बहारें लौट आएंगी
बहारें लौट आएंगी
"वसुधा गांव में पली एक बहुत ही भोली और प्यारी बच्ची थी,,,, मासूम और चुलबुली।सुंदर भी ऎसी जैसे मोम की गुडिया। घर गृहस्थी के सारे काम काज में पारंगत और चुस्त। बस एक ही समस्या थी, उसका मन अध्ययन में तिल भर भी न लगता।
उसे तो आस पड़ोस की चाची, ताई, भाभी और बहनों से गप्पें लड़ाने,,,, अचार, बड़ी, पापड़, मिठाई और भी न जाने क्या क्या बनाने में ,,,,,, इस सब में ही मस्त रहना अच्छा लगता।
घर की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। और तभी एक ठीक ठाक घर से वसुधा का रिश्ता आया। माता पिता को घर ठीक लगा। एक तो वसुधा का पढ़ने में मन ही नहीं था, दूसरा लड़के वालो की कोई मांग भी नहीं थी। ऎसे मौके बार बार नहीं आते सोचकर वसुधा की शादी कर दी गई।
वसुधा तो जैसे सपनों में जी रही थी। इतनी हंसीन जिंदगी इतनी सहजता से मिल जाएगी उसे तो सब स्वप्न सरीखा ही लग रहा था।
लेकिन सपने कब अपने होते हैं ! विवाह के छः माह ही बीते थे कि रोहन का ऐक्सिडेंट हो गया और वह कोमा में चला गया।
दिन, सप्ताह, महीने और साल बीत गए किंतु रोहन
के स्वास्थ्य पर कोई सुधार नहीं । वसुधा के जीवन को जैसे ग्रहण लगा गया। इसी दौरान वसुधा के ससुर जी का भी देहांत हो गया। अब वसुधा बिल्कुल ही बेसहारा हो गई।
मायके से कई बार वसुधा को समझाने की कोशिश की गई कि दूसरा विवाह कर ले, सास भी उसे समझाकर थक गयी कि जिंदगी को दुबारा शुरू करे, अब बुढापे में जीवन का कुछ ठिकाना नहीं कि टिमटिमाती लौ कब बुझ जाए।
लेकिन वसुधा तो रात दिन रोहन की सेवा करती और उसके स्वास्थ्य के लिए कामना करती,और अकेली सास की चिंता भी उसे सताती थी।
लेकिन अब घर में कमाने वाला कोई नहीं था और वसुधा अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी। कोई दो चार हजार की नौकरी मिल भी जाती तो उससे गुजर न हो पाती।
इसी दुविधा में समय बीत रहा था कि एक दिन पड़ोस वाली रंजना कहने लगीं। "बेटी जरा तुम्हारे सहयोग की जरूरत है"
"कहिए आंटी, क्या बात है? "वसुधा ने हैरत भरे अंदाज में पूछा।
मैं और तुम्हारे अंकल इतने बड़े घर की साफ सफाई भी नहीं कर पाते। और बच्चे तो एक बार विदेश चले गए तो कहाँ वापस आते हैं। तो हमने घर के खाली हिस्से में पढ़ने वाले बच्चों को रखा है। लेकिन उन बच्चों को टिफिन फैसिलिटी चाहिए। मैंने सोचा तुम खाना अच्छा बनाती हो, अगर चाहो तो घर में ही काम भी मिल जाएगा और बच्चों को भी सुविधा हो
जाएगी। "
वसुधा को यह सुझाव अच्छा लगा और उसने यह काम आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसके काम की प्रसिद्धी फैलने लगी और काम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा। वसुधा ने अब टिफिन के अलावा मिठाईयों का भी काम शुरू कर दिया।
एक दिन वसुधा को शाम के धुंधलके में एक औरत सड़क पर रोते हुए नजर आई। पास जाकर देखा तो उसके शरीर पर जगह जगह चोट के निशान थे। पूछने पर पता चला कि पति ने शराब पीकर मारपीट की और घर से निकाल दिया।
वसुधा का ह्रदय द्रवित हो उठा, वह उसे अपने साथ ले आई। अब वसुधा के जीवन के दो ही लक्ष्य थे, एक रोहन की तबीयत में सुधार और दूसरा बेसहारा औरतों को स्वावलंबी बनाना।
समय बीतने के साथ वसुधा की तपस्या ने रंग दिखाया और रोहन का स्वास्थ्य भी बेहतर होने लगा।
एक बार फिर बहारें उसके आंगन में झूमने लगीं।
उसने अनेक महिलाओं को भी स्वावलंबी जीवन की राह दिखाई और उन्हें भी सिखाया कि हौसला बनाये रखिये। हमारी मेहनत के बूते बहारें लौट आएंगी।
