आप महान थी, लेकिन मैं नहीं हूँ (day-22)
आप महान थी, लेकिन मैं नहीं हूँ (day-22)
"लो अपने बेटे को सम्हालो। जवानी में अपने बच्चे पाले और अब बुढ़ापे में बहुओं के बच्चों को पालो। ",सान्वी जैसे ही किचेन का काम ख़त्म करके आयी, उसकी सास ने तीन महीने के उसके बेटे शौर्य को पकड़ाते हुए कहा।
शौर्य जब तक सो रहा था, तब तक सान्वी ने लंच बनाया और सास-ससुर को खिलाया। उसके ससुराल में सभी गरम खाना खाते हैं। अभी सास -ससुर ने लंच ख़त्म ही किया था कि शौर्य उठ गया था। सान्वी ने जैसे -तैसे फटाफट खुद की थाली लगाईं और किचेन समेटी। अभी वह खाना खाने की सोच ही रही थी कि सासू माँ के तानों की बौछार शुरू हो गयी।
वह एक हाथ में खाने की थाली और दूसरे हाथ में शौर्य को लिए हुए अपने कमरे में चली गयी थी। शौर्य को शायद भूख लगी थी। शौर्य को दूध पिलाते हुए ही सान्वी ने फ़टाफ़ट अपना खाना ख़त्म किया। अभी तो शौर्य को मालिश करनी थी और नहलाना भी था। सान्वी शौर्य की मालिश करने लगी। सान्वी की सासू माँ का कभी मन होता तो मालिश कर देती थी ;लेकिन तब भी उन्हें तेल, गद्दी आदि एक -एक चीज़ हाथ में देनी पड़ती थी।
सान्वी ने शौर्य की मालिश की और उसे नहलाया -धुलाया और उसके बाद शौर्य सो गया था। सान्वी थोड़ा देर सोना चाहती थी ;क्यूँकि रात को शौर्य सोने नहीं देता था। वह अभी लेटी ही थी कि सासू माँ की आवाज़ आ गयी, "सान्वी धुले हुए कपड़े छत से लेकर आ जाओ, धोबी आयरन के कपड़े लेने आता ही होगा। किचेन में बर्तन भी खाली कर दो, शांता भी आने वाली होगी। "
थकी हुई सान्वी कमरे से बाहर आ गयी थी। वह छत पर से सारे कपड़े लेकर आयी। धोबी को देने वाले कपड़े तह बनाकर अलग रखे। बाकी सभी कपड़े भी तह करके ठिकाने पर रखे। कपड़े समेटकर किचेन में घुस गयी। लंच के बर्तन खाली किये, दूध गर्म किया, डिनर के लिए सब्जियाँ आदि रेफ्रीजिरेटर से बाहर निकाली। अभी वह किचेन में ही थी कि सास -ससुर की चाय का टाइम हो गया।
"सान्वी, तेरे पापाजी का आज पकौड़े खाने का बड़ा मन है। चाय के साथ थोड़े पकौड़े भी तल लेना। ",सासू माँ ने बैठे -बैठे फरमान सुना दिया था।
सान्वी जल्दी-जल्दी पकोडों की तैयारी करने लगी। चाय और पकौड़े सास -ससुर को पकड़ाए और खुद की चाय लेकर अपने कमरे में चली गयी। चाय ख़त्म करके उसने अपना चेहरा आईने में देखा तो वह खुद को ही पहचान नहीं पायी। नींद पूरी न होने के कारण उसकी आँखों पर डार्क सर्कल्स पड़ गए थे। हमेशा खिला रहने वाला चेहरा मुरझा गया था। न जाने कितने दिनों से उसने अपने बालों में ठीक से कंघी ही नहीं की थी। जब से शौर्य हुआ था, तब से बालों को जुड़े में बाँध भर लेती थी।
ससुराल वालों के लिए सान्वी एक मशीन बनकर रह गयी थी ;जिसे दिन -रात घर के काम करने थे, ससुराल का वंश चलाना था। शौर्य जब अच्छे मूड में होता, तब ही सब उसे रखते या सान्वी घर के काम कर रही होती, तब शौर्य को सासु माँ सम्हालती। बाकी सभी वक़्त सान्वी ही शौर्य को रखती, सान्वी ने अपने लिए तो जीना छोड़ सा ही दिया था। सही में माँ बनते ही स्त्री को अपने अस्तित्व को भूल जाना होता है क्या ?ऐसा स्त्री के साथ ही क्यों होता है ? सान्वी कई बार ऐसा सोचती थी ।
कहने को झाड़ू -पोंछे और बर्तन के लिए घेरलू सहायिका लगी हुई थी। लेकिन घर में इतने काम होते हैं न कि 24 घण्टे भी कम पड़ जाते हैं। फिर अगर सान्वी थोड़ा सा भी बैठने या आराम करने की सोचती ;सासू माँ कुछ न कुछ काम बता देती ;जैसे सान्वी मेरी अलमारी ठीक करने में मदद कर दो ;ससुर जी को बेसन के लड्डू खाने हैं, आओ मेरी मदद कर दो।
लेकिन आज अपनी हालत देखकर सान्वी को खुद पर गुस्सा आया और महात्मा बुद्ध के विचार याद आये, "आत्मादीपो भवः " अर्थात अपना दीपक आप बनो।
"स्कूल -कॉलेज में हमेशा अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाली सान्वी अपने लिए इतनी क्रूर कैसे सकती है ?",सान्वी ने अपने आप से कहा।
सान्वी ने अपने लिए खुद ही खड़े होने दृढ निश्चय कर लिया था। "अगर मैं अपना ध्यान नहीं रखूँगी तो फिर अपने परिवार का ध्यान कैसे रख पाऊँगी ? औरों से प्यार करने के लिए मुझे खुद से प्यार करना होगा ",सान्वी ने अपने आप से कहा।
अगली सुबह एक नयी सान्वी ने जन्म लिया। सान्वी ने शौर्य के उठने से पहले ही ब्रेकफास्ट और लंच बनाकर रख दिया। अपने सास -ससुर का इंतज़ार किये बिना ही सान्वी ब्रेकफास्ट करने लगी।
तब ही सास ने कहा, "तुम सबसे पहले ब्रेकफास्ट कैसे कर सकती हो ?"
सान्वी ने अपनी सास की बात को सुना -अनसुना करते हुए कहा कि, "आपके और पापा जी के लिए ब्रेकफास्ट लगा देती हूँ। ",ऐसा कहकर सान्वी किचेन में चली गयी थी।
"तुमने मेरी बात का ज़वाब नहीं दिया ?",टेबल पर ब्रेकफास्ट लगाती सान्वी से सासु माँ ने पूछा।
"माँ, मुझे भूख लगी थी और फिर शौर्य के उठने के बाद मैं शांति से ब्रेकफास्ट नहीं कर पाती। ",सान्वी ने शांति से कहा।
सासु माँ कुछ बोलती, उससे पहले ही शौर्य के जागने की आवाज़ आ गयी थी। "शौर्य जाग गया है। ",ऐसा कहकर सान्वी चली गयी।
"तुम नाश्ता कर लो। बात का बतंगड़ मत बनाओ। ",ससुर जी ने सास से कहा। शायद ससुरजी सान्वी की आवाज़ से उसके भीतर जन्म ले चुकी नयी आत्मविश्वास से लबरेज़ सान्वी को समझ गए थे।
सान्वी ने शांता से साफ़ -सफाई करवा दी और उसके बाद वह अपने कमरे में चली गयी।
"आज दोपहर का खाना नहीं बनाना क्या ?",सान्वी की सासु माँ ने कुछ देर में आवाज़ लगाते हुए कहा।
"माँ, मैंने नाश्ते के साथ ही खाना भी बना दिया। जब भी आप लोगों को खाना हो बता देना, मैं आकर गरम कर दूँगी। ",सान्वी ने अपने कमरे से बाहर आकर शांति के साथ जवाब दिया ।
"घर में काम ही कितना होता है, जो अब तुम खाना भी गरम -गरम बनाकर नहीं दे सकती। ",सासू माँ ने कहा।
"बिल्कुल, घर में कुछ काम नहीं होता। लेकिन मुझसे वह भी नहीं होता। मैं थक जाती हूँ, आपके जितनी सक्रिय नहीं हूँ। मुझे रात में शौर्य सोने नहीं देता। अब आप चाहे मुझे कामचोर कहें या आलसी। मुझे दिन में थोड़ा आराम चाहिए। कम से कम दिन में खाना बनाने के काम से तो बचूँगी।",सान्वी ने दो टूक कहा।
"बच्चे तो हमने भी पाले हैं। ",सासु माँ ने कहा।
"हाँ माँ, आप अपने शरीर को कष्ट दे सकती थी। आप महान थी, लेकिन मैं नहीं हूँ। मुझे अपने आप से भी उतना ही प्यार है, जितना आप लोगों से है, इस परिवार से है, शौर्य से है। ",सान्वी ने आत्मविश्वास से कहा।
सान्वी के स्पष्ट शब्दों ने सासु माँ को निरुत्तर कर दिया था।
