बहू तो काली है
बहू तो काली है
सलोनी की शादी एक प्रेम विवाह थी। विजय और सलोनी दोनों ही सुलझे हुए विचारों के थे। साथ काम करते करते दोनो ने जिंदगी साथ ही बिताने का फैसला कर लिया। जहां विजय लम्बा, गौरवर्ण और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था, वहीं सलोनी का कद अपेक्षाकृत कम था और रंग भी थोड़ा दबा हुआ था। किंतु उसके आकर्षक नयन नक्श, सुलझे हुए विचार और मधुर व्यवहार उसे प्रभावशाली रुप प्रदान करता था।
उनके फैसले से दोनो के परिवार भी सहमत हो गए और शीघ्र ही दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।
मुंहदिखाई के लिए आस पडो़स की महिलाएँ, बच्चे और रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा था। हंसी मजाक का माहौल खूब जम रहा था।
साथ के घर में रहने वाली सुनन्दा आंटी ने मुंह दिखाई के लिए सलोनी का घूंघट उठा कर देखा, वहां तो कुछ नहीं कहा किंतु बाहर जाकर दूसरी औरतों से कहने लगीं "बहू तो काली है। क्या देखा विजय ने? मैंने इतनी लम्बी और सुंदर लड़की बताई थी इसकी मां को लेकिन...... ।"
विजय की मां ने उनकी बात सुन ली और पास आकर कहने लगीं "बहन जी शारीरिक बनावट तो ऊपर वाले के हाथ में है, इस तन को जैसा ईश्वर ने गढ दिया। जैसे एक आकर्षक पैकिंग में जरूरी नहीं कि अंदर की वस्तु अच्छी ही हो। वैसे ही त्वचा के रंग के आधार पर हम किसी के बारे में अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकते।"
सुनन्दा आंटी को अब समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें। विजय की मां मुस्कुराते हुए बोलीं"जब वो दोनो एक दूसरे के उनके इसी रुप में पसंद करते हैं तो हमें क्या समस्या ! परिवार में खुशहाली रहे, चाहे बहू गोरी हो या काली। "
