब करने पड़ रहे थे। अर्थराइटिस के कारण उनके खुद के भी शरीर में बहुत दर्द रहता था। घुटने से चलने में उन्हें भी परेशानी होती थी। कामवाली अक्सर छुट्टी कर जाती थी। अटेंडेंट के कारण वर्मा जी खुद को अपने ही घर में एक कैदी सा महसूस करते थे लेकिन फिर भी----। एक महीना बाद अटेंडेंट की भी छुट्टी कर दी गई। वर्मा जी को ही मानसी जी की दवा वगैरा का ख्याल रखना होता था। सर्दियों के मौसम में ठंड के कारण कई बार उन्हें नेबुलाइजर की भी जरूरत पड़ जाती थी। ऑक्सीजन का सिलेंडर भी घर में ही रखा हुआ था।
सच पूछो तो उन्हें इतना ख्याल करने की आदत ही कहां थी। मानसी जी ने सारे घर को इतनी अच्छी तरह से व्यवस्थित रखा हुआ था और वर्मा जी का बहुत ख्याल रखती थी। रिटायर हुए तो उन्हें 9 साल हो गए थे समय पर पार्क जाना घूमना और वर्मा जी की हर छोटी से छोटी चीज का ख्याल रखती थी। अभी 7 साल पहले जब वे अमेरिका गए थे तो वहां पर बहुत ज्यादा ठंड में मानसी जी को निमोनिया हो गया था, वहां पर भारत के जैसे तो इलाज होता नहीं था, वहां पर अस्पतालों को दिखाने चक्कर काटने में पवन और बहु रानी का बहुत खर्चा हो रहा था। पवन के दोनों बच्चे भी खुद में ही व्यस्त रहते थे, बीमारी में अकेले पड़े पड़े मानसी जी का बहुत दिल घबरा रहा था और क्योंकि वहां कोई काम करने वाली भी नहीं थी तो सारा काम बहू पर ही आन पड़ा था जो कि खुद ही वर्किंग थी। बस वहां पर बर्गर सैंडविच वगैरह ऐसी चीजें मानसी जी को ना तो अच्छी लगती थी और ना ही उन्हें हजम होती थी। जाने अमेरिका में किस के व्यवहार ने उनके दिल को ही तोड़ दिया और उन्होंने कभी भी अमेरिका नहीं जाने का फैसला कर लिया था।
अब घर में रहते रहते उन्हें डिप्रेशन और कई बीमारियों ने घेर लिया था। क्योंकि वर्मा जी अमेरिका में ही सेटल होना चाहते थे इसलिए अब घर में भी उन दोनों की खटपट होती ही रहती थी। मानसी जी की तबीयत खराब रहती थी। अब सर्दियों में अक्सर उन्हें अस्थमा का अटैक आ ही जाता था तो उन्हें जल्दी ही नेबुलाइजर देना पड़ता था और वर्मा जी को डॉक्टर ने कुछ एसओएस के लिए भी गोलियां दे रखी थी। जोकि मानसी जी की तबीयत खराब होते ही उन्हें दे देनी पड़ती थी।
दीपावली पर वर्मा जी ने पवन से वीडियो कॉल करी थी। बाहर बहुत से बम पटाखे चल रहे थे। वर्मा जी पवन से बात कर रहे थे कि जब वह अमेरिका गए थे और क्रिसमस के बाद ही आए थे। सब ने कितना मजा किया था। मानसी जी अंदर दूसरे कमरे में लेटी हुई थी और शायद तभी उन्हें अस्थमा का अटैक आया होगा नेबुलाइजर पास में नहीं था, तबीयत भी उनकी खराब ही थी और वर्मा जी को शायद बम पटाखों की आवाज में मानसी जी की आवाज नहीं सुनाई दी। जब तक वह अंदर गए तब तक मानसी जी दम तोड़ चुकी थी।
पवन भी दिल्ली आया और अपने पिता की उदासी को वह नहीं देख सकता था। वर्मा जी अक्सर खोए हुए और खुद से ही बातें करते रहते थे इसलिए उसने अपने पिता को भी अपने साथ अमेरिका ले जाने का फैसला कर लिया था। जल्दी में ही जो भी सामान वह बेच सकते थे वह बेच दिया गया । सोसाइटी का साल भर का मेंटेनेंस जमा करके वह अमेरिका के लिए चल दिए।
हवाई जहाज में आंखें बंद करते ही रह रहकर पुराना समय पुरानी यादें, पवन का बचपन सब याद आ रहा था। आज उनके घुटनों में भी बिल्कुल ताकत नहीं रही थी उनकी स्टिक साथ में ही पड़ी थी। पुरानी यादें करते-करते वह यूं ही फुसफुसा रहे थे। मानसी जब मैं पवन से बात कर रहा था मुझे तुम्हारी आवाज तो आ रही थी अगर मैं तभी अंदर आ जाता और तुम्हें नेबुलाइजर दे देता तो क्या तुम बच सकती थी? हो सकता है उस समय तुम्हारी शुगर लो हो मैं तुम्हें वह s.o.s. वाली गोली दे देता तो शायद तुम बच जाती। सच मानो मैं गुनहगार नहीं हूं। असल में मुझ में ही इतनी हिम्मत कहां थी कि मैं भाग भाग के तुमको सब कुछ दे देता। मैंने जब तुम्हारे सर पर हाथ रखा था तब तुम बेहद ठंडी हो रही थी क्या तब तक तुम्हारे प्राण पखेरू उड़ चुके थे या मैं गोली देता तो तुम बच सकती थी क्या? नहीं मैंने तुम्हारा बहुत ख्याल करा था। तुम्हें मुझसे कोई शिकायत तो नहीं है?
क्या हुआ पापा? आप इतना पसीने पसीने क्यों हो रहे हो? मैं एयर होस्टेस को बुलाता हूं। आपको कोई प्रॉब्लम है क्या? कोई दवा या कुछ लेना है क्या? नहीं बेटा, मैं ठीक हूं। इतना लंबा सफर है, मैं सोने की ही कोशिश करता हूं कहकर उन्होंने मोबाइल की लीड भजन सुनने के लिए अपने कानों पर लगा ली। वह समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें आत्मग्लानि होनी चाहिए या नहीं? आंखें बंद करके उन्होंने पवन का हाथ पकड़ लिया था ।