आंगन की दरकार

आंगन की दरकार

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उस शाम जैसी मनहूस शाम किसी के जीवन में न आए,,,, उसके बाद जो रात हुई.. उस रात की कोई सुबह नहीं थी। रोज की तरह गैस पर चाय चढ़ा कर सुलेखा ने सब्जी काटने के लिए निकाली। तब मोबाइल पर बेटे अक्षत का फोन आया। सुलेखा ने फोन रिसीव किया तो उधर से किसी और की आवाज आई "आपके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है। आप जल्दी आ जाइए।" 

सुलेखा दौड़ी दौड़ी बताए हुए पते पर पहुंची। उधर खबर मिलते ही मुकुल भी बदहवास से पहुंचे किंतु तब तक सब समाप्त हो चुका था। उनके घर का चिराग अब बुझ चुका था। 

अक्षत सज्जन और भला लड़का था। मां बाप ने उसकी परवरिश में कोई कसर न छोड़ी थी। अव्वल दर्जे का होनहार, शरीफ, हर काम में फुर्तीला किंतु एक ही झटके में सब खत्म,,,,,,,,,, ।

अक्षत के जाने के बाद सुलेखा के आंसू रुकने का नाम नहीं लेते थे। दिन रात अक्षत को याद कर के अपने भाग्य को कोसा करती थी। जिस घर को सुंदर और आकर्षक बनाए रखने के लिए वह दिन रात चरखी सी दौड़ती थी, आज बस एक कोने में पड़ी घुल रही थी। 


मुकुल भी जवान बेटे को मौत से टूट गया था किंतु सुलेखा की हालत उससे देखी नहीं जाती थी। "सुलेखा, जरा तैयार हो जाओ,,,,,, कहीं चलना है।" 

"मेरा मन नहीं, आप ही चले जाइए। "

" तुम्हारा चलना भी जरूरी है। "

सुलेखा बेमन से तैयार हो गई। मुकुल ने कुछ खाने पीने का सामान, बच्चों के कपड़े और भी कुछ सामान गाड़ी में रख लिया। सुलेखा ने पूछा तो कहने लगे" घर में अब कोई खर्च करने वाला नहीं है तो किसी की मदद ही कर दी जाए। "कहते हुए मुकुल की आंखो के कोर नम हो आए। 

जल्दी ही दोनों एक झोपडपट्टी में पहुंच गए। उन्हें देखते ही वहाँ खेलते बच्चे उनको चारो ओर से घेर कर खड़े हो गए। सुलेखा ने देखा कुछ बच्चे टूटे हुए खिलौनों से बड़े खुश होकर खेल रहे हैं। 

एक बच्चा सूखी हुई रोटी को चाव से खा रहा था। 

कुछ बच्चे बडों के पहनने लायक टीशर्ट पहने हुए थे जो उनके टखनों तक झूल रही थी। लेकिन सभी इस सब से बेपरवाह खेलने में मस्त थे। 

मुकुल अपने साथ लाया सामान उन सभी को देने लगा। बच्चों की आंखों में खुशी की चमक आ गई। सुलेखा बच्चों को बस निहारती रही। 

मुकुल सुलेखा की तरफ देखते हुए कहने लगा"सुलेखा ये बच्चे, भरपेट भोजन भी नहीं पाते हैं। जो बीत गया उसे भूलकर आगे बढ़ो। तुम्हारी कोख उजड़ चुकी है। हमारा आंगन सूना हो गया है। और इन बच्चों को एक आंगन की दरकार है। इनका जीवन खंडहर सा है जिसका तुम अपनी गोद में नवनिर्माण कर सकती हो।"

सुलेखा चुपचाप सुनती रही और आगे बढ़कर एक बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। 


  


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